कर्म
मे शुन्य हूँ, मैं अनन्त का सोचता हूँ। आज भले ही जमीन पर हूँ, आसमान मे उड़ने का सोचता हूँ। कोरा कागज हूँ मैं पर रंगने का सोचता हूँ।
मैं केवल सोचता ही नहीं होसला भी रखता हूं, मंजिल को पाने के लिये पृयतन हजार भी करता हूँ। गिरता हूँ, सभंलता हूँ, हार नहीं मानता हूं। कुछ इसी तरह चलते चलते दोडना भी सीखता हूँ।
तू क्यों हिचकता है डरता है,तू भी तो ख़ास है।-2 तुझे बस अपने वचृस्व की तलाश है।-2 तू तो दोडना भी जानता है फिर रूकने का क्यों सोचता है। तू अर्जुन है पांडवों का, रस्ता बनाए चलता है। समय का इतंजार कर, वक्त भी पलटता है।
तू क्यों हिचकता है डरता है,तू भी तो ख़ास है।-2 तुझे बस अपने वचृस्व की तलाश है।-2 तू तो दोडना भी जानता है फिर रूकने का क्यों सोचता है। तू अर्जुन है पांडवों का, रस्ता बनाए चलता है। समय का इतंजार कर, वक्त भी पलटता है।
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