रिश्तों के बाजार में अब तो नाते बिकते हैं ।

रिश्तों के बाजार में अब तो नाते बिकते हैं ।
मात-पिता को छोड़ अब वह सुत प्यारा,
अब तो सास श्वसुर के पास रहते हैं ।
रिश्तों के बाजार में अब तो नाते बिकते हैं ।
इधर-पिता माता अन्न-जल को तरसे,
उधर वह सास-श्वसुर को मालपुआ खिलाते है ।
इधर मात-पिता झोपड़ी में बसर करते,
उधर ससुराल में वह भवन बनाते है ।
रिश्तों के बाजार में अब तो नाते बिकते हैं ।
इधर भाई मूर्ख वरदराज पडें है,
उधर साले साहब को कालिदास बनाते है ।
इधऱ भाई दाने-दाने को तरसे,
उधर वह साले-साहब को रेस्टूरेण्ट में भोजन कराते है ।
रिश्तों के बाजार में अब तो नाते बिकते हैं ।
धर बहन युवती पड़ी है,
उधऱ साली-साहिबा की मंडप सजाते है ।
इधऱ बहन की आबरू लूटी जा रही है,
उधर वह साली-साहिबा की इज्जत के ठेके ले रखे है।
रिश्तों के बाजार में अब तो नाते बिकते हैं ।
इधऱ इनकी मुफलिसी पे जहां हँसे,
उधऱ वह अपनी रईसी जहां को दिखाते है ।
इधऱ इनकी मुफलिसी मौन है,
उधर वह अपनी रईसी में गुम है ।
रिश्तों के बाजार में अब तो नाते बिकते हैं ।
इधऱ मात-पिता, भाई-बहन.
अपनी किस्मत पे रोते,
और उधर वह निज सास-श्वसुर,
साले-साली साहिबा में गुम है ।
रिश्तों के बाजार में अब तो नाते बिकते हैं ।
इधर मात-पिता निज बहु को तरसे,
उधर वह निज मात-पिता में गुम है ।
इधर भाई-बहन स्व भाभी को तरसे,
इधर वह निज भाई-बहन सखियों में गुम है ।
रिश्तों के बाजार में अब तो नाते बिकते हैं
इधर ननद भाभी को तरसे,
उधर वह अपनी सखियों में गुम है।
इधर ननद निज मात-पिता की सेवा करती,
उधर बहु निज मात-पिता में गुम है ।
रिश्तों के बाजार में अब तो नाते बिकते हैं ।
शर्म भी इनसे शर्म हो चुकी है ।
लज्जा तो इन्हें आती नहीं, ये निर्लज्ज कहलाते हैं ।
रिश्तों के बाजार में अब तो नाते बिकते हैं ।
इधर-उधर की बातों को अब क्या कहें हम लोगों से ।
यह तो दहेज का दुष्परिणाम है ।
यहीं तो जहां का विधान है ।
रिश्तों के बाजार में अब तो नाते बिकते हैं ।
न दहेज की माँग होती,
न रूठती दुल्हन घर की ।
न नैहर रहती सदा के लिए ।
न मा-बाप दुल्हन को तरसती,
और न भाई-बहन भाभी को तरसते ।
रिश्तों के बाजार में अब तो नाते बिकते हैं ।
अन्ततः यही कहना हैः-
दहेज के सम्बन्ध में
दहेज घातक होता सभी के लिए ,
क्योंकि इसके कारण मर जाती युवतियाँ अविवाहित ।
शर्म करो मानव-3 समझों रिश्तों की अहमियत को,
कुछ तो कद्र करो, जहां में रिश्तों की ।
रिश्तों के बाजार में अब तो नाते बिकते हैं ।

 विकास कुमार

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