
Pragya
“नारी का सम्मान”
March 8, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता
💞Women’s Day Special poetry💞
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महिलाओं की बात निराली,
माँ, भगिनी हो या घरवाली ….
इनसे ही संसार बसा है
दिल में प्रेम अपार छुपा है….
सुंदर सबका रूप सजीला
परिधान है इनका रंग-रंगीला….
ये होती हैं दिल की अच्छी
हाँ, थोड़ा-सा गुस्सा करती….
सबको अपना प्यार दिखाती
रिश्तों को भी खूब निभाती…..
हर मैदान फते कर जाती
पुरुषों को पीछे कर जाती…..
जिस घर में नारी पूजी जाती
लक्ष्मी जी उस घर में रहती…..
जहां उनको दुत्कारा जाता
मारा जाता पीटा जाता….
होता उसका नाश सदा है
इतिहास इसका साक्ष्य रहा है…
नारी का सम्मान करो सब
हे लेखनी ! उसका गुणगान करो अब….
इसमें ही है सबकी भलाई
महिला दिवस की सबको खूब बधाई…
“गुलदावरी के पुष्प”
March 6, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता
❤ गुलदावरी के पुष्प ❤
++++++++++++++++++++
गुलदावरी के पुष्प खिलने लगे हैं
हम तुमसे ख्वाबों में मिलने लगे हैं।
तपती हुई धूप में बनकर ठंड का मौसम
देह की मिट्टी पर ओस की बूंदों-से
कुछ ख्वाब बरसने लगे हैं।
यूं तो हम मिले हैं पहले भी पर
ग्रीष्म ऋतु में कुछ अलग ही
एहसास जुड़ने लगे हैं।
कोई शिकायत ना रहे तुम्हें हमसे
इसलिए हम दिन पर दिन
अपनी आदतें बदलने लगे हैं।
चाँद ओढ़नी ओढ़ के देखो मेरी छत पर आया है
March 6, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता
अलबेली यह रात नवेली
कुछ हमसे कहने आई है,
मीठे-मीठे प्यारे-प्यारे
संग में सपने लेकर आई है।
मैं मूंदूँ और खोलूँ पलकें,
नींद नहीं आती फिर भी
जाने क्या खोया है मैंने !
और जाने क्या पाया है,
यह तो जाने वो ही जिसने
मेरा चैन चुराया है।
चांद ओढ़नी ओढ़ के देखो
मेरी छत पर आया है।।
भूले- बिसरे गीत
March 6, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता
घर आया है रात का पंछी
करने लाख सवाल
होठों पर अनुपम हिंदी
हाथों में है गुलाल।
रंग डालेगा शायद मुझको
मनसा उसकी लगती है
गीली-गीली उसकी आंखें
थोड़ा मुझको लगती है।
बैठ गया है चादर पर वह
दोनों पैर पसारे
गाने लगा है मीठी धुन में
भूले-बिसरे गीत हमारे।
” मैंने तो था चाहा जिनको वो ना हुए हमारे
हाय तौबा! वो ना हो हमारे”………..।।
मेरी गुड़िया बड़ी हो गई…
March 6, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता
मेरी नन्ही सी गुड़िया
खिलौनों से खेलते खेलते
न जाने कब बड़ी हो गई!
