मक़बूल नहीं

रफ्ता-रफ्ता चलते-चलते
पहुँच गए हम किस मंजिल पे
बोध नहीं है, सुध-बुध खोके
मक़बूल नहीं,सब अर्पित करके

(मकबूल-सर्वप्रिय)

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