Categories: शेर-ओ-शायरी
Related Articles
शायरी संग्रह भाग 2 ।।
हमने वहीं लिखा, जो हमने देखा, समझा, जाना, हमपे बीता ।। शायर विकास कुमार 1. खामोश थे, खामोश हैं और खामोश ही रहेंगे तेरी जहां…
गुनहगार हो गया
सच बोलकर जहाँ में गुनहगार हो गया, लोगों से दूर आज मैं लाचार हो गया। जो चापलूस थे सिपेसालार बन गए, मोहताज़ इक अनाज़ से…
विजय मिली विश्राम न समझो
ओ विप्लव के थके साथियों विजय मिली विश्राम न समझो उदित प्रभात हुआ फिर भी छाई चारों ओर उदासी ऊपर मेघ भरे बैठे हैं किंतु…
कभी तो बेवजह मुस्कुराओ
खुशियों को आने का मौका दो कभी तो बेवजह मुस्कुराओ यक़ीनन बहारें लौट आएँगी तुम ज़रा धीमे से खिलखिलाओ ढलती उम्र सी हर पल ये…
Wow, very nice sir
Typing mistake रुष्ठ के स्थान पर रुष्ट पढ़ने की कृपा करेंगे। धन्यवाद
अति सुन्दर प्रस्तुति..
आपकी सुन्दर टिप्पणी हेतु अभिवादन
“नैन क्या कम दुष्ट हैं” वाह सर वाह खूब अच्छा
नैन हीं है जो नाम से बदनाम करते हैं,
मत गिरो किसी की नजरों में
वरना घरवाले भी
सूरज की रोशनी में
पहचानने से इनकार करते हैं
ऋषि जी, आपने इतनी सुंदर समीक्षा की है, आपको बहुत बहुत धन्यवाद, आपका स्नेह यूँ ही बना रहे।
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति।
सादर धन्यवाद अमित जी
ध्वन्यात्मक साम्य का प्रयोग काबिले तारीफ
है और क्या कहूँ…
बहुत बहुत धन्यवाद प्रज्ञा जी, आपकी सुन्दर टिप्पणी और पारखी समीक्षा से मन हर्षित है।
आभार
अतिसुंदर भाव
सादर धन्यवाद आदरणीय शास्त्री जी, आपका स्नेह व आशिर्वाद सदैव बना रहे।
जबरदस्त
Thanks
Very good
Thanks
बहुत खूब
Thank You Ji
very nice
बहुत बहुत धन्यवाद
बहुत सुन्दर
बहुत बहुत धन्यवाद
सुन्दर
सुन्दर टिप्पणी हेतु सादर धन्यवाद सुमन जी