आज जब देखी उसकी हाथों में चूड़ियां
सिर पर लाल चुनर
तो समझ में आया।
जो आंगन में फुदकती रहती थी,
दिन भर खेलती रहती थी,
अपने आगे पीछे सबको नचाया करती थी
बातों का खजाना रहता था जिसके पास,
अपनी नादान हरकतों से
सबको हंसाया करती थी।
वह गुड़िया आज इतनी बड़ी हो गई कि
उसे डोली में बिठाकर,
उसके सपनों के राजकुमार के साथ
विदा करने का वक्त आ गया है।
हां जी ! सच में मेरी गुड़िया बड़ी हो गई।।
इल्जामों के खंजर
March 6, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता
जाने क्यों कुछ अल्फाज
सिसकते रहते हैं
हम तुम्हारी यादों में
महकते रहते हैं
यूं तो हमारी मोहब्बत की
पूजा करता है जमाना
पर जब भी हम एक होना चाहते हैं तो
लोग बेबुनियाद इल्जामों के खंजर भोंकते रहते हैं।
💐गुलदावरी के पुष्प💐
March 6, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता
❤ गुलदावरी के पुष्प ❤
++++++++++++++++++++
गुलदावरी के पुष्प खिलने लगे हैं
हम तुमसे ख्वाबों में मिलने लगे हैं।
तपती हुई धूप में बनकर ठंड का मौसम
देह की मिट्टी पर ओस की बूंदों-से
कुछ ख्वाब बरसने लगे हैं।
यूं तो हम मिले हैं पहले भी पर
ग्रीष्म ऋतु में कुछ अलग ही एहसास जुड़ने लगे हैं।
कोई शिकायत ना रहे तुम्हें हमसे
इसलिए हम दिन पर दिन अपनी आदतें बदलने लगे हैं।
🌹🌹चांद ओढ़नी ओढ़ के देखो मेरी छत पर आया है
March 6, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता
अलबेली यह रात नवेली
कुछ हमसे कहने आई है,
मीठे-मीठे प्यारे-प्यारे
संग में सपने लेकर आई है।
मैं मूंदूँ और खोलूँ पलकें,
नींद नहीं आती फिर भी
जाने क्या खोया है मैंने !
और जाने क्या पाया है,
यह तो जाने वो ही जिसने
मेरा चैन चुराया है।
चांद ओढ़नी ओढ़ के देखो
मेरी छत पर आया है।।
मोहब्बत की नुमाइश
March 5, 2021 in शेर-ओ-शायरी
यूं मोहब्बत की नुमाइश की नहीं जाती
दिल की ख्वाहिश सरेआम की नहीं जाती.
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समझता है बेशर्म ये सारा जमाना,
इसी वाइस दिल की बातें बेपर्दा की नहीं जाती.
“लेकर गुलाल रंगने लो हम आ गये”
March 5, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता
इस फिजा में संवर कर लो हम आ गये,
कुछ अलग ही तेवर लेके लो हम आ गये…
थी नाराजगी यहाँ की हवाओं से हमको,
बदलकर हवाएं लो हम आ गये..
कुछ थे दुश्मन हमारे तो कुछ परवाने,
भुलाकर सभी गिले-शिकवे लो हम आ गये…
समयाभाव था मेरे जीवन में खालीपन,
लेकर थोड़ी फुर्सत लो हम आ गये…
मोहब्बत के मारे थे हम तो बेचारे,
भूलकर उस खता को लो हम आ गये…
स्वागत में हमारे हो कविता तुम्हारी,
है सावन हमारा और गीता हमारी…
हो गुलजार उपवन, है होली का मौसम,
लेकर गुलाल रंगने लो हम आ गये…..
“किसान आन्दोलन”
February 20, 2021 in Poetry on Picture Contest
जो बादल सदैव ही निर्मल
वर्षा करते थे
निज तपकर अग्नि में
तुमको ठण्डक देते थे
वह आज गरजकर
तुम्हें जगाने आये हैं
ओ राजनीति के काले चेहरों !
ध्यान धरो,
हम ‘हल की ताकत’
तुम्हें दिखाने आये हैं…
———————————
धरती का सीना चीरकर
जो उत्पन्न किया
वह सफेदपोशों ने
अपनी तिजोरियों में बंद किया
हम वह ‘मेहनत का दाना’
उनसे छीनने आये हैं…
———————————
यह कैसा बिल लेकर आए
तुम संसद में ?
फूटा गुस्सा आ बैठ गये
हम धरने में
हम बीवी, बच्चे, खेत-खलिहान
छोंड़कर आये हैं…..
