बरसात के आंनद और परेशानियां

सावन की कमी पूरी हो गई,
भादों में वर्षा की झड़ी हो गई।
बदरा गरज गरज कर बरस रहे ,
निर्मल झरने कल कल कर बह रहे।

बिजली चम चम कर चमक रही,
मयूरी छम छम कर नाच रही।
ठंडी ठंडी हवा सन सना रही,
प्रकृति में चारो और हरियाली छा रही।

एक तरफ मन में खुशियां आ रही,
दूसरी ओर नदियां तांडव दिखा रही।
मंदिर मकान सबकुछ डूब गए,
अपनों तक जाने वाले रास्ते टूट गए।

भ्रष्टाचारी पुल पहली बारिश सह ना सके,
नदियों की धारा संग मिलकर चल बसे।
चारो और जलजला आ रहा है,
फसलों को अपने में समा रहा है।

सैलाब में भी सेल्फी भा रही ,
जोखिम लेकर गाडियां भी जा रही,
सैनिक जिंदगी बचाने में जी जान लगा रहे,
मगर कुछ तो जान करके मरने जा रहे।

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Responses

  1. समाज को प्रेरित करती हुई प्रकृति का मोहक और कठोर रूप दोनों को एक साथ दर्शाती हुई सुंदर कविता👏👏👏

  2. एक तरह वर्षा के सुहाने मौसम का सुंदर चित्रण ,और दूसरी ओर बारिश के कहर का यथार्थ चित्रण, वाह। इन दोनों रूपों के समागम से परिपूर्ण अति सुंदर रचना।👏👏

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