साहित्य हो समाज के लिए
साहित्य है केवल वह रचना,
जिससे प्रकट हो समाज की सच्चाइयाॅं।
भाषा और शिल्प भी उत्तम हो,
दिलो-दिमाग पर असर डालने का हो गुण
समाज का भला हो, हो यही भावना ।
प्रस्तुत करे जीवन की सच्चाई,
प्रभावित कर सके जन-जन के मन को
यही उद्देश्य हो , हो यही सद्भावना।
आनंद भी आए उसमें,
वफ़ाओं की दास्तान हो
कुछ सच्चाइयाॅं हों और कुछ कल्पना भी विद्यमान हो।
प्रेम में मिलन का या विरह का हो वर्णन,
या फिर बरसात के सौंदर्य में इंद्रधनुष का हो दर्शन
निराशा और आशा पर लिखकर,
जीत सके काव्य किसी का भी मन।
ऐसा हो साहित्य कि उसमें,
दिखे समाज का दर्पण॥
_____गीता कुमारी
बहुत सुन्दर रचना। कवि गीता जी की उत्तम प्रस्तुति
सुंदर और प्रेरक समीक्षा हेतु आपका बहुत-बहुत धन्यवाद सतीश जी हार्दिक आभार सर
सुंदर रचना
Tq
बहुत खूब
बहुत बहुत शुक्रिया भाई जी