by Pragya

“प्रदूषण मुक्त हो हमारा भारत”

March 31, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

प्रदूषण मुक्त हो हमारा भारत
यही कोशिश करनी है।
स्वच्छ भारत स्वस्थ भारत की
जगानी है जन-जन में अलख और
स्वयं भी स्वच्छता की बात करनी है।
हवाओं में कितना जहर भर गया है
गांवों को मानुष शहर कर गया है ।
निजी प्रयासों से हमको
अब यह पहल करनी है ।
हर शहर हर गली को स्वच्छ करके
हमें वह गांधी जी की बात सफल करनी है ।
प्रदूषण मुक्त हो हमारा भारत
अब यही कोशिश करनी है ।

by Pragya

बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ अभियान”

March 30, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

“बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ”
———————————-
एक बेटी को शिक्षित करने से
दो कुल शिक्षित हो जाते हैं।
फिर भी ना जाने क्यों लोग
अपनी बेटियों को नहीं पढ़ाते हैं ।
जल्दी शादी करने की
जाने क्या जल्दी होती है।
जो बेटियां पढ़ने नहीं जाती
उनकी क्या मजबूरी होती है ??
नि:शुल्क शिक्षा होने पर भी
क्यों नहीं बेटियां पढ़ पाती हैं ??
सफल होती है हर क्षेत्र में वह
जिस क्षेत्र में बेटियां जाती हैं ।
बेटी पढ़ाओ बेटी बचाओ”
यह अभियान निरर्थक है ।
जब तक समाज में सड़ी सोंच के
जीवित रहे समर्थक हैं।
इस सोच से निकलकर
हम सब हम सबको बाहर आना है ।
प्रण करना है हम सबको
अपनी बेटियों को पढ़ाना है।।

by Pragya

“नशा नहीं जिंदगी अपनाओ”

March 30, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

“नशा नाश का दूजा नाम तन, मन, धन तीनों बेकार।।”
++++++++++++++++++++++++++++++++

नशा नहीं जिंदगी अपनाओ
अपने परिवार को हादसों से बचाओ।
होली हो या हो दिवाली या हो कोई त्यौहार
जुआ चरस गांजा से बच के रहो मेरे यार।
बच के रहो मेरे यार प्यार से गुजिया खाओ
मदिरा पीकर तुम कभी वाहन ना चलाओ।
मदिरा पीकर वाहन चलाने से होती है दुर्घटना
नित सड़कों पर होती रहती हैं ऐसी घटना।
जीवन है अनमोल इसे ना यूं ही गंवाओ
हिल मिल के तुम रहो प्रेम से त्यौहार मनाओ।।

by Pragya

भारतीय त्योहार- “होलिका दहन”

March 30, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

“होली का त्यौहार”
××××××××××××××
होली में जल गए
सभी के दुख और कलेश
चूनर ओढ़ी थी बुआ ने
जा लिपटी विष्णु भक्त के
बैरी जलकर भस्म हुए
बच गए भक्त प्रह्लाद
विष्णु ही सत्य है एक
कहता है होली का त्यौहार
मिट जाए सबके कलेश
फैले चारों और सौहार्द
मिल जुलकर रहना सिखलाता है
होली का त्यौहार।।

by Pragya

ऐ सखि साजन !! ( होली स्पेशल ) विरह गीत

March 29, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

रंगने नहीं आया
सांवरिया मुझको ए सखी !
मैं बैठी हूं पलके बिछा कर
आया ना सखि साजन मोरा!
सब खेले गुलाल पिचकारी
मैं बैठी हूं कोरी- कोरी
जिसके रंग में रंगना चाहूँ
वह ना आया हो गई दोपहरी
रंग दे मुझको अपने रंग में
जैसे चाहे वैसे रंग लगाए
आया ना सखि! साजन मोरा
मैं बैठी हूं पलके बिछाए।।

by Pragya

खुशियों के बीच आप दर्द भूल जायें…

March 28, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

जो है अपने खुद ही
दर्द को पहचान लेंगे
मुनासिब नही है
जाहिर वो हर बात करे
आपके दर्द से वाकिफ़
पूरी तरह से है,
नासूर न बने दर्द
इसलिये चुप रहते है।
दुआ है कि हालात
कुछ ठीक हो जाये,
खुशियों के बीच आप
दर्द को भूल जाये।

by Pragya

मैं गुजरा हुआ वक्त हूं…

March 27, 2021 in शेर-ओ-शायरी

मैं गुजरा हुआ वक्त हूँ…
समंदर की लहर नही जो लौटकर फिर साहिल पर आऊँगा।
फैसला आपका है…
कदर करो या यूं ही जाने दो मुझे पर मैं फिर से मौका न दे पाऊँगा।

by Pragya

“अंतस् में है पीर”

