“मेरी कलम की धार”✍
उठाई थी कलम कुछ अनसुलझे
सवाल लिखने के लिए।
अपने दिल के ज़ज्बात
ना जाने कब लिखने लगी।
लोग कहते हैं कि
मैं बहुत अच्छा लिखने लगी।
बस जितनी तकलीफें
मिलती रहीं तुझसे,
“मेरी कलम की धार”
उतनी तेज चलने लगी।
रूबरू होते गए हम
तेरे दर्द से जितना
मेरी आँखों से मोतियों की
लड़ी झड़ने लगी।
किस्से तो रोज सुनती थी
इश्क, मोहब्बत के।
पर ना जाने कब!
मैं भी तुझसे प्यार करने लगी।
रोका बहुत था मैंने अपने दिल को,
पर तुझे देखते ही मैं तुझ पर मरने लगी।
लोग कहते हैं कि
मैं बहुत अच्छा लिखने लगी।
पर मैं तो बस तेरा दिया हर दर्द लिखने लगी।
good
Thanks
beautiful
धन्यवाद
Nice
थैंक्स
अति सुंदर
धन्यवाद
बहुत बढ़िया
थैंक्स
उम्दा रचना और भाव
कवि के लिए कलम किसी तलवार से कम नहीं होता वह स्वयं में ब्रह्मा होता है कुछ भी लिख सकता है किसी भी चीज का सृजन कर सकता है कवित्री अपना यही भाव इस कविता में दिखा रही है बहुत उम्दा बहुत सुंदर
बहुत ही उम्दा
थैंक्स फॉर कमेंट्स
🙏