Categories: हिन्दी-उर्दू कविता
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दुर्योधन कब मिट पाया:भाग-34
जो तुम चिर प्रतीक्षित सहचर मैं ये ज्ञात कराता हूँ, हर्ष तुम्हे होगा निश्चय ही प्रियकर बात बताता हूँ। तुमसे पहले तेरे शत्रु का शीश विच्छेदन कर धड़ से, कटे मुंड अर्पित करता…
मैं हूँ नीर
मैं हूँ नीर, आज की समस्या गंभीर मैं सुनाने को अपनी मनोवेदना हूँ बहुत अधीर , मैं हूँ नीर जब मैं निकली श्री शिव की…
क्यों सत अंतस दृश्य नहीं
सृष्टि के कण कण में व्याप्त होने के बावजूद परम तत्व, ईश्वर या सत , आप उसे जिस भी नाम से पुकार लें, एक मानव…
जो भी सृजन हो धर्म से हो
ब्रह्मचर्य, हाँ ठीक है कहना, लेकिन क्या भारतमाता के सभी पुत्र ब्रह्मचारी बन सृजन से दूर चले जाएँ। नहीं – नहीं नयी पीढ़ी का सृजन…
यह दिशा नहीं राजनीति की
यह दिशा नहीं राजनीति की पीड़ित परिवार के घर जाओ यह दिशा नहीं राजनीति की रेप जैसी घटना पर राजनीतिक रोटियां सेकों यह दिशा नहीं…
Sundar
धन्यवाद
बहुत बहुत आभार आपका
Good