बींद के इंतजार में
आज कुछ बदला- बदला मिज़ाज है
दिल भी बेताब है
सिसकियाँ भी खामोश हैं…..
लफ्जों में मिठास है
गूंजती जा रही है
गलियों में शहनाई
बींद के इन्तज़ार में…..
बीती जा रही है स्वर्ण रात्रि
गेसुओं की घनी छाँव के तले बैठी
मेरी ख्वाइशों भरी एक शाम है….
Awesome
Nice
धन्यवाद
बदला बदला सा है मिजाज, क्या बात हो गई,
शिकायत हमसे है, या किसी और से मुलाकात हो गई।
और
काश तू सुन पाता खामोश सिसकियाँ मेरी,
पूर्व की शायरियों में आ चुके प्रतिमान हैं।
आप अपनी
ईर्ष्या को शांत कीजिए अलग-अलग आईडी बनाकर मुझे परेशान मत कीजिए मैं किसी की कॉपी नहीं करता समझे
खुद ही देख लीजिए कि जो आपने लिखा है और जो मैंने लिखा है उसमें कितना अंतर है और यह कविता मैंने अभी-अभी लिखी है जो सीधे मेरे ह्रदय से निकली है यह मात्र संयोग है
मैं किसी की आलोचना करता हूं तो साथ में उसकी समालोचना भी करता हूं मैं उसकी त्रुटियों को सिर्फ इसलिए दिन आता हूं ताकि वह आगे से गलती ना करें उससे नीचा दिखाने की कोशिश नहीं करता
बहुत सुंदर पंक्तियां