सूर्य की लावण्यता से
लौट चल साथी !
यहाँ गम सबसे जियादा (ज्यादा) है
बेबुनियादी रस्मोरिवाज में
मन उलझा जाता है
करते रहे कोशिश लाख
जिंदगी संवारने की
पर तरुवर में पीत पत्र
फल से जियादा है
नई सुबह की तलाश में
जागे तमाम रात
सूर्य की लावण्यता से
मन ये जागा है
वाह, बहुत सुन्दर पंक्तियां
आभार
बहुत खूब
धन्यवाद
धन्यवाद
वह इसलिए नहीं रखा
क्योंकि ऐसे शीर्षक की कविता मैं लिख चुकी हूँ
मार्गदर्शन के लिए धन्यवाद