अब तो धब्बों

अब तो धब्बों की भी नुमाइश होती है बस चर्चे में रहने की खवाइश होती है ज़िक्र उसका भला क्यों करता जमाना यहाँ तो सुर्खिओं…

पैगाम

मेरे खतों के पैगाम का  आलम  कुछ  यूँ  हैं ‘ज़नाब’, कि सफीरों की लाशें बिछ गयीं हैं राह ए इंतिजार में,

यह जापान है

यह जापान है ——————- यह हिंदुस्तान नहीं ,बाबू … जापान है जहाँ गुरु ग्राम और घंटा घड़ियाल नहीं विज्ञान है यहाँ आप आज़ाद है अपने…

मय-कदा

चलो उसी कू-ए-यार में चलतें हैं साकी मय-कदा तो खाली हो गया लगता, जहाँ शब-ए-सियह में भी उनके हुश्न-ए-जाम के प्याले मिला करते थे ,

अक्स

अपने ही अल्फ़ाजों में नहीं मिल रहा अक्स अपना न जाने किसको मुद्दतों से मैं लिखता रहा|

le jaao

चाहिये तो जनाब ले जाओ मेरे ग़म बे हिसाब ले जाओ   सारी बातें तो आप ने कह दीं अब मेरा भी जवाब ले जाओ…

एक समकालीन गीत

देहरी लाँघी नहीं घुटन में घुटती रहीं बच्चे रसोई बिस्तरे की दूरियाँ भरती रहीं बंदिशों की खिड़कियों के काँच सारे तोड़ डाले लो तुम्हें आजाद…

पतंग

न बाँधों मन पतंग को,उड़ जाने दो नवीन नभ की ओर हंस सम भरने दो,अति उमंग मे नई एक उड़ान स्वतंत्र भावों की डोर मे…

“पैगाम”

आज नहीं तो कल चुका दूँगा , कुछ प्यार मुस्तआर ही दे दो, चोरी छुपे नहीं सरेआम माँगता हूँ , आखरी वक्त का सलाम ही…

“इशारा”

हर बाब बन्द और दरीचे खुलीं थीं घर की इशारा इस ओर था, कोई चोरी छुपे ही सहीं झरोखों से मगर इन्तजार में राहें निहार…

आखिरी मुंसिफ

मैं भी देश के सम्मान को सबसे ऊपर समझता हूँ तो क्या हुआ कि साहित्यकारों की निंदा पर जुदा राय रखता हूँ अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता…

“दस्तक” #2Liner-105

ღღ__कल शब तुम्हारी यादों ने “साहब”, क्या दरवाज़े पर दस्तक दी थी? . सुबह को मेरी गली में, कुछ क़दमों के निशान मिले थे आज!!…..‪#‎अक्स‬

ek sher

मैं कफ़न में बूत पड़ा था जश्न मेरा सर-ए-आम निकला ऐ बन्दे तुझे ज़मीन मुबारक मुक़द्दर में मेरे आसमान निकला

WO—-

(Jawaa Dilo ke dharrkan aur ehsas ko chhone ka prayas : ek shringaar rachna.)——– WO—- ——— WO…….. Muskuraa rahi–yun door se hi Kbb qarib aayegi………

New Report

Close