टूटते गुलाब !!
आज तोड़ दी मैंने
पीली पत्तियां पौधों से
उसी तरह जैसे
मैं दिल से बेदखल
हुई थी तुम्हारे !
हरी पत्तियों पर जब पड़ती हैं
ओस की बूंदें
तो तुम्हारे होंठों पर
टूटते गुलाब याद
आते हैं…
हरी-हरी घास को जब
कंघी करती
ये हवाएं हैं तो
याद आ जाता है
वो हसीं लम्हा
जब तुम गेसुओं में मेरी
अपनी उंगलियां फेर देते थे
आज तोड़ दी मैंने वो
पीली पत्तियां पौधों से
अब सिर्फ हरी-भरी पत्तियां ही रह गई हैं !!
दिल को छू गई ये पंक्तियां।….. कवियित्री ने बहुत ही नज़ाकत और सुंदरता से अपनी यादों का जिक्र कर दिया।
अति उच्चस्तरीय लेखन प्रज्ञा,…..keep it up.
Thanks Di
प्राकृतिक उपमानों के सून्दर प्रयोग से ,मन की व्यथा का बहुत सुंदर चित्रण
Thanks Pratima
अतिसुंदर भाव
Thanks
बहुत सुंदर चित्रण है।
Thanks
वाह, बीती बातों को पीली पत्तियों का उपमान दिया गया है।पीली पत्तियों तो तोड़ना ही ठीक रहता है। ताकि हरे भरे तरीके से आगे बढ़ा जा सके। अतीव सुन्दर लेखनी को सैल्यूट है प्रज्ञा जी।
आभार भाई साहब
लक्षणा शब्द शक्ति का बहुत ही सुंदर प्रयोग, सकारात्मकता की तरफ शुरुआत के सुंदर भाव
बहुत सुंदर कविता
आपका धन्यवाद