वक्त से गुजारिश

उस सूखे पेड़ पर
क्या चिड़िया फिर न चहचहाएंगी
सूख गया जो शजर
वक्त की बेवक्त मार से
क्या उस शजर की डालियाँ फिर न लहराएगी
जिन्दगी बन गयी गुमसुम
और, हम गुमनाम बनकर रह गए
क्या जीवन में
खुशियों की वो घडियां, कभी लौटकर न आएंगी
आखिर क्या उदासी ही छाई रहेगी इधर
कभी खुशियाँ इधर न आएंगी।
2-वक्तकी मार से झुलसी हुई जमीं
क्या सूखे से बच, पुनः जीवित हो जाएगी
सूख गई जो फसलें, इक- इक पल के इन्तजार में
क्या पलटेगी पासा प्रकृति
क्या सूखी फसलें, फिर लहलहाएंगी
कर्ज में सिर से पांव तक डूबे हुए
किसान के घर, क्या खुशियाँ लौटकर आएंगी
उस मेहनतकश के पसीनों का हिसाब
क्या जमीं उसे दे पाएगी
इक- इक सपने जोडकर
जो उठाई थी खुशियों की दीवारें
जो वक्त के कहर से गिर गई
या, यूँ कहे कि वक्त ने उसे गिरा डाला
क्या उन्हीं सपनों को लेकर
वो, दीवारें पुनः खडी हो पाएंगी।
3-पूंछता हूँ, दिशाओं से, उन बेदर्द हवाओं से
हर बार बदलती, उन सभी फिजाओं से
जो सूख गए पत्ते-जो सूख गई शाखें
क्या गिरकर वो पुनः
अपने साथी से मिल पाएंगी
या, इक गरीब के टूटे हुए, स्वपनों की तरह
दबेंगी जमीं में, या, जमींदोज ही हो जाएंगी।
4-ये मानता हूँ कि वक्त, तू बड़ा बलवान है
चलता रहता है तू, तुझको चलने का मान है
क्या किसी की खुशियों की खातिर
तेरी सुईयां थम न जाएंगी
अधेंरे ही रहेंगे क्या जिन्दगी भर के साथी
क्या रोशनियां, कभी अपनी दोस्ती न निभाएंगी।
उस सूखे पेड़ पर……..
धन्यवाद
धन्यवाद
Dharamveer Verma’धर्म’

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