March 26, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

अंतस् में है पीर
पीर का रोना रोकर
नहीं भला कोई बन पाया
है सब कुछ कर-कर
कदम- कदम दे साथ फिर
गया छोंड़ वह राह
उसकी राह निहारती
है प्रज्ञा दिन-रात
रात ये बड़ी निराली
सजी है महफिल सारी….

by Pragya

लुटे दिल में कहाँ दिये जलते हैं !!!

March 25, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

तारीफों जो पुल बांधते हो
अच्छें लगते हैं
बातों ही बातों में हँसा
देते हो
ये अंदाज अच्छे लगते हैं
यूं तो मोहब्बत हम भी
करते हैं
पर उसे सरेआम नहीं करते हैं
बुरे नहीं हैं तुम्हारे दिल के जज्बात
मगर
लुटे दिल में ओ साहिब !
दिये कहाँ जलते हैं ??

by Pragya

“लेखनी की ताकत”

March 25, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

होगी बेशुमार दौलत
आपके पास
पर हमारे पास गजब का हुनर है
देर से ही सही पर इंसान
समझ जाते हैं
किसी दूसरे पर आश्रित ना होकर
खुद कमाते हैं और खुद खाते हैं
जिस कुर्सी पर आज तुम
जमकर बैठे हो साहब !
उस कुर्सी को हमने ठुकराया है
बिना रिश्वत की है हमारी रोजी- रोटी
रिश्वत की रोटी को हमने ठुकराया है
अपनी आवाज की दम पर हम
लाखों दिलों में घर करते हैं
लेखनी की ताकत” से
रोज कितनों की तकदीर लिखते हैं
अपने मोहब्बत की सलामती
हम अपनी दम पर रखते हैं…

by Pragya

नासमझ:- ना समझ हैं हम

March 25, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

जवाब तो तुम्हारी
हर बात का है हमारे पास
पर हम तुम्हारी किसी बात
का जवाब देना जरूरी नही समझते..

ये मत समझना
ना समझ हैं हम और कुछ नहीं समझते
हम तो उनमें से हैं जो
अनकही बातों को भी सुन लेते हैं
तुम्हें क्या लगता है ?
हम तुम्हारी बात नहीं समझते !!!!

by Pragya

धोखे

March 25, 2021 in शेर-ओ-शायरी

प्यार के धोखों से
इतना तंग आ गये हम
कि अब मोहब्बत के सिवा
सब अच्छा लगता है…
कहने को तो मोहब्बत
हमने भी बहुत की थी…

by Pragya

“गुदड़ी का लाल”

March 25, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

बेबस बालक की होली
कैसे हो रंगों से भरी ?
एक तो तन पर फटे पुराने
चीथड़े लिपटे हैं
दूजे दो निवालों की खातिर
दुधमुहे बालक तरसते हैं
कितना कठिन होगा इनका जीवन
यही सोंचकर हम सिहरते हैं
बेबस और लाचारी में
कैसे इनके दिन कटते हैं !!

by Pragya

होली स्पेशल पोएट्री:- कब आएंगे श्याम

March 25, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

होली की धूम मची
कान्हा की खातिर राधा सजी
बैठी नैन बिछाकर
होंठों पर रंग लगाकर
श्याम के रंग में रंग जाऊं
बन जाऊं मैं चाँद
पुष्पों के संग खेलकर
कब आएंगे श्याम ?
कब आएंगे श्याम ?
बैठकर बाट निहारूं
चित खोकर गोपाल
हाय ! तेरी बाट निहारूं
रंग दे ऐसे रंग में
जो ना उतरे जीवनपर्यन्त
अब तो आ जा सांवरे
सब्र का होता अंत…

by Pragya

“गलतफहमियां”

March 24, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

कुछ गलतफहमियां
पाल ली तुमने
हमें लेकर
गलत धारणा बना ली
हम बुरे हैं भले हैं जैसे भी हैं
बस तुम्हारे हैं
किसी और की आली
क्यों मान ली तुमने।।

by Pragya

पावस बहती आंखों में…..

