सकरात की रंग
आज मैं खुश हूं सभी बुराई
पोंगल पर्व में झोंक
जलधर फाटक आज ना बंद कर
पतंग ना मेरी रोक
सजि पतंग वैकुंठे चली थी
अप्सरा संग करे होड़
रंभा मेनका झांक के देखे
किसके हाथ में डोर
बारहअप्सरा सोच में पड़ गई
कैसी यह रितु मतवाली
कल्पवृक्ष से धरा द्रम तक
सबकी पीली डाली
सब वृक्षों की डाल से उलझे
पवन के खुल रहे केश
केशु रंग फैलाते फिर रहे
कहां है कला नरेश
नदी नहान को तांता लग रहा
मिट रहे सबके रोग
मूंगफली ,खिचड़ी ,तिल कुटी का
देव भी कर रहे भोग
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Kya baat
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सुन्दर
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सुन्दर
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