मेहनत के रंग
वो बूढ़ी थी, गरीब थी
भीख नहीं मांगी थी उसने,
पैन बेच रही थी राहों में
मेहनत का खाने की ठानी,
मेहनत का ही खाती खाना
मेहनत का ही पीती पानी।
कहती थी यह पैन नहीं है,
यह तो है किस्मत तुम्हारी
खूब पढ़ना लिखना बच्चों
बदलेगी तकदीर तुम्हारी।
बदलेगा फिर भारत सारा,
बदलेगी तस्वीर हमारी।।
____✍️गीता
वाह बहुत खूब
आभार पीयूष जी
खूब पढ़ना लिखना बच्चों
बदलेगी तकदीर तुम्हारी।
बदलेगा फिर भारत सारा,
बदलेगी तस्वीर हमारी।।
——— वाह क्या बात है, आपकी लेखनी में अद्भुत प्रेरणा शक्ति विद्यमान है। जो भी लिख रही हैं लाजवाब लिख रही हैं। भाषा, भाव, संवेदना सभी कुछ उच्चस्तरीय है। जय हो
आपकी दी हुई समीक्षा में अद्भुत प्रेरणा और उत्साह वर्धन है सतीश जी ,अभिवादन सर
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति
सुन्दर समीक्षा हेतु आपका हार्दिक आभार भाई जी🙏
बूढी औरत की मेहनत को प्रदर्शित करती हुई रचना