ek sher

मैं कफ़न में बूत पड़ा था जश्न मेरा सर-ए-आम निकला ऐ बन्दे तुझे ज़मीन मुबारक मुक़द्दर में मेरे आसमान निकला

WO—-

(Jawaa Dilo ke dharrkan aur ehsas ko chhone ka prayas : ek shringaar rachna.)——– WO—- ——— WO…….. Muskuraa rahi–yun door se hi Kbb qarib aayegi………

अन्याय

अन्याय इस लिए नही हैं कि वह बहुत शक्तिशाली है और उसका पलड़ा भारी है वह हर जगह छाया है… उसने अपना घर बसाया है…

ज़िंदगी

ज़िंदगी में ऐसे काज करो कि ज़िंदगी पे थोड़ा नाज़ करो ज़िंदगी को रिलैक्स करो ज़िंदगी का हेड मसाज़ करो फिर … ज़िंदगी से कुछ…

ज़िंदगी ने जब जब

ज़िंदगी ने जब जब तपती राहों से निकाला मुझको हर बार तेरी खुदायी का मंज़र नजर आया मुझको                                                         …. यूई

“सुना है”

सुना है रहजन बहुत हैं तिरी राह पर मयकशी के जाम आँखों से लूटते हैं, चलों लुटने के बहाने ही सहीं ‘ज़नाब’ तिरी जानिब फिर…

इन्तजार

तन्हा राहों पर गर मैं भी अकेला चला होता तो अब तलक मंजिल मिल ही गयी होती, मगर इन्तजार भी कोई चीज़ होती है ‘हुज़ूर’…

डर

इक अजीब सा डर रहता है आजकल पता नहीं क्यों, किस वजह से, किसी के पास न होने का डर या किसी के करीब आ…

उस दिन

क्या मेरी आँखों से ही तिरी कोई रंजिश थी उस दिन, या तिरे दीदार की हर खबर झूठी थी उस दिन, हर गलीं हर चौक…

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