थकना नहीं है राही
जब तक तेरे कदम तल
मंजिल शिखर न चूमें
थकना नहीं है राही
चलते ही रहना तब तक।
टकरा ले पर्वतों से
तू शक्तिपुंज बनकर,
अपनी जगह बना ले
अपनी भुजा के बल पर।
जब तक तेरे कदम तल
मंजिल शिखर न चूमें
थकना नहीं है राही
चलते ही रहना तब तक।
टकरा ले पर्वतों से
तू शक्तिपुंज बनकर,
अपनी जगह बना ले
अपनी भुजा के बल पर।
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बढ़िया बहुत बढ़िया
बहुत आभार
बहुत सुन्दर कविता
बहुत बहुत धन्यवाद
अतिस
अतिसुंदर
धन्यवाद
वाह सर ग्रेट
Welcome ji
Very nice
Thank you
सुंदर
बहुत बहुत आभार
प्रेरणादायक और अति सुंदर प्रस्तुति
सादर धन्यवाद जी
वाह, सर बहुत ही प्रेरणादायक पंक्तियां।
“मंज़िल शिखर ना चूमे,
थकना नहीं है राही”…….very inspirational sir
ऐसी रचनाएं वास्तव में ऊर्जा प्रदान करती है। आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित करती हैं। आपकी लेखनी को प्रणाम🙏
बहुत सुंदर टिप्पणी और समीक्षा। हृदय से आभार। सादर अभिवादन
सचमुच आप शक्तिपुंज है
अति सुंदर रचना
इन सुन्दर शब्दों हेतु बहुत सारा धन्यवाद ऋषि जी
सादर धन्यवाद जी
Bahut khoob
बहुत बहुत धन्यवाद प्रज्ञा जी