पकड़ मत कान री मैया
पकड़ मत कान री मैया
कसम कुण्डल की खाऊँ मैं।
शिकायत कर रही झूठी
कहानी सच की बताऊँ मैं ।।
करूँ क्यों मैं भला चोरी
घर में हैं बहुत माखन।
नचाती नाच छछिया पे
चखूँ मैं स्वाद को माखन।।
चूमकर गाल को मेरे
करती लाल सब ग्वालन।
छुपाने को इसी खातिर
लगाती मूँह पे माखन।।
सताई सब मुझे कितना
तुझे कैसे बताऊँ मैं?
पकड़ मत कान री मैया
कसम कुण्डल की खाऊँ मैं।।
शिकायत कर रही झूठी
कहानी सच की बताऊँ मैं।।
चराए शौख से कन्हा
मिलकर ग्वाल संग गैया।
गरीबी में करे कोई
मजूरी हाथ से मैया।।
भरन को पेट मैं इनके
घर -घर खास की जाऊँ मैं।
‘विनयचंद ‘हो मगन मन- मन
लीला रास की गाऊँ मैं।।
पकड़ मत कान री मैया
कसम कुण्डल की खाऊँ मैं।
शिकायत कर रही झूठी
कहानी सच की बताऊँ मैं।।
बहुत सुन्दर, बहुत खूब, वाह
बहुत बहुत आभार सहित धन्यवाद
Bahut sundar
Thanks
Gajab Ki poem h
Thanks
Good
Thanks
बहुत सुंदर रचना
धन्यवाद
बहुत सुन्दर
धन्यवाद
Nice poetry on my kanhaiyaji
Thank you very much
About sunder pt. Ji
Thank you very much
Thank you
अतिसुन्दर, बहुत खूब, शास्त्री जी
बहुत बहुत धन्यवाद
Nice poetry
Thank you sir
Nice poem
Thank you very much sir
बहुत खूब गुरुजी
बहुत बहुत धन्यवाद सहित आभार श्रीमान्
अतिसुन्दर रचना।
धन्यवाद
Bahut sundar
धन्यवाद
Very nice
Thanks
Nyc kavita
Thank you
वाह पंडी जी वाह , क्या कमाल की कविता लिखी है , आपकी कविता को पढ़के ऐसा , मानो खुलता गुलाब दिल में बहार , सच में आपकी कविता अनोखी है मन करता है कि बार बार पढू , अंत पुनः धन्यवाद
Thankv you very much for your precious comment on my poem about shreekrishna
Bahut hi sundar kavita h