वाह !! कहीं कहीं…..
कहीं दीप जले तो कहीं ,
गरीब के घर में चूल्हा न जले।
हम खुशियाँ मनाते रहे और वो,
अंधेरे में माचिस खोजते रहे।।
कहीं दीपावली की धूम तो कहीं
पापी पेट में भूख की शहनाई।
गगन में देखो रंग बिरंगी पटाखे
वाह रे दुनिया क्या मस्ती है छाई ।।
भाव पूर्ण रचना
इसी को कहा गया है सर..
कहीं धूप कहीं छाया
यही है ईश्वर की माया..
अत्यन्त संवेदनशील एवं यथार्थ रचना जिसकी समीक्षा करने में मैं असमर्थ हूँ…😯😯😯
बहुत खूब
Nice