————————————
कितनी रातें सड़कों पर
टेंण्ट में बीत गईं
दो सौ से ज्यादा
किसान भाईयों की
मृत्यु हुई
हम ‘भारत माँ के लाल’
बचाने आये हैं……
——————————–
हम खालिस्तानी और विपक्षी
कहे गये
कोहरा, बादल, बिजली, वर्षा
से भी नहीं डरे
आँसू गैसे के गोले,
पीठ पे डण्डे खाए हैं…..
———————————–
कुछ अराजक तत्वों ने
इस आन्दोलन को अपवित्र किया
दूध बहाया तो कभी
लाल किले पर कुकृत्य किया
हम हलधर ! वह बदनामी का दाग
मिटाने आये हैं…….
————————————-
तुम ढीठ बड़े !
कुछ सुनने को तैयार नहीं
हम भी पीछे हट जाने को
तैयार नहीं
हम तुमको अपनी व्यथा
सुनाने आये हैं…
——————————————-
आज देखकर
अपनी थाली में सूखी रोटी
हिल पड़ा कलेजा
पगड़ी की भी हिम्मत टूटी
कोई क्या जाने ! हमने कर जोड़ के
कितने नीर बहाये हैं…
कुछ ढुलक पड़े गालों पर
कुछ थाली में टूट गिरे
कुछ गटक लिए जो
गले उतरकर आये हैं…
हम सूखी रोटी का मान
बढ़ाने आये हैं
अन्नदाता की पीर’ को
परिभाषित करने आये हैं…
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काव्यगत् सौंदर्य एवं प्रतियोगिता के मापदण्ड:-
इस कविता को मैंने फोटो प्रतियोगिता में दिखाये गये चित्र को ध्यान में रखकर लिखा है|
जिसमें एक बुजुर्ग पगड़ीधारी किसान
अपनी थाली में सूखी रोटी देखकर सिर झुकाए हुए कुछ सोंचने की मुद्रा में खड़ा है |
उसकी खामोंशी को मैंने शब्दों के माध्यम से
रेखांकित तथा जीवंत बनाने की छोटी-सी कोशिश की है |
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प्रतियोगिता के मापदण्डों को ध्यान में रखते हुए मैंने सर्वप्रथम चित्र तथा किसान आन्दोलन की समग्रता तथा समाहार शक्ती का प्रयोग किया है जैसा कि चित्र का भाव है वैसा ही भाव व्यक्त करने का प्रयास किया है…
काव्य के सभी तत्वों को समाहित करने के कारण तथा रचना का भावुक विषय काव्य परंपरा में कितना योगदान दे पाया यह तो निर्णायक मण्डल पर निर्भर है…
समाज में अच्छा संदेश पहुंचाने तथा किसान आन्दोलन को सार्थक दृष्टिकोण प्रदान करते हुए मैंने विषय को गम्भीरता से लिया है तथा
सरकार और किसान के बीच सार्थक वार्ता हो और मतभेद खत्म हो ऐसी कामना की है…
कविता के अन्त में मैंने चित्र को उसी रूप में प्रस्तुत किया है जैसा वह मेरे कविमन को नजर आया…
आपको मेरा प्रयास कैसा लगा जरूर बताइयेगा..
कविता को अन्त तक पढ़ने के लिए धन्यवाद…
प्रेम का संदेश
February 3, 2021 in शेर-ओ-शायरी
छोंड़ दी थी जो गलियां
हमने कभी,
आज सजकर फिर उन्हीं में जाना है
संदेश भेजा है उन्होंने प्रेम का,
जिनको हमने रब से ज्यादा माना है…
“इश्क की चादर”
February 1, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता
💜Valentine special💜
कुछ गुलाबों के पंख
बिखरा के गये थे यहाँ,
लौटकर आए तो
उन्हें सिमटा हुआ पाए…
दे रही हैं गवाही
खामोंशियां ये रातों की,
ओढ़ के वो इश्क की थी चादर यहाँ आए….!!
