मासूम बचपन
बारिश में भीगते-भागते
खिलखिलाते वो दो बच्चे
ना सिर पर छतरी,
ना तन पर कोई रेनकोट
तेज़ हुई बारिश तो,
बैठ गए लेकर एक दीवार की ओट
चेहरे पर हंसी की फुलझड़ी
बालों से टपक रही थी
मोतियों की लड़ी
भीग कर भी खिलखिला रहे
दिख रहा ना कहीं कोई ग़म,
देख-देख मैं सोच रही थी
यही तो है मासूम बचपन
_____✍️गीता
बहुत ही यथार्थ समाया है आपकी इस रचना में।
समीक्षा हेतु आभार पीयूष जी
बहुत सुन्दर रचना
बहुत-बहुत आभार कमला जी
बहुत खूब
बहुत-बहुत धन्यवाद भाई जी🙏
बहुत सुंदर और लाजवाब रचना है।
बहुत-बहुत आभार सर
सच को उजागर करती कविता
बहुत-बहुत धन्यवाद चंद्रा जी
इस कविता में कवि गीता जी के द्वारा मासूम बचपन के सच को बेबाकी से प्रस्तुत किया गया है। यह कविता दर्शाती है कि जीवन, समाज और आसपास घट रहे के प्रति कवि का गहरा सरोकार है। कवि की शैली चिंतन-प्रशस्त है। परेशानी में भी खुश रहने की आकांक्षा है। कवि की वेदनामय दृष्टि को सहजता से महसूस किया जा सकता है। आम जीवन से उपजी इस कविता की भाषा आम जीवन की भाषा है। बहुत खूब।
कविता की इतनी सुन्दर समीक्षा की है सर आपने , कि मेरे हृदय के भावों को ही व्यक्त कर दिया भावों को इतनी अच्छी तरह से समझने के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद सतीश जी बहुत-बहुत आभार