खुद से अंजान
खुद से अंजान आदमी पूछता जनाब आप कौन राजेश’अरमान’
खुद से अंजान आदमी पूछता जनाब आप कौन राजेश’अरमान’
अब तो धब्बों की भी नुमाइश होती है बस चर्चे में रहने की खवाइश होती है ज़िक्र उसका भला क्यों करता जमाना यहाँ तो सुर्खिओं…
मेरे खतों के पैगाम का आलम कुछ यूँ हैं ‘ज़नाब’, कि सफीरों की लाशें बिछ गयीं हैं राह ए इंतिजार में,
जो समाज में समता का समर्थक है जो देश का विकास चाहता है जो अंधकार की जगह प्रकाश चाहता है जो अंध विश्वास ,पाखंड ,भेदभाव…
ღღ__मजबूरियों का आलम कुछ ऐसा भी होता है “साहब”; . मुसाफिर हूँ फिर भी, अपनी मंजिलें छोड़ आया हूँ!!….#अक्स
तेरी आवाज है जो हरदम सुनाई देती है इक तेरा ही तो अक्स है जो हर जगह दिखता है मुझे कहां मैं तुझे मिल पाऊंगी…
यह जापान है ——————- यह हिंदुस्तान नहीं ,बाबू … जापान है जहाँ गुरु ग्राम और घंटा घड़ियाल नहीं विज्ञान है यहाँ आप आज़ाद है अपने…
चलो उसी कू-ए-यार में चलतें हैं साकी मय-कदा तो खाली हो गया लगता, जहाँ शब-ए-सियह में भी उनके हुश्न-ए-जाम के प्याले मिला करते थे ,
दुनिया की रस्मों में इन्सां कहाँ मगर गया वो शहर की रौनक में कौन भर जहर गया अब भी बैठे ही उन लम्हों की चादर…
उसके जाने आने के दरम्यां छुपी सदियाँ थी कुछ था पतझड़ सा तो कुछ हरी वादियां थी उसकी ख़ामोशी में दबी दबी सी बैठी…
खार भी रखते पर आँखों में बसे फूल भी है सादगी की मिसाल पर चेहरे में पड़े शूल भी है वो बदलते रहे कुछ ज़माने…
खार भी रखता पर आँखों में बसे फूल भी है सादगी की मिसाल पर चेहरे में पड़े शूल भी है वो बदलते रहे कुछ ज़माने…
उनके अश्कों में भी इक रंग नजर आता है मुझे, तन्हा रातों में भी कोई संग नजर आता है मुझे, उल्फ़त में उनकी मैं…
अपने ही अल्फ़ाजों में नहीं मिल रहा अक्स अपना न जाने किसको मुद्दतों से मैं लिखता रहा|
मेरी आरजू तो तुमको पाने की थी! हर कोशिश तेरी महफिल सजाने की थी! समझ न पाया मैं तेरी बेवफाई को, तेरी अदा हर शक्स…
ღღ__कह तो सब दूँ “साहब”, पर कभी ख़ामोशी भी पढ़ा करो; . वैसे भी मोहब्बत में, हर बात, कहने की नहीं होती!!……#अक्स
चाहिये तो जनाब ले जाओ मेरे ग़म बे हिसाब ले जाओ सारी बातें तो आप ने कह दीं अब मेरा भी जवाब ले जाओ…
देहरी लाँघी नहीं घुटन में घुटती रहीं बच्चे रसोई बिस्तरे की दूरियाँ भरती रहीं बंदिशों की खिड़कियों के काँच सारे तोड़ डाले लो तुम्हें आजाद…
न बाँधों मन पतंग को,उड़ जाने दो नवीन नभ की ओर हंस सम भरने दो,अति उमंग मे नई एक उड़ान स्वतंत्र भावों की डोर मे…
मुझ से उकता कर खिड़की से भाग गई वो शाम जो साथ थी मेरे ले आई पकड़ एक रात और खुद छुप कर भाग गई…
कुछ ख्वाब कुछ अफ़साने वही लोग आये कुछ सुनाने अपनी अपनी वीरानी सब की देखने आये वो तेरे कुछ वीराने देखने आये वो फिर ज़ख्म…
वो फुरसतों के काफिले वो रोज़ मिलने के सिलसिले वो शहर कहाँ खो गया जहाँ पास रहते थे फासले कुछ तो हुआ अजीब सा खो…
KHUD KO DEKHE’N WO AAINAA HI NAHI’N WO MILAA JAISE WO MILAA HI NAHI’N KAISE JITE HAI’N.ZINDAGI AARIF JINKE MAA BAAP KA PATAA HI NAHI…
आज नहीं तो कल चुका दूँगा , कुछ प्यार मुस्तआर ही दे दो, चोरी छुपे नहीं सरेआम माँगता हूँ , आखरी वक्त का सलाम ही…
**** था पहले दिल मेरा इक गम की हवेली अब हजारों गमों के झुग्गीयों की बस्ती हो गया!! ****
होकर जुदा तुमसे हर शाम यूँ ही होती है! शामों-सहर जिन्दगी तमाम यूँ ही होती है! मैं खोजता हूँ सब्र को जाम के पैमानों में,…
ღღ__गलतफ़हमी में जागते रहे, रात भर उनको जगता देखकर; . भला क्या ज़रूरत थी चाँद को, यूँ रात में निकलने की!!….#अक्स .
