सीधे – टेढ़े रास्ते..
कलियुग ही सही, मुझे सीधे रस्ते चलने दे,
सतयुग न सही ,मुझे टेढ़े रस्ते रास नहीं आते हैं।
……………✍️गीता..
कलियुग ही सही, मुझे सीधे रस्ते चलने दे,
सतयुग न सही ,मुझे टेढ़े रस्ते रास नहीं आते हैं।
……………✍️गीता..
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लोग मशहूर होने को टेढ़े रास्ते अपनाते हैं, लेकिन सच्चा कवि सच्ची राह चलता है। वाह
बात समझने के लिए और आपकी मूल्यवान समीक्षा के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद 🙏
मैं देखकर दंग रह गयी उनकी भूख को,
जो रात भर सोए नहीं मुझे हराने को।
सही कहा है मैम…..same here.
इतनी सुन्दर समीक्षा हेतु आपका हार्दिक आभार एवं धन्यवाद 🙏🙏
सही कहा आपने इतनी भी भूख क्या होगी जो लोग इस कदर रात रात भर लगे रहते हैं दूसरों को पीछे करने में
जाने दो ना ईशा जी लगे रहने दो,हम तो ठाठ से सोए…. hahaha
सुन्दर समीक्षा के लिए आपका बहुत बहुत आभार 🙏
सुन्दर पंक्तियां
आभार जी
सुंदर
बहुत बहुत धन्यवाद आपका भाई जी 🙏
सुंदर पंक्तियां
बहुत बहुत शुक्रिया मोहन जी🙏
कलयुग इसे ही कहते हैं, जब लोग अनायास ही ….
आपने बिल्कुल उचित लिखा है
बहुत बहुत आभार एवं धन्यवाद जी 🙏
बहुत खूब
बहुत बहुत शुक्रिया जी 🙏
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति
बहुत बहुत धन्यवाद आपका सुमन ही🙏
Very nice
Thanks pragya
बहुत सुंदर और सटीक अभिव्यक्ति
कविता के भाव समझने के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद सर 🙏
वाह बहुत खूब
Thank you very much kamla ji,very much obliged to you 🙏
सुन्दर पंक्तियां
हार्दिक धन्यवाद इन्दु मैम