मेरे अस्तित्व

मेरे अस्तित्व
के इर्दगिर्द
बैठे है
कई जाल मकड़ी के
भेदना असंभव
मगर प्रयास अनवरत

मेरे सत्य
के इर्दगिर्द
बैठे है
असत्य के पंछी
उड़ाना असंभव
मगर प्रयास अनवरत

मेरे मन
के इर्दगिर्द
बैठे है
अहंकार के पशु
भगाना असंभव
मगर प्रयास अनवरत

मेरे कामना
के इर्दगिर्द
बैठे है
भाग्य के दानव
हटाना असंभव
मगर प्रयास अनवरत

मेरी आत्मा
के इर्दगिर्द
बैठा हूँ
मैं स्वयं
निहारना संभव
पर प्रयास अतृप्त

राजेश’अरमान’

Related Articles

दुर्योधन कब मिट पाया:भाग-34

जो तुम चिर प्रतीक्षित  सहचर  मैं ये ज्ञात कराता हूँ, हर्ष  तुम्हे  होगा  निश्चय  ही प्रियकर  बात बताता हूँ। तुमसे  पहले तेरे शत्रु का शीश विच्छेदन कर धड़ से, कटे मुंड अर्पित करता…

“मैं स्त्री हूं”

सृष्टि कल्याण को कालकूट पिया था शिव ने, मैं भी जन्म से मृत्यु तक कालकूट ही पीती हूं।                                                    मैं स्त्री हूं।                                              (कालकूट –…

Responses

New Report

Close