लेख:- ब्राण्डेड बुखार
January 3, 2021 in Other
लेख:- ‘ब्राण्डेड बुखार’
आजकल हर व्यक्ति अपने निजी काम को बहुत ही अच्छे ढंग से करने मे विश्वास रखता है। सबसे ज्यादा ध्यान तो इस बात पर रहता है कि हम अच्छा खाये,पिये और पहने। अब व्यक्ति अपने व्यक्तित्व को निखारने और प्रभावशाली बनाने के लिये प्रयासरत रहता है। वह सोचता है कि वह सबसे अच्छा दिखे। इसलिये वह अनेक प्रयास और उपायों को अपनाता है। अपनी सुन्दरता,आकर्षण और व्यक्तित्व विकास हेतु वह महँगी वस्तुओं, कपडों और विभिन्न दैनिक उपयोग की चीज़ो को प्रयोग करता है। व्यक्तित्व विकास के लिये अच्छे और महँगे कपड़े,जूते पहनना धीरे-धीरे जरुरत से ज्यादा आदत बन जाती है। इस आदत पर काफ़ी खर्चा भी होता है। व्यक्ति दैनिक जीवन मे उपयोग होने वाली सभी चीजें ब्राण्डेड ही उपयोग करना पसंद करता है।
ब्राण्ड का बुखार यानी ब्राण्डेड प्रोडक्ट्स खरीदने की आदत बच्चे,बूढ़े और जवान सभी के सिर चढ़कर बोल रही है। सभी अपने पसंदीदा कपड़े,जूते और दैनिक उपयोग की वस्तुयें ब्राण्ड स्टोर से ही खरीद रहे है। दूसरों को प्रभावित करने के लिये और दिखावे की खातिर लोग ब्राण्डेड बुखार की जकड़ मे आ चुके है। इससे बचने के लिये समझ रूपी पैरासीटामाल ही माल के चक्करों से छुटकारा दिला सकती है।
आप चाहे कोई भी और कितने भी जोड़ी कपड़े और जूते पहन ले, कुछ समय बाद उनका रंग फीका हो जाता है या उन चीजों के निरंतर प्रयोग से मन ऊब जाता है। किसी दूसरे को दिखाने के लिये अपने पैसों मे आग लगाना, यह कोई समझदारी तो नही।
जीवन दिखावे का नाम नही, जीने का नाम है। असली जिन्दगी बिना किसी संकोच और हीनभावना के ही जीना अच्छा होता है।
आपके इस दिखावे की आदत का सबसे बड़ा फ़ायदा बहुराष्ट्रीय कंपनियों को होता है। इस दिखावे की कला को वह अवसर के रूप मे भुनाने से नही चूकती। देश के लगभग हर शहर और कस्बे मे इन कम्पनियों के स्टोर खुले हुये है। जहाँ लोकलुभावन ऑफर देकर आपकी जेब हल्की की जा रही है। दो खरीदो एक मुफ्त पाओ और चीज़ो पर पचास से सत्तर प्रतिशत की छूट का भी झुनझुना आपको थमा दिया जाता है। आप इसे विशेष छूट समझकर फूले नही समाते है। उदाहरण के तौर पर यह समझने वाली बात है कि यदि जीन्स की कीमत तीन हजार रुपये है। वह छूट पाकर यदि आपको कुछ कम कीमत पर मिलती है तो आपको लगता है कि बहुत फ़ायदा मिल गया। आप भी यह जानते है कि इन बहुराष्ट्रीय कंपनियों की चीजों उन पर लिखी कीमत पर न तो बिक सकती है और न ही कोई खरीदेगा। इसीलिये यह कम्पनियां ऑफर- ऑफर का खेल करके आपके साथ खेल कर जाती है।
