कर्म पथ पर चल अडिग
राह में बाधाएं तेरे
आयें तो तब भी न रुक
शक्ति की मूरत है तू
छोड़ दे ये मन के दुख।
कर्म पथ पर चल अडिग
हो सत्य तेरे हाथ में
राह सच की चलते चल
ईश्वर है तेरे साथ में।
चलते हैं जो स्वस्थ मन से
कर्मपथ पर चाव से
उनको नहीं चिंता कि
कोई प्रेम दे या घाव दे।
खुद के दम पर चलते चल
पीछे नहीं आगे नजर रख
मन में दुख आने न दे
बस बढ़ाते रह तू पग।
Waah bahut khoob, waah
Thank you
बहुत ही सुन्दर कविता है सतीश जी। बहुत ही प्रेरणा देती हुई रचना।
“शक्ति की मूरत है तू, छोड़ दे ये मन के दुख ,कर्म पथ पर चल अडिग ”
वाह सर … दुःखी मन तो क्या दुखी आत्मा तक को सुकून मिल जाए
इतनी सशक्त कविता रचने के लिए आपको मेरी शुकामनाएं सर
लेखनी की मजबूती को प्रणाम।
कविता के भाव के साथ सामंजस्य बिठाने और इतनी सुन्दर समीक्षा हेतु सादर धन्यवाद गीता जी, सादर अभिवादन
बहुत बढ़िया लेखन
Thank you
वाह बहुत खूब
सादर धन्यवाद जी
अतिसुंदर भाव
सादर धन्यवाद सर
उम्दा
Thank you