प्रमाण
अनुभव के अतिरिक्त कोई आधार नहीं ,
परमेश्वर का पथ कोई व्यापार नहीं।
प्रभु में हीं जीवन कोई संज्ञान क्या लेगा?
सागर में हीं मीन भला प्रमाण क्या देगा?
खग जाने कैसे कोई आकाश भला?
दीपक जाने क्या है ये प्रकाश भला?
जहाँ स्वांस है प्राणों का संचार वहीं,
जहाँ प्राण है जीवन का आधार वहीं।
ईश्वर का क्या दोष भला प्रमाण में?
अभिमान सजा के तुम हीं हो अज्ञान में।
परमेश्वर ना छद्म तथ्य तेरे हीं प्राणी,
भ्रम का है आचार पथ्य तेरे अज्ञानी ।
कभी कानों से सुनकर ज्ञात नहीं ईश्वर ,
कितना भी पढ़ लो प्राप्त ना परमेश्वर।
कह कर प्रेम की बात भला बताए कैसे?
हुआ नहीं हो ईश्क उसे समझाए कैसे?
परमेश्वर में तू तुझी में परमेश्वर ,
पर तू हीं ना तत्तपर नहीं कोई अवसर।
दिल में है ना प्रीत कोई उदगार कहीं,
अनुभव के अतिरिक्त कोई आधार नहीं।
अजय अमिताभ सुमन
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Satish Pandey - January 24, 2021, 4:49 pm
बहुत खूब, अति सुन्दर रचना
Ajay Amitabh Suman - January 24, 2021, 7:07 pm
धन्यवाद
Geeta kumari - January 24, 2021, 6:37 pm
बहुत सुंदर रचना
Ajay Amitabh Suman - January 24, 2021, 7:08 pm
धन्यवाद
Pt, vinay shastri 'vinaychand' - January 25, 2021, 8:19 am
अतिसुंदर भाव