सौगात माँगता है
मेरी जान तुम्हारे जान का सौगात माँगता है।
ये जान लिया, जब जान मेरी ,
ले जान हथेली दिन-रात माँगता है। ।
लाँघ नफ़रत की दरिया मुश्कत से
इश्क का एक सरोवर आबाद माँगता है।
बीत जाएगी ये रात काली
ऐ ‘विनयचंद ‘ जुगनू -सी औकात माँगता है।।
बहुत खूब, शास्त्री जी, वाह वाह
शुक्रिया जनाब राम राम जी
बहुत लाजवाब
शुक्रिया जी
बहुत अच्छी कविता
धन्यवाद