देखो कैसा कोरोना का जग में कहर हो गया
देखो कैसा कोरोना का जग में कहर हो गया ?
जिसे अपना बनाया वही बेगाना शहर हो गया।।
लेके दिल में तमन्ना था आया यहाँ।
बन्द सब कुछ हुआ अब जाए कहाँ?
न खाने को कुछ है बचा और जीना दुष्कर हो गया।
देखो कैसा कोरोना का जग में कहर हो गया।।
बन्द फैक्टरी हुई सब धन्धा गया।
कार रिक्शा चलाना भी मन्दा भया।।
अब तो किराये के घर से भी बेघर हो गया।
देखो कैसा कोरोना का जग में कहर हो गया।।
कोई पैदल चला कोई साईकिल सवार।
बस ट्रक से चला कोई यू•पी• बिहार।।
कुछ अफवाहें उठी व टीशन पे भगदर हो गया।
देखो कैसा कोरोना का जग में कहर हो गया। ।
बड़ी मुश्किल से कुछ रेलगाड़ी मिली।
जैसे तैसे श्रमिकों हित सवारी मिली।।
बांध मुख पे सब पट्टी आठों पहर हो गया।
देखो कैसा कोरोना का जग में कहर हो गया।।
गाड़ी चलती रही मन मचलता रहा।
देख खिड़की से हर मन पिघलता रहा।।
गांव जाकर भी सब के सब बेघर हो गया।
देखो कैसा कोरोना का जग में कहर हो गया।।
आत्मनिर्भर बनो एक स्लोगन मिला।
भूखे प्यासे को वाह क्या भोजन मिला।।
देख दुनिया ‘विनयचंद ‘ किधर का किधर हो गया।
देखो कैसा कोरोना का जग में कहर हो गया। ।??
Bahut badhiya
Shukriya
Nice poetry 👌👌
Thanks
Nice lines
Thanks
सुन्दर रचना
Thanks धन्यवाद
Nice
Thanks
बहुत खूब पंडित जी
धन्यवाद
Bahut sunder…kavita
धन्यवाद
Nice poetry
Thanks
Bahut sunder
धन्यवाद
Sunder kavita hai
धन्यवाद धन्यवाद
काबिले तारीफ़
धन्यवाद
वाह
धन्यवाद
धन्यवाद
मुबारक हो विनय जी।
प्रथम पुरस्कार के लिए बधाई स्वीकार करें विनय जी
👌
गुड
Super s super