“रावण का अहंकार”
जो मनुज होते हैं धरातल पर ही रहते हैं
जो दनुज होते हैं पवन में उड़ते रहते हैं
रावण का अहंकार जब हद से बढ़ता है,
लेकर धनुष और तीर राम संहार करते हैं
यह मत समझ तू मूढ़ बुद्धी है नहीं मेरे
बहरूपियों के हर रूप से हम परिचित रहते हैं..
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झूठ कितना भी तांडव कर ले
सच के आगे उसे झूकना पड़ेगा ।
क्रोध कब-तक आग बनके जलेगा
आखिर राख बनके उसे सोचना पड़ेगा ।।
कवि विकास कुमार
Thanks a lot
बहुत खूब
Thanks
बहरूपियो के हर रूप से तो हम परिचित रहते हैं
पर ना जाने क्यों सच्चाई कहने की बारे में हम कुछ भी ना कहते हैं