March 23, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

पावस बहती आंखों में
तुम नीर-सा बनकर आए
अविरल बहते रहे
हृदय में कितने छाले उभर आए
किंकर्तव्यविमूढ़ बने हम
तेरा साथ पाकर के
जो बन पाने को आतुर थे
वह ना हम बन पाए
मिथ्या थे वह सारे वादे
मिथ्या थी वह बातें
तेरी याद में सिसक-सिसक कर
रोती थीं मेरी रातें
पावस बहती आंखों में तुम
नीर-सा बनकर आए
अविरल बहते रहे नेत्र से
हम कुछ भी ना कर पाए ।।

by Pragya

एक सुनहरी धूप थी तुम ओ सखी !!

March 23, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

एक सुनहरी धूप थी तुम ओ सखी !
पर गैर की टुकड़ी में तुम जा मिल गई ।
ना सोच पाई मैं ना संभल सकी
बस अकेली थी अकेली रह गई ।।

by Pragya

खोजता मन है खिलौना ( प्रगतिवाद से अलंकृत)

March 23, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

खोजता मन है खिलौना
आसमां छत धरा बिछोना
गेहूं की बाली सी कोमल
और स्वर्ण सी जटाएं
बोलती मिश्री हैं मन में
काली-काली ये फिजाएं
धुंध छाए आसमां पर
कौंध बिजली की उठी
लिपटकर स्वर्ण रश्मि से
एक कली मन में खिली
तीक्ष्ण गन्ध से मन हरा
हो गया सुन्दर सलोना
खोजता मन है खिलौना
खोजता मन है खिलौना ।।

by Pragya

तुम मेरी भावनाओं का अनुवाद हो…

March 21, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

तुम मेरी भावनाओं का
अनुवाद हो
तुम मेरी आकांक्षाओं का
आकार हो
साकार होगा हर स्वप्न मेरा
गर तुम जो मेरे साथ हो
तुम्हारे स्वप्न मेरे स्वप्नों के
बिम्ब हैं
तुम हमारे हम तुम्हारे
प्रतिबिम्ब हैं
दे ना दे गर साथ कोई
तुम हमारे ही रहोगे
मिलने में प्रियतम हमारे
अब कहाँ विलम्ब है….

by Pragya

चांद की ठंडक, सूरज की गर्मी

March 20, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

इतना आसान नहीं होता
किसी अपने से बिछड़ जाना
जलाना हर रोज दिल को पड़ता है।
याद आती है उसकी रह-रह कर
फिर भी भूल जाना पड़ता है।
भूल जाने की जद्दोजहद में
दिल के अरमान जलते बुझते हैं।
चांद की ठंडक, सूरज की गर्मी में
बदन को तपाना पड़ता है।।

by Pragya

अपने छूट जाएंगे…

March 20, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

आज आसमान छूने को
जी चाहता है मेरा,
मगर यह दिल रोक लेता है।
क्योंकि आसमान पाने की ख्वाहिश में
कुछ अपने छूट जाएंगे।।

by Pragya

कैसे जिया जाए जीवन ??

March 18, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

कैसे जिया जाए यह जीवन
नीरस-नीरस लगता जीवन |

बह जाती है सांस कहीं तो
बह जाती है धड़कन |

रूठ जाएं कभी सारे अपने
बन जाएं कभी गैर भी अपने |

उपजे मन में बछोह के बादल
बरसे आंसू बन नैनन |

कैसे जिया जाए जीवन??
कैसे हो जीवन पावन ??

by Pragya

°°° मैं तुम्हें फिर मिलूंगी…..

March 18, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

मैं तुम्हें फिर मिलूंगी
किसी टूटे दिल के
अनगिनत टुकड़ो में,
किसी गरीब की फटी हुई
झोली की सच्चाई में,
एक कटी पतंग की
बेसहारा होती उम्मीदों में
मैं तुम्हें फिर मिलूंगी….