आप भी जानते होगे कि आप खरीदी गयी चीजों की गुणवत्ता की नही अपितु उनके नाम और उन पर लगे टैग की कीमत चुकाकर स्टोर से बाहर निकलते है। आपकी समय की कमी,विशेष आवश्यकताओं और सहज सुविधा का फायदा उठाने हेतु लगभग सभी कम्पनियां ऑनलाइन भी उपलब्ध है। आजकल ऑनलाइन शॉपिंग भी बहुत प्रचलित हो गयी है। लोग मनचाही चीज़े घर बैठे मंगाकर फूले नही समा रहे है। इसके चलते वह कभी ठगी का शिकार भी हो रहे है। इसलिये शॉपिंग ऑनलाइन या बाजार से करते समय सावधान और सजग रहने की जरुरत है।
आप इस बात का स्मरण रखे कि आप स्वयं मे अति महत्वपूर्ण है। इसलिये दिखावे से कोई फ़ायदा नही है। आपके पास एक परिवार है जिसकी छोटी- बड़ी आवश्यकताओं की पूर्ति करना आपका कर्त्तव्य है। इसलिये मितव्ययी बने और इस ब्राण्ड और टैग के झंझटो से खुद को मुक्त करे। आप बहुत ही अच्छा महसूस करेगे। यदि आपके पास बहुत सारा धन है तो उसे मानव सेवा मे खर्च करे। आपको इससे आत्मिक संतुष्टि भी प्राहोलेख:- ‘ब्राण्डेड बुखार’
आजकल हर व्यक्ति अपने निजी काम को बहुत ही अच्छे ढंग से करने मे विश्वास रखता है। सबसे ज्यादा ध्यान तो इस बात पर रहता है कि हम अच्छा खाये,पिये और पहने। अब व्यक्ति अपने व्यक्तित्व को निखारने और प्रभावशाली बनाने के लिये प्रयासरत रहता है। वह सोचता है कि वह सबसे अच्छा दिखे। इसलिये वह अनेक प्रयास और उपायों को अपनाता है। अपनी सुन्दरता,आकर्षण और व्यक्तित्व विकास हेतु वह महँगी वस्तुओं, कपडों और विभिन्न दैनिक उपयोग की चीज़ो को प्रयोग करता है। व्यक्तित्व विकास के लिये अच्छे और महँगे कपड़े,जूते पहनना धीरे-धीरे जरुरत से ज्यादा आदत बन जाती है। इस आदत पर काफ़ी खर्चा भी होता है। व्यक्ति दैनिक जीवन मे उपयोग होने वाली सभी चीजें ब्राण्डेड ही उपयोग करना पसंद करता है।
ब्राण्ड का बुखार यानी ब्राण्डेड प्रोडक्ट्स खरीदने की आदत बच्चे,बूढ़े और जवान सभी के सिर चढ़कर बोल रही है। सभी अपने पसंदीदा कपड़े,जूते और दैनिक उपयोग की वस्तुयें ब्राण्ड स्टोर से ही खरीद रहे है। दूसरों को प्रभावित करने के लिये और दिखावे की खातिर लोग ब्राण्डेड बुखार की जकड़ मे आ चुके है। इससे बचने के लिये समझ रूपी पैरासीटामाल ही माल के चक्करों से छुटकारा दिला सकती है।
आप चाहे कोई भी और कितने भी जोड़ी कपड़े और जूते पहन ले, कुछ समय बाद उनका रंग फीका हो जाता है या उन चीजों के निरंतर प्रयोग से मन ऊब जाता है। किसी दूसरे को दिखाने के लिये अपने पैसों मे आग लगाना, यह कोई समझदारी तो नही।
जीवन दिखावे का नाम नही, जीने का नाम है। असली जिन्दगी बिना किसी संकोच और हीनभावना के ही जीना अच्छा होता है।
आपके इस दिखावे की आदत का सबसे बड़ा फ़ायदा बहुराष्ट्रीय कंपनियों को होता है। इस दिखावे की कला को वह अवसर के रूप मे भुनाने से नही चूकती। देश के लगभग हर शहर और कस्बे मे इन कम्पनियों के स्टोर खुले हुये है। जहाँ लोकलुभावन ऑफर देकर आपकी जेब हल्की की जा रही है। दो खरीदो एक मुफ्त पाओ और चीज़ो पर पचास से सत्तर प्रतिशत की छूट का भी झुनझुना आपको थमा दिया जाता है। आप इसे विशेष छूट समझकर फूले नही समाते है। उदाहरण के तौर पर यह समझने वाली बात है कि यदि जीन्स की कीमत तीन हजार रुपये है। वह छूट पाकर यदि आपको कुछ कम कीमत पर मिलती है तो आपको लगता है कि बहुत फ़ायदा मिल गया। आप भी यह जानते है कि इन बहुराष्ट्रीय कंपनियों की चीजों उन पर लिखी कीमत पर न तो बिक सकती है और न ही कोई खरीदेगा। इसीलिये यह कम्पनियां ऑफर- ऑफर का खेल करके आपके साथ खेल कर जाती है।
आप भी जानते होगे कि आप खरीदी गयी चीजों की गुणवत्ता की नही अपितु उनके नाम और उन पर लगे टैग की कीमत चुकाकर स्टोर से बाहर निकलते है। आपकी समय की कमी,विशेष आवश्यकताओं और सहज सुविधा का फायदा उठाने हेतु लगभग सभी कम्पनियां ऑनलाइन भी उपलब्ध है। आजकल ऑनलाइन शॉपिंग भी बहुत प्रचलित हो गयी है। लोग मनचाही चीज़े घर बैठे मंगाकर फूले नही समा रहे है। इसके चलते वह कभी ठगी का शिकार भी हो रहे है। इसलिये शॉपिंग ऑनलाइन या बाजार से करते समय सावधान और सजग रहने की जरुरत है।
आप इस बात का स्मरण रखे कि आप स्वयं मे अति महत्वपूर्ण है। इसलिये दिखावे से कोई फ़ायदा नही है। आपके पास एक परिवार है जिसकी छोटी- बड़ी आवश्यकताओं की पूर्ति करना आपका कर्त्तव्य है। इसलिये मितव्ययी बने और इस ब्राण्ड और टैग के झंझटो से खुद को मुक्त करे। आप बहुत ही अच्छा महसूस करेगे। यदि आपके पास बहुत सारा धन है तो उसे मानव सेवा मे खर्च करे। आपको इससे आत्मिक संतुष्टि भी प्राप्त होगी।
तुम्हारा स्वागत ना कर सकी !!
January 1, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता
हे नव वर्ष !
तुम्हारा स्वागत
ना कर पाई मैं !
तुम्हारे आगमन के
उपलक्ष्य में हजारों
तैयारियां करना चाहती थी
पर कर ना सकी !
तुम्हें समेटना चाहती थी
प्रेम से,
दुलार देना चाहती थी,
पर अश्रु धारा प्रवाहित
करने के पूर्वाभ्यास के कारण
सिर्फ रोती रह गई और तू आ गया
बिना किसी आदर-सत्कार के !
विगत वर्ष में सिर्फ हृदय में
घाव ही मिले
जिनसे मेरा चट्टान जैसा हौसला
धराशाही हो गया
कितना कुछ लिखना चाहती थी
तुम्हारे लिए
अनगिनत पंक्तियां लिखना चाहती थी
तुम्हारे अभिनन्दन में,
परंतु एक पंक्ति भी ना
समर्पित कर सकी तुम्हें !!
“स्वर्णिम नवल वर्ष”
January 1, 2021 in Poetry on Picture Contest
कालचक्र ने लिखा था एक रोज़
रेत पर उंगलियों के पोरों से,
वह हस्तलेख मिट गया
सागