Categories: हिन्दी-उर्दू कविता
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दुर्योधन कब मिट पाया:भाग-34
जो तुम चिर प्रतीक्षित सहचर मैं ये ज्ञात कराता हूँ, हर्ष तुम्हे होगा निश्चय ही प्रियकर बात बताता हूँ। तुमसे पहले तेरे शत्रु का शीश विच्छेदन कर धड़ से, कटे मुंड अर्पित करता…
मां तूं दुनिया मेरी
हरदम शिकायत तूं मुझे माना करती कहां निमकी-खोरमा छिपा के रखती कहां भाई से ही स्नेह मन में तेरे यहां रह के भी तूं रहती…
दुर्योधन कब मिट पाया:भाग-9
दुर्योधन भले हीं खलनायक था ,पर कमजोर नहीं । श्रीकृष्ण का रौद्र रूप देखने के बाद भी उनसे भिड़ने से नहीं कतराता । तो जरूरत…
और एक जाम
खत्म न हो जश्ने-रौनक हँसीन शाम की। आ टकरा लें प्याला और एक जाम की। देखो साकी खाली ना होने पाए पैमाना, ले आओ सारी…
रात तूं कहां रह जाती
अकसर ये ख्याल उठते जेहन में रात तूं किधर ठहर जाती पलक बिछाए दिवस तेरे लिए तूं इतनी देर से क्यूं आती।। थक गये सब…
बढ़िया बहुत बढ़िया
बहुत आभार
बहुत सुन्दर कविता
बहुत बहुत धन्यवाद
अतिस
अतिसुंदर
धन्यवाद
वाह सर ग्रेट
Welcome ji
Very nice
Thank you
सुंदर
बहुत बहुत आभार
प्रेरणादायक और अति सुंदर प्रस्तुति
सादर धन्यवाद जी
वाह, सर बहुत ही प्रेरणादायक पंक्तियां।
“मंज़िल शिखर ना चूमे,
थकना नहीं है राही”…….very inspirational sir
ऐसी रचनाएं वास्तव में ऊर्जा प्रदान करती है। आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित करती हैं। आपकी लेखनी को प्रणाम🙏
बहुत सुंदर टिप्पणी और समीक्षा। हृदय से आभार। सादर अभिवादन
सचमुच आप शक्तिपुंज है
अति सुंदर रचना
इन सुन्दर शब्दों हेतु बहुत सारा धन्यवाद ऋषि जी
सादर धन्यवाद जी
Bahut khoob
बहुत बहुत धन्यवाद प्रज्ञा जी