जंगल में आग लगाकर
क्या कोई हमें बतायेगा
वो कौन निर्दयी होगा
जंगल में आग लगाकर
घर में चैन से सोया होगा।
लपटों से जिंदा जलकर जो
खाक हो रहे थे प्राणी,
उन निरपराध जीवों की
ऐसे निकल रही थी वाणी।
अपने अपने बिलों घौंसलों में
बैठे बच्चों के साथ,
तभी अचानक आग आ गई
कई हो गए एकदम खाक।
कई अधजले जान बचाने
इधर उधर थे भाग रहे,
कई घिरे रहे लपटों में
बस ईश्वर को ताक रहे।
आग लगाने वाले ने
जीवों के घर बर्बाद किये,
उन जीवों के आँसू के
क्यों उसने खुद में दाग लिए।
आग लगाकर जंगल में
क्या पाया उसने खाक मिला
जब लाभ नहीं था तनिक उसे
क्यों जीव-जंतु बर्बाद किये।
शर्मनाक है मानवता को
यह तो बस दानवता है,
आग लगाना जंगल में,
केवल दानवता दानवता है।
——- डॉ0 सतीश चंद्र पाण्डेय, चंपावत, उत्तराखंड
(संदर्भ- जंगलों में आग लगने से जीवों व वनस्पतियों का भारी नुकसान होता है। जीव तड़प कर रह जाते हैं। आग लगाने वाले भूल जाते हैं कि उन्होंने कितने जीवों के परिवार नष्ट कर दिए। इसका किसी एक घटना या व्यक्ति से संबंध न होकर सार्वभौमिक है। किसी घटना से मिलान मात्र संयोग हो सकता है। लेकिन जंगल में आग लगाना मानवता की निशानी नहीं है।)
बहुत ही शानदार और व्यंग्यात्मक लिखा है सर आपने
बहुत ही सुंदर लिखा है
बहुत ही सुन्दर
बहुत ही बढ़िया
अतिसुंदर भाव
Bhut sunder 👌👌
ऑस्ट्रेलिया के जंगलों में लगी आग का यथार्थ चित्रण जिसमें बहुत से जानवर जिंदा ही जल गए। बेहद मार्मिक अभिव्यक्ति
Very good
मार्मिक तथा व्यंगात्मक दृष्टिकोण वाली रचना