मीठी सी बोली सुना दे
चल गुजिया ही खिला दे
मीठी सी बोली सुना दे
समझेंगे खेल ली होली,
पोत दे लालिमा रोली।
भूल जा सारी शर्म पुरानी
झिझक से काहे होली मनानी,
आज हमें है रस्म निभानी
चल गुजिया ही खिला दे
मीठी सी बोली सुना दे।
रंग से तर हैं लोग बिरज के
मन में लहर सी उठी है इधर से
हमको भी होली रंगा दे,
चल गुजिया ही खिला दे।
बहुत मीठी कविता
बहुत सुंदर रचना
चल गुजिया ही खिला दे
मीठी सी बोली सुना दे
समझेंगे खेल ली होली,
पोत दे लालिमा रोली।
_________ होली के त्यौहार पर गुजिया खाने की स्नेहिल सी मनुहार करती हुई कवि सतीश जी की बहुत खूबसूरत कविता बेहतर शिल्प, अतीव सुंदर भावाभिव्यक्ति
बहुत खूब
वाह
Beautiful poem
अतिसुंदर भाव
Jay ram jee ki
बहुत ही सुंदर होली पर लिखी गई रचना चल गुझिया ही खिला दे