अंजान सफ़र
मैं अंजान हूँ इस सफ़र में
मुझे कुछ नहीं है आता
तू ही बता मेरे साथी
कैसे बढूँ इस डगर में।
चुन ली है राह मैंने
तेरे संग ज़िन्दगी की
अब तू ही मेरा सहारा
अब तू ही मेरा किनारा।
अरमा भरे सफ़र में
पंखों में जो जां तूने भर दी
इस जागती आँखों में
ख़्वाबों से बाहं भर दी।
नहीं पता मुझे
तुझे किस नाम से पुकारूं
बस तू ही मेरा हमदम
बस तू ही मेरा हमसफ़र।
बाहों में भर के रखना
नाज़ुक सी इस कली को
फूलों की तरह महकाना
मेरी खामोश ज़िन्दगी को।
जब दिल हो मुश्किल में
मेरा साथ देना हमदम
तेरे बिन मैं अधूरी
ये याद रखना हर दम।
माना कि राह है मुश्किल
इस अंजान सफ़र में
मगर जलता दिया भी तो
अंधेरों से कहां डरता।
अंजान हूँ इस सफ़र में
मेरा हाथ थाम के रहना
ऐ मेरे हमदम
तू साथ मेरा देना।
— सीमा राठी
द्वारा–श्री रामचंद्र राठी
श्री डूंगरगढ़ (राज.)
Asm Poem Seema JI
shukriya dev ji
Nice mam
thanks
Wonderful really
shukriya
वाह बहुत सुंदर
Superb