हर बाब बन्द और दरीचे खुलीं थीं घर की इशारा इस ओर था, कोई चोरी छुपे ही सहीं झरोखों से मगर इन्तजार में राहें निहार…
मैं भी देश के सम्मान को सबसे ऊपर समझता हूँ तो क्या हुआ कि साहित्यकारों की निंदा पर जुदा राय रखता हूँ अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता…
ღღ__कल शब तुम्हारी यादों ने “साहब”, क्या दरवाज़े पर दस्तक दी थी? . सुबह को मेरी गली में, कुछ क़दमों के निशान मिले थे आज!!…..#अक्स
ये तसादुम ये रंजिशे अब देखी नहीं जाती कह दो उन से भी कि दीदार ए यार ना करे , तस्वीरें देख देख कर हम…
Aise kaise wo bhool paayeGi Yaad meri use sataayegi Aor madhosh mujhko rahne do Hosh aayega yaad aayegi Arif Jafri
हजारो लोग तम लेकर, निगलने दौड़ पड़ते हैं ! अगर एक ज्योति हल्की सी, कहीं दिखलाई पड़ती है
ღღ__कल भी आये थे “साहब”, घर तक उनके क़दमों के निशान; . वो मुझसे मिलते तो नहीं लेकिन, मिलने आते ज़रूर हैं!!….#अक्स
बाबा साहेब की १२५ जंयती पर शुभकामनाएं मैं अपनी मर्जी से नहीं आया था न उनकी मर्जी से जाऊंगा। युग-युग तक सांसे चलेंगी अब, मैं…
कल दिल ने फिर गोते मारे, उसके कजरारे नैनों में हम अपना सब कुछ फिर हारे, उसके कजरारे नैनों में उसके नैनों में उतरे जब,…
लिखते लिखते स्याही खत्म हो गयी दास्ता ए इशक हमसे लिखी न गयी|
मैं कफ़न में बूत पड़ा था जश्न मेरा सर-ए-आम निकला ऐ बन्दे तुझे ज़मीन मुबारक मुक़द्दर में मेरे आसमान निकला
मिल गया अंजाम मुझे तुमसे दिल लगाने का! #दर्द मुझे होता है जैसे किसी परवाने का! नाकामियों के आलम से परेशान हूँ मगऱ, हौसला अभी…
ღღ__आपकी मोहब्बत का, इतना तो असर हुआ है “साहब”; . कि अब अक्सर वहाँ होता हूँ, जहाँ होता नहीं हूँ मैं !!….#अक्स
अहवाल ए मोहब्बत की समझ हम में भी हैं तनिक सी , इश्क कर बेवफाई को बदनाम करना कुछ नया तो नहीं , यूँ मौत…
(Jawaa Dilo ke dharrkan aur ehsas ko chhone ka prayas : ek shringaar rachna.)——– WO—- ——— WO…….. Muskuraa rahi–yun door se hi Kbb qarib aayegi………
सहरा में मुझे तू किसी गुलशन की तरह मिल मैं मर रहा हूँ आ मुझे जीवन की तरह मिल तुझे देखकर शायद मुझे कुछ साँस…
Karke naadaani…. Aaj khush ho rahe hain Jhelte pareshani- Aaj khush ho rahe hain Chhorr kar pehchan ki- Sabhi nishaniyaa Badh rahi hai naitikk baimaaniyaa…
देखिए आज ज़माना भी नहीं अच्छा है इस तरह घाव दिखाना भी नहीं अच्छा है हम खतावार नहीं खता फिर भी मानी दिल बिना बात…
मेरे लब पर तेरे लब पर सब के लब पर गंगा है, जो भारत का वासी केवल उसकी जान तिरंगा है (कुलदीप विद्यार्थी) जब कलम…
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