रक्षाबंधन
कुछ इस तरह रिश्ते का मान रह जाए,
तेरी राखी में बंधके मेरी आन रह जाए..
तेरे बाँधे हुए धागे की गाँठ जो छूटे,
मुद्दत्तों बाद भी उसका निशान रह जाए..
रेत के टीले पर बचपन में घर बनाया था,
आज इस उम्र में भी वो मकान रह जाए..
बड़े गिलास में शर्बत के लिए लड़ते थे,
काश वैसा ही आज भी गुमान रह जाए..
दौड़ते दौड़ते साईकिल सिखाई थी तुझको,
गुजरते वक्त को शायद ये ध्यान रह जाए..
तूने बचपन में ली है मुझसे कई दफा रिश्वत,
उन्हीं यादों में बसके मेरी जान रह जाए..
ये सिलसिला कि तू कॉलेज में टॉप कर ले और,
खिंचे बिना जो कभी मेरा कान रह जाए..
मुझे पहले की तरह बात हर बताना तुम,
भावनाओं का ना दिल में उफान रह जाए..
कुछ इस तरह रिश्ते का मान रह जाए,
तेरी राखी में बंधके मेरी आन रह जाए..
– ‘प्रयाग धर्मानी’
Nice
Thanks Ji
बहुत ही बेहतरीन प्रस्तुति
बड़े भाई का छोटी बहन के प्रति प्रेम भावना का सजीव चित्रण
जी बिल्कुल ठीक समझा आपने
वाह वाह
बहुत शुक्रिया आपका
Nice
धन्यवाद महोदय
बेहतरीन प्रस्तुति ।बचपन के दिन याद आ गए ।बहुत ही सुंदर एवं शालीन रचना।
धन्यवाद आपका