कांच के उन टुकड़ों में
जिसमें मेरा अक्श देखकर
तुमने तोड़ दिया होगा
मैं तुम्हें फिर मिलूंगी…

बेसहारा होते पंछियों के
छूटते घरौंदों में,
बेपरवाह आशिक की
बेशर्म हरकतों में
मेरी जुल्फों के जैसी
घनघोर घटाओं में
मैं तुम्हें फिर मिलूंगी…

बरसात की हर बूंद में
खाली कमरे की खामोंशियों में
कंघियों की कौम में,
कलियों की नर्मियों में,
तुम्हारे दिल की हर धड़कन में
मैं तुम्हें फिर मिलूंगी…..

by Pragya

°°°विश्वसनीयता…..

March 17, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

विश्वसनीयता
***************
आज डायरी के
अथाह पन्ने पलटने के बाद
मिला मुझे एक
ऐसा शब्द जिसके
मायने ढूंढने, समझने और समझाने में
जमाने गुजर गये

विश्वसनीयता’
क्या है ?? किसमें है ?? किस पर है ??
किसको है ??
इन चार सवालों के जवाब
ढूंढने के लिए अनगिनत
वेब पेज पलट डाले
पर उसका जवाब तो हमें
अपने रिश्ते में मिला
जो सालों पहले टूट चुका था !!

by Pragya

•••ओह !!

March 17, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

ओह !!
कितनी मेहनत करनी
पड़ती होगी तुम्हें
यह सब करने में !

कितना वक्त
जाया होता होगा !
सच में मैंने तुम्हारी
जिंदगी में दस्तक
देकर,
तुम्हारी आसान राहों को
कितना मुश्किल बना दिया…
तुम्हें नजर तो आ जाता होगा ना
मेरी हर कविता में
तुम्हारा ( अपना) जिक्र

ओह प्लीज !!
ऐसा बिल्कुल मत सोंचना
मैं इतना भी तुम्हें प्यार नहीं करती !!

by Pragya

•••और रह गया वक्त की खूंटी पर टंगकर”

March 17, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

कुछ सिसकिंयाँ सिमट कर
बिखर गईं
फिर से तुम्हारी याद आ गई
जब रोया करते थे
तुम्हारे कंधे पर सिर रखकर
वो पल अब कहाँ खो गये ??

बेशुमार दौलत है अपने पास आज
पर वो फुर्सत के पल कहाँ गये ??

आज बार-बार याद आ रहा है
मेरा चीखना चिल्लाना
तुम्हारा घुटने टेक कर मनाना
पर सब रह गया बस एक
याद बन कर और
रह गया ‘वक्त की खूंटी पर टंगकर ||

by Pragya

अब ना ढूंढना कभी……..!!

March 17, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

अब ना ढूंढना कभी
मुझे मन के उजालों में
अंधकार की ओर
बस एक कदम बढ़ा लेना
बिखरें हों जहाँ
कंटक बेशुमार
बस वही पर मेरा निशान मिलेगा…
अब ना ढूंढना कभी
मोतियों की चादर में
धूप की लड़ियों में
याद आए तो
खोज लेना…
स्वप्न में आऊंगी तुम्हारे
तुम्हारी पलकों के द्वार
खट-खटा कर कहूँगी तुमसे
अब ना ढूंढना कभी…………!!

by Pragya

“अपनेपन का एहसास”

March 17, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

क्यों अपनों के बीच
अपनेपन का एहसास नहीं होता
क्यों वो हर एहसास खास नहीं होता
कुछ तो कमी होगी मेरे ही अन्दर,
जो कोई अपना होकर भी साथ नहीं देता….

by Pragya

“हलधर की व्यथा”

March 16, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

हलधर की व्यथा सुनने को
नहीं है वो तैयार
जिसने बनाई थी नीतियाँ
किसानों के लिए अपार
किसानों के लिए अपार
नीतियाँ बनाकर बैठ गये बंगले में
और गरीब किसान बैठ गये धरने में
धरना देकर भी उनके कुछ
हाँथ ना आया,
इस सरकार ने कितना निर्धन जन को सताया।।

by Pragya

“क्यों करता है मन को कलुषित”

March 16, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

क्यों करता है मन को कलुषित
भरकर ह्रदय में विष का सागर
प्रेमबीज बो कर ही,
उगता है एक वृक्ष धरा पर ।
वृक्ष धरा पर उगकर देता सुंदर फल है,
उसे सींचता सदा ही अविरल निर्मल जल है।।

by Pragya

नेताओं की नगरी:- “नश्वर गद्दी”

