थकना नहीं है राही

जब तक तेरे कदम तल
मंजिल शिखर न चूमें
थकना नहीं है राही
चलते ही रहना तब तक।
टकरा ले पर्वतों से
तू शक्तिपुंज बनकर,
अपनी जगह बना ले
अपनी भुजा के बल पर।

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जो तुम चिर प्रतीक्षित  सहचर  मैं ये ज्ञात कराता हूँ, हर्ष  तुम्हे  होगा  निश्चय  ही प्रियकर  बात बताता हूँ। तुमसे  पहले तेरे शत्रु का शीश विच्छेदन कर धड़ से, कटे मुंड अर्पित करता…

Responses

  1. वाह, सर बहुत ही प्रेरणादायक पंक्तियां।
    “मंज़िल शिखर ना चूमे,
    थकना नहीं है राही”…….very inspirational sir
    ऐसी रचनाएं वास्तव में ऊर्जा प्रदान करती है। आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित करती हैं। आपकी लेखनी को प्रणाम🙏

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