शब्द चित्र – सुबह हो रही है
सुबह हो रही है,
घौंसले से बाहर आने को आतुर
चिड़िया ने पंखों को भुरभुराया,
सहलाया, मानो योग कर रही हो,
गर्दन इधर की, उधर की
फुर्र उड़ी
अपने दैनिक कार्य निपटाने चली।
समय की पाबंद
अपनी प्राकृतिक ब्यूटी में
लग गई है ड्यूटी में
भोजन की व्यवस्था करने
खुद के लिए भी
अपने बच्चों के लिए भी।
अब आप भी उठो ना
कुछ काम में जुटो ना।
अतिसुंदर रचना
सादर धन्यवाद जी
प्रातः काल के सौन्दर्य का बहुत ही खूबसूरती से वर्णन किया गया है।
छोटी सी चिड़िया का भी बहुत सुंदर तरीके से मानवीकरण किया है कवि सतीश जी ने । प्राकृतिक दृश्य का यथार्थ चित्रण
इन बेहतरीन पंक्तियों हेतु आपको बहुत बहुत धन्यवाद, अभिवादन, ये पंक्तियाँ प्रेरणादायी हैं। जय हो
लाजवाब चिंतन
वाह सुन्दर शब्द चित्र
सुन्दर
काबिले तारीफ