“गुदड़ी का लाल”
बेबस बालक की होली
कैसे हो रंगों से भरी ?
एक तो तन पर फटे पुराने
चीथड़े लिपटे हैं
दूजे दो निवालों की खातिर
दुधमुहे बालक तरसते हैं
कितना कठिन होगा इनका जीवन
यही सोंचकर हम सिहरते हैं
बेबस और लाचारी में
कैसे इनके दिन कटते हैं !!
अतिसुंदर रचना
धन्यवाद
गरीब की बेबस भरी होली के दर्शन कराते हुए रचना ह्रदय विदारक मार्मिक
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आभार