वासना क्या है , ये जानना आज बड़ा सवाल बन चुका है ।

वासना की गंदी हवा बह रही है ।
चारों-तरफ अत्याचार फैल रही है ।
त्राहि-त्राहि करते संत आज जगत में ।
दुर्जनों की गर्जना धरा को दबा रही है ।
सज्जनों की चिख अंबर तक जा रही है ।
वासना की गंदी हवा बह रही है ।।1।।

अब चारों तरफ भ्रष्टाचारियों अपना घर बना रही है ।
पग-पग मिलते है आज सज्जनों का रक्त ।
दुर्जनों आज सज्जनों के रक्त का पिपासु बन रहे हैं ।
कौन-कौन बने हैं आज दुर्जन ये पहचानना कठिन है ।
बड़े की तो बात अलग है, आज नन्हें मुन्ने बालक भी शौतान बने रहे हैं
वासना की गंदी हवा बह रही है, बालक भी आज मात-पिता को सता रहें है ।।2।।

वासना क्या है , ये जानना आज बड़ा सवाल बन चुका है ।
आदत भी आज लत का स्वरूप लेने लगा है ।
मानव आज वासना की गंदी किचड़ में फँसा है ।
कौन बचाये इसे ये तो खूद को पहचानने से इंकार कर चुके है ।
अब रास्ता भी इनका साथ छोड़ने लगा है ।
वासना की गंदी हवा बह रही है ।।3।।
कवि विकास कुमार

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