मोहब्बत का फसाना
खो गया था मैं अपने आप में ही
और तेरी याद में तड़पता रहा
इतने सालों बाद तेरी गलियों में कदम रखा
नाम लेकर तेरा पुकारता तुझे भटकता रहा.
इस उम्मीद में कि तुम कहीं तो मिलोगे
मैं जोर से आवाज लगाता रहा
ढूंढा वो चौबारा, देखा वो गलियारा
बार-बार चक्कर तेरे चौराहे के लगाता रहा.
क्या भूल गए लोग
अब हमारी मोहब्बत का फसाना
रवैया ऐसा है उनका
मानो कह रहे हो दोबारा इन गलियों में ना आना.
कहीं से आकर मुझे पत्थर लगा
समझ लिया कि गुजरे जमाने की आहट मिल गई
किसी को आज भी याद है हमारी मोहब्बत
यह सोच दिल को राहत मिल गई.
सुंदर
इल्जाम सभी अपने ऊपर लेते हैं बेरहम जमाने के,
मोहब्बत करने वाले तो
बस बहाने ढूंढते हैं पत्थर खाने के
धन्यवाद
Nice
धन्यवाद
nice
धन्यवाद
छा गए
धन्यवाद
कोई बात नहीं
Ok