March 14, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

🍁 नेताओं की नगरी 🍁
********************
समसामयिक राजनीति को समर्पित
++++++++++++++++++++++

कितना तुझको मोह है
नश्वर गद्दी से
सुन पगले ! मैं देखती हूं
तुझको पैनी नजरों से
पैनी नजरों से देख मार डालूंगी तुझको,
एक दिन तेरी ही नजर में गिरा डालूंगी तुझको
कभी भला कर तू कुर्सी का लालच छोड़
बोल ना ऐसे तू कड़वे-कड़वे बोल
माना तेरी सरकार है एक दिन गिर जाएगी
तेरी मानवता ही सबको एक दिन याद आएगी
तू कहता रहता था अच्छे दिन आएंगे
पर यह तो बता:- वह अच्छे दिन अब कब आएंगे ??

by Pragya

कौन है सच्चा कौन झूठा…!!

March 14, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

कौन है सच्चा कौन है झूठा
यह तो है किस्मत का फेर
तू अच्छा बनके खेलता
है नफरत का खेल,
है नफरत का खेल खेलता
तू अच्छा बन,
बनकर तू अच्छा दिखला ना बच्चा बन
ना बच्चा बन तू ऐसे पकड़ा जाएगा
किसी दिन तेरा यह खेल तुझी पर उल्टा पड़ जाएगा।।

by Pragya

आधुनिक नेता:- “सच्चाई की माला फेरे”

March 13, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

सच्चाई की माला फेरे
घूमें नेता गली-गली
तेरा भला करने का झांसा देकर
अपना भला करते हैं
मुँह को अपने उजला करके
कालिख मन में रखते हैं
कालिख रखकर मन वो
कितना पाक-साफ रखते हैं
नहीं किसी से प्रेम उन्हें है
नहीं किसी की फ़िक्र
बस अपने भाषण वो
जन की चिन्ता करते हैं।।

by Pragya

भारतीय साहित्य:-“संवेदना के अनुकूल”

March 12, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

तुम क्यों कहते हो मुझे
कवयित्री हूँ मैं
टूटा-फूटा राग हूँ और जोगन हूँ मैं
जैसे मीरा लिखती रही
भक्ति के पद रोज
वैसे मैं लिखती हूँ सदा
विरहाग्नि को कर जोड़
विरहाग्नि को कर जोड़ सदा लिखती रहती हूँ
भावों की ज्वाला में सदा
तपती रहती हूँ
मेरी कविता का सदा
भाव’ रहेगा मूल
अपसारी चिंतन प्रकृति है
संवेदना के अनुकूल…

by Pragya

यदि मैं कवयित्री होती…!!

March 12, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

चंद्रोदय मुझसे कह रहा:-
कविता लिखने की बात,
मैं कविता के मामले में हूँ
ठनठन गोपाल.
हूँ ठनठन गोपाल
ना आती कविता मुझको
फिर भी सब कहते हैं
क्यों कवयित्री मुझको !
कवयित्री यदि होती तो
अविरल कलम चलाती
अपने मन की पीर ना
सबको कभी बताती
लिखती समाज की बात और
राजनीति की दाल गलाती
बनकर टीपटाप’ लपेटे में नेताजी’ में जाती
हर दिन करती अपने काव्य से
साहित्य की मैं तो सेवा
कुमार विश्वास की तरह
कवि सम्मेलन में जाती.
यदि मैं कवयित्री होती तो
दिनकर हर रात उगाती….

by Pragya

कवि की लेखनी:- मानवीय अलंकार

March 11, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

बोली लेखनी आज
मिटा तू घनघोर अंधेरा
विगत माह से तूने
मुझसे नाता तोड़ा
नाता तोड़ा तूने
मुझसे जोड़ जरा-सा
मैं (कलम) तेरे भावों और हूँ स्याही की प्यासा
लिखकर कविता और नज्म
तू मेरी प्यास बुझा दे
ओ पगली प्रज्ञा !
तू मेरा रोग लगा ले…

by Pragya

मिट गया हर संताप….

March 11, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

मिट गया हर संताप
दूर अब हुआ अँधेरा
घिर कर मेघ ने
मेरे घर-आंगन को घेरा
घर-आंगन को घेर
मेघ मारे किलकारी
नीर बहाए प्रज्ञा’
हाय ! रोये बेचारी
सुनकर आया मोर
मोर ने शोर मचाया
घनघन करता मेघ
मोर ने नृत्य दिखाया
नृत्य देखकर प्रज्ञा’
हर्षित हुई अपार
यह था सपना एक
सच लगे बारम्बार!!

by Pragya

दीप जलाकर रख दिये

March 11, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

दीप जलाकर रख दिये
आप ही अपने द्वार
आ गया मुझको आप ही
अपने ऊपर प्यार
अपने ऊपर प्यार यार
आया जब मुझको
इन नैत्रों में दिख गये
सांवरे साजन मुझको
देखकर साजन हुई
शर्म से पानी-पानी
साठ बरस में याद आई
मुझको मेरी जवानी…

by Pragya

“किंचित ही तू मूढ़ है”

March 11, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

किंचित ही तू मूढ़ है
कहता मेरा मन !
क्यों फोड़ा सिर तूने
निरमोही के आंगन
निरमोही के आंगन में
फलता प्रेम कहाँ है !!
जिसको तू प्रियतम समझे
वह मोहब्बत का खुदा कहाँ है ??

by Pragya

“किसान और श्रमिक की व्यथा”

March 11, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

कैसे बन्धु ?
कैसे रिश्ते ?
कैसा यह संसार
कैसा जीवनसाथी भाई ?
स्वार्थ पड़े तब प्यार
स्वार्थ पड़े तब प्यार
किया है यहाँ सभी ने
बैरी भी घूमे बन मीत
दिल की प्रेम गली में
विपदा आई नहीं
किसी ने मुझे सम्भाला
मैंने स्वेद बहाकर
कितने घरों को सम्भाला
ना सरकार हमारी
ना दो गज जमीं हमारी
अपने स्वेद से सींचकर
मैंने फसल उगा ली…

by Pragya

कर्म कर तू कर्म कर

March 11, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

कर्म कर
तू कर्म कर
कर्म पथ से ना तू भटक
दिशाएं भले विपरीत हों
बोये पथ में शूल हों
ना तू डर और ना हिचक
कर्म कर तू कर्म कर |

by Pragya

उर्मिला और लक्ष्मण:- हे उर्मिल

March 11, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

मेरी मनसा थी यहाँ
बोना प्रेम के बीज
पर उग आया है यहाँ
काँटा बन कर विष
काँटा बन कर विष
उगा है यहाँ पर जबसे
ना आए हैं साजन हे सखि !
यहाँ तभी से
बोली सखि हे उर्मिल !
ना तू आपा खोना
आएगे लक्ष्मण तू ना
सुध अपनी खोना
जब आएगे वह तो
कंटक भी खिल जाएगे
हे उर्मिल ! साजन तेरे
जल्दी घर आएगे…

by Pragya

ठन जाती है मौत से…

March 11, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

ठन जाती है मौत से
एक दिन सबकी यार
मुश्किल कहना है यहाँ
किसको किससे प्यार
किसको किससे प्यार
नहीं मालूम किसी को
घर आया मेहमान
ना भाता कभी किसी को
जायेगा कब यह निश्चित
कर लेता जग है
यह नव भारत का भाई
कैसा कल्चर है ??

by Pragya

“हे भोलेनाथ तेरी महिमा निराली”

March 11, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

💞 महाशिवरात्रि स्पेशल 💞
**************************
शिव की महिमा
सब जग गाए
पार्वती जी को मन से
पूजा जाये
मोहित करते हैं घनश्याम
सबसे पहले गणपति का नाम |
विघ्नविनाशक मंगलकर्ता
यह भक्तों के कर्ता-धर्ता
शिव की महिमा
बड़ी निराली
हे शिव शंभू ! हे जटाधारी !
विनती मेरी मानो नाथ
यह जग हो जाए प्रेम का सार ||

by Pragya

“शिवरात्रि का भोर”

March 11, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

शिवरात्रि का भोर
भोर जीवन में लाया
भाँग- धतूरा चढ़ा के
मैंने शिव को मनाया
शिव-शंभू हे नाथ !
अरज मेरी सुन लीजे
मेरे श्याम की राधा
केवल मुझको कीजे
मुझको कीजे नाथ
बड़ा उपकार रहेगा
प्रज्ञा’ का सर्वस्व
तुम्हारा सदा रहेगा
जो ना पाई श्याम !
नाम ना लूंगी तेरा
मेरे तन-मन में श्याम
कि यह मन जोगन मेरा
भूल के भोलेनाथ ना
मुझको रुसवा करना
चरणों में तेरे, मन में है
श्याम के रहना
पूरी कर दी जो अभिलाषा
तेरे गुण गाऊंगी
वरना विष को पीकर
श्याम में मिल जाऊंगी…

by Pragya

उगल रहा है आदमी

March 11, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

उगल रहा है आदमी
विष के ऐसे बोल
विष के ऐसे बोल बोलकर
थकता ना तू
मैं तेरा ही अंश
मुझको पहचाना ना तू
कैसे दिन आए
अंतस में पीर उठी है
द्वारे पर बैठी
सबसे माँ पूंछ रही है:-
आया ना बेटा मेरा जो
गया अकेला
नैन बिछाए राह
ये है दुनिया का मेला…

by Pragya

“दीपक और पतंगा”

March 9, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

पतंगे की कहानी:-
**********************
शाम हुई लेकर तम को
अपने संग आई,
नहीं दिखा कुछ भी मुझको तो
माचिस ले आई.
जला दिया और गुनगुन करके
गीत सुनाया
तभी उधर से उड़कर एक
पतंगा आया
दीपक बोला:-
मत जल तू मुझसे बस थोड़ा
दूर चला जा
पतंगे ने कहा:-
परवाना हूँ मैं, तू मेरे आगोश में आ जा
तू मेरी लौ में जल करके मर जाएगा
ना पगले ! ये दीवाना तुझ बिन मर जाएगा
तेरी लौ में जलने का भी तो एक मजा है
महबूब को पाकर खो देना भी
बड़ी सजा है
पतंगे ने दीपक की लौ में कुर्बानी दे दी
दीपक ने बुझकर शोक सभा भी
कायम कर दी
रहा अंधेरा फिर ना मैंने दीप जलाया
प्रशांत में देखकर तेरी प्रतिमा
नीर बहाया…

by Pragya

हाय! फिर लुट गई…!!

March 9, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

मैं हूँ असहाय
कोई मुझको सम्भाल !
कट रही हूँ मूल से
सब देखें घूर के
गिर रही हूँ धरा पर
कट गये हैं सभी पर
डोर से मैं बँधी थी
सिर उठाये खड़ी थी
एक निगोड़े ने मुझसे
आकर पंजा लड़ाया
मुझमें लिपटा रहा
बाँहों में ले झुलाया
उसके नैनों ने छलकर
मेरे मन को भी हरकर
ढील जैसे मिली
थोड़ा-सा मैं हँसी
हाय! फिर कट गई
हाय! फिर लुट गई….

by Pragya

यक्षिणी की वेदना

March 9, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

यक्षिणी की वेदना के शूल:-
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प्रश्न करेंगे
खुदा से अभी हम
क्यूं ना आया है चंदा
रोज देखें गली हम…

वो नादान है
थोड़ा दिल का है नाजुक
उसके रस्ते में गुलशन के
माफिक बिछे हम
उठाई कलम आज
एक अर्से के बाद
भूल बैठे थे उसको
जिसके आदी हुए हम
अनुराग से भरा फरवरी भी गया
क्यूं ना आया वो महबूब
जिसकी खातिर जिये हम…!!

by Pragya

जीवन:- अभिशाप है या वरदान !!

March 8, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

यह जीवन है वरदान कभी
यह जीवन है अभिशाप कभी…

मिलते हैं सच्चे मित्र यहाँ
तो बन जाते हैं शत्रु कभी…

प्रज्ञा’ का जीवन बेमोल रहा
तो बन बैठा उपहार कभी…

बस रह जाता है प्रेम यहाँ
सब खो जाता है यार यहीं…

हे जड़बुद्धी ! मानव तू सुन
है प्रेम का कोई मोल नहीं…

कल जाने क्या हो यहाँ यार !
तू धो दे मन के दाग अभीसभी…

By Pragya Shukla’ Sitapur

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