प्रकृति का नियम
नफ़रतों के बीज बोकर,
प्रेम की फ़सलें उगाना।
कैसे सम्भव हो सकेगा,
यह जरा हमको बताना।
शूल बो कर शूल उगेंगे,
फूल बो कर फूल उगेंगे।
यह तो प्रकृति का नियम है,
इसमें कैसा है समझाना।।
_____✍️गीता
नफ़रतों के बीज बोकर,
प्रेम की फ़सलें उगाना।
कैसे सम्भव हो सकेगा,
यह जरा हमको बताना।
शूल बो कर शूल उगेंगे,
फूल बो कर फूल उगेंगे।
यह तो प्रकृति का नियम है,
इसमें कैसा है समझाना।।
_____✍️गीता
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बहुत ही सुंदर भाव बहुत सुंदर शिल्प। यह प्रकृति का अटल सत्य है कि हम जैसा बोयेंगे वैसा ही पायेंगे। स्नेह-प्रेम बोयेंगे तो स्नेह प्रेम पायेंगे। नफरत बोयेंगे तो नफरत उगेगी। अति सुंदर रचना।
कविता की इतनी सुंदर और सटीक समीक्षा के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद सतीश जी
शूल बो कर शूल उगेंगे,
फूल बो कर फूल उगेंगे।
बहुत सुंदर
समीक्षा हेतु धन्यवाद सर
बिल्कुल सही बात लिखी है आपने। वाह
बहुत-बहुत धन्यवाद पीयूष जी
कुछ लोग नफरत बोकर प्रेम चाहते हैं जो कि संभव नहीं होता है। बहुत सुंदर रचना
सुंदर समीक्षा हेतु आभार सर 🙏
बहुत खूब
सादर धन्यवाद भाई जी 🙏
नफ़रतों के बीज बोकर,
प्रेम की फ़सलें उगाना।
कैसे सम्भव हो सकेगा,
यह जरा हमको बताना।
शूल बो कर शूल उगेंगे,
फूल बो कर फूल उगेंगे।
यह तो प्रकृति का नियम है,
जैसा बेवोगे वैसा ही काटना पड़ेगा बहुत खूब