मासूम बचपन
मासूम बचपन कुचला जा रहा
भीतर से सहमा, बाहर से उददंड हुया
बिखरता हुया , गैज़ेटस के तले ,
अपनों के स्नेह-सानिध्य से वंचित
सहमा हुया, आयायों के तले ,
सर्वगुण- संपन्न बनाने की होड़ में
भागता हुआ, मृग मरीचिका के तले ,
सम्भाल लो,बचपन के खजाने को,
मासूम बचपन कुचला जा रहा।
बहुत आभार
यथार्थपूर्ण अभिव्यक्ति, बहुत सुन्दर
धन्यवाद
बहुत खूब
शुक्रिया
समसामयिक यथार्थ चित्रण ।माता पिता दोनों नौकरी पेशा होते हैं तो बच्चे नौकरों के सहारे ही पलते हैं। एकल परिवारों की विडम्बना यही है।
शुक्रिया
Very nice
Thanks
जितनी तारीफ करें उतनी कम
लाजवाब रचना
बहुत आभार