ले गई मुझको रोशनी जाने कहाँ…!!!
ले गई मुझको रोशनी जाने कहां!
रहा तिमिर में बसेरा अपना सदा।
कोशिशों की बनाकर के बुनियाद हम,
रोज कोसों चले नंगे पैरों से हम।
बनाती रही हमको महरुम वो,
स्वप्न देखे सदा जब कभी भोर हो।
हम चले दूर तक कारवां बन गया,
मिल गया हमको सब कुछ दूर तू हो गया।।
सुंदर तस्वीर के संग सुंदर कविता के बोल तारीफ़ ए क़ाबिल है। भावपूर्ण रचना प्रस्तुत किया है प्रज्ञा जी मुझे काफी पसंद आया।
बहुत-बहुत धन्यवाद आपका
आपकी कविता पद के मेरा मन प्रफुल्लित हो गया
बहुत-बहुत धन्यवाद सुनील जी
बहुत ही सुंदर लेखन
धन्यवाद एकता