पीर का उपहार !!
आपको लगता है क्या
मैं चाँद हूँ या चाँदनी
रात के झुरमुट में बैठी
हूँ मैं कोई अप्सरा
गीत हूँ या हृदय की
टूटी-फूटी रागिनी…
आपको लगता है क्या..
अमरत्व का वरदान हूँ या
करुणत्व की उत्श्रृंखला
हूँ सरोवर प्रेम का या
पीर का उपहार हूँ !!
उत्श्रृंखला में श्र ह्रस्व होता है परंतु मेरे की-पैड से लिखा नहीं इसलिए क्षमा चाहती हूँ..
अमरत्व का वरदान हूँ या
करुणत्व की उत्श्रृंखला
हूँ सरोवर प्रेम का या
पीर का उपहार हूँ !!
वाह बहुत सुन्दर काव्य प्रतिभा है। लाजबाब पंक्तियाँ हैं, निश्चय ही प्रेम का सरोवर।
जय हो,
आभार
अमरत्व का वरदान ही समझ खुद को,
सकारात्मता से जी ले ये सुन्दर जीवन।
यदि, कभी कुछ में मुताबिक ना भी हुआ हो तो
सोच ,उसमे भी कुछ अच्छा ही था।
……………………….अति खूबसूरत काव्य रचना।
काबिले तारीफ 👏👏
मज़बूत लेखनी की पहचान।
Thanks
“कुछ मन मुताबिक ” पढ़ना है प्रज्ञा
typing mistake
Ok
बहुत खूब
Thanks
बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति
Thanks