न्याय बीमार पड़ी है, कानून की आँख में पानी है

अत्याचार दिन ब दिन बढ़ रहे हैं भारत की बेटी पर।
रो-रो कर चढ़ रही बिचारी एक-एक करके वेदी पर ।।
भिलाई से लेकर दिल्ली तक प्रतिदिन नई कहानी है।
किसने पाप किया है ये, किसकी ये मनमानी है।।
गली-गली, बस्ती-बस्ती में निर्भया बलिदानी है।
न्याय बीमार पड़ी है अब, कानून की आँख में पानी है।।

स्कुल-कालेज, आफिस, घर,  सभी जगह पर खतरा है।
मानवता तो अब मर रही है सड़को पर सन्नाटा पसरा है।।
कभी-कभी मर्दाना पुलिस औरतों पे कहर ढ़ाती है।
संविधान के नियम-कायदे पल-भर में भूल जाती है।।
हरेक गाँव, हरेक शहर में, हमने देखी यही कहानी है।
न्याय बीमार पड़ी है अब, कानून की आँख में पानी है।।

न्यायालय तक कैसे जाऐ, किससे अपनी बात कहे।
सरकारी नुमाइंदे जब खुद बलात्कारी के साथ रहे ।।
दो दिन मज़मा लगाने के लिए संगठन वाले आते हैं।
रात गई, बात गई, फ़िर घर में चादर तान सो जाते हैं।।
कुछ सज्जन तो कहते हैं, चुपचाप रहना बुद्धिमानी है।
न्याय बीमार पड़ी है अब, कानून की आँख में पानी है।।

राह चलती बेटिया पर कुछ लड़के ताने कसते हैं।
कुछ ऐसे गुण्डे भी हैं, जो घर तक पीछा करते हैं॥
बेटी के चाल-चलन पर माँ-बाप की निगाह पैनी है।
बेटे ने पेट भरे हैं शराब से, मुँह में गुटका, खैनी है।।
पकड़ रखो तुम बेटे पर, ये बात सभी को समझानी है।
न्याय बीमार पड़ी है अब, कानून की आँख में पानी है॥

बेटी लाचार गरीब की, अब मिट्टी का खिलौना है।
‘बोलो साहेब बोलो’ वस्त्रों पे क्या कुछ कहना है?
दो चार साल की गुड़िया भी क्या सही सलामत है?
बुढ़ी बच्ची और जवान किसी को यहाँ पर राहत है?
अपनी नज़रों पर काबू नहीं बनते-फिरते ज्ञानी हैं।
न्याय बीमार पड़ी है अब, कानून की आँख में पानी है।।

परीक्षा का खौफ़ दिखाकर, गुरुवर भी छलने वाले है।
किस पर बिचारी भरोसा रखे, साधु भी हरने वाले हैं।।
कहीं-कहीं पे भरी सभा में  नारी को दावं लगाते है।
मर्द कुकर्म करता है और औरत को सजा सुनाते हैं॥
सदियों तक वो ज़ुल्म सह चुकी, अब तो मुक्ति पानी है।
न्याय बीमार पड़ी है अब, कानून की आँख में पानी है॥

जीवन से गर जीत गयी, फ़िर कानून से लड़ती है।
देखो फांसी पर झूल गयी, दुनियाँ जब हसती है।।
कानूनी लड़ाई लड़ते-लड़ते जीवन जीना भूल गयी।
क्या करती बेचारी थक हार कर फांसी पर झूल गयी।।
मेरे शहर भिलाई की भी ऐसी ही दुख भरी कहानी है।
न्याय बीमार पड़ी है अब कानून की आँखों में पानी है।।

इलाज़ पीलिया का करने के लिए अस्पताल बुलाया था।
दो आरक्षक एक डाक्टर ने मिलकर कहर बरपाया था।।
सरकारी वकील की सांठगाठ भी बेचारी बोल रही है।
निर्भया तो अब नहीं रही, ख़त सारे पर्दे खोल रही है।।
इन सबकी मिली भगत देखकर बेचारी ने हार मानी है।
न्याय बीमार पड़ी है अब, कानून की आँख में पानी है॥

बेटी ने सुसाईड नोट में लिखा है, न्याय की उम्मीद नहीं।
अपराधियों का बोलबाला है, सच्चाई की जीत नहीं।।
बलात्कारी अब तो घर आकर मुझको ही धमकाते है।
कुछ ऐसै निर्लज्ज है जो शादी का प्रस्ताव भी लाते है।।
न्याय मिलेगा सोच रही थी,शायद ये मेरी नादानी है।
न्याय बीमार पड़ी है, अब कानून के आँख में पानी है॥

बेटी फांसी पर झूल गयी, क्या अपराधी फांसी चढ़ पायेगें?
घर आकर धमकाने वाले भी अब, क्या सक्त सजा पायेंगे ?
निर्भया को जेल से हररोज़ अपराधी के फोन आते थे।
खत्म कर देगें माँ, बाप, भाई को कहकर वो डराते थे।।
कोई कहने आता था,अब बरबाद तेरी ज़िन्दगानी है।
न्याय बीमार पड़ी है अब, कानून की आँख में पानी है।।

बाप रो रहा है आंगन में, माँ की हालत दयनीय है।
टूटी-फूटी घर के भीतर, पीड़ा ये असहनीय है॥
माँ की ममता फूट-फूटकर अब तो दिन-रात रो रही है।
उसकी राजदुलारी बिटिया आज अर्थी पर सो रही है।।
छोटी बहन की आँखों को अब ताउम्र आंसू बहानी है।न्याय बीमार पड़ी है अब, कानून की आँख में पानी है॥

आंसू को स्याही बनाकर, मैं ये कविता लिख रहा हूँ।
निर्भया को न्याय मिले, मैं भरे गला से चीख रहा हूँ।।
मन भिगोकर पढ़ लेना, दर्द से कागज़ सीच रहा हूँ।
निर्भया  की पीड़ा पर मैं  तिल-तिल कर मिट रहा हूँ।।
घर से निकलो बाहर तुम, ये जन आंदोलन की वाणी है।
न्याय बीमार पड़ी है अब, कानून की आँख में पानी है।।

ओमप्रकाश चंदेल “अवसर”
पाटन दुर्ग छत्तीसगढ़
7693919758

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