वृक्ष
दो पत्ती के रूप में,
उगता है नन्हा बीज,
धीरे-धीरे एक दिन,
विशाल वृक्ष बनता है।
जो सैकड़ों प्राणियों का
बसेरा बनता है।
छांव देता है,
प्राणवायु देता है।
फल देता है,
फूल देता है,
बरसात बुलाता है,
सावन में
झूले झुलाता है।
जोड़े मिलाता है।
वृक्ष लेता कुछ नहीं
बस देता है देता है।
Very nice thought
सुंदर
वृक्ष का मानवीकरण करके बहुत सुन्दर कविता का सृजन हुआ है । कवि सतीश जी का यह सत्य कथन है कि वृक्ष कुछ लेते नहीं हैं, केवल देते ही हैं, मात्र जल लेकर बहुत कुछ देने वाले वृक्ष ही तो हैं, अति सुन्दर शिल्प और भाव सहित बहुत शानदार रचना
वृक्षों पर कवि सतीश पाण्डेय जी की अति उत्तम कविता
अतिसुंदर रचना
Very nice poem
Nice