*पाप-पुण्य*
यूं नजरों से ना देख मुझे
रूह में झांक कभी
मैं क्या हूँ उसका परिचय
तू पाएगा तभी
रूप तो मेरा उजला-उजला
बस दिल थोड़ा-सा काला है
बता रही हूँ तुझको नजरों से
क्योंकि तू मेरा शौहर होने वाला है
परख रहा है तू मुझको ऐसे
मुझमें जान नहीं जैसे !
एक-एक कर मेरा इंटरव्यू
ले जो रहे तेरे घरवाले
मुझको ऐसा लगा के जैसे
मेरा भविष्य सुधरने वाला है
मेरे गालों पर तिल जो है
उस पर कई सवाल उठे
बचपन से इस तिल पर
लाखों मजनू अपना दिल हार चुके
कर लो जितनी करनी है तुमको
मेरी झान-बीन
जिस दिन बनकर आई मैं दुल्हन
लूंगी बदले मैं गिन-गिन
अभी तो मैं रोऊंगी साहब !
फिर मेरे हँसने के दिन होंगे
जैसा भी बर्ताव करूंगी
तुम सबके पाप-पुण्य होंगे…
हा हा बहुत ख़ूब। बहुत जबरदस्त कल्पना ।
Thanks
कविता की शुरूआत में लड़कियों पर दया आ रही थी..
कविता को आखरी तक पढ़ते-पढ़ते लड़कों पर दया आ गई..😭😭😭 बेचारे…
उत्तम रचना है यह आपकी होता ऐसा ही है लड़का खुशी खुशी जाता है और ससुर की आफत घर ले आता है. ..
आपने दोनों के प्रति हृदय में प्रेम पैदाकर दिया है दोनों के साथ हो रहे अन्याय को आवाज दी है…
Tq
कुल मिला के वॉट लगने वाली है😀😀
Tq
Mast hai
☺☺☺ अच्छा जी !!
धन्यवाद
बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति
धन्यवाद
बहुत खूब
अतिसुंदर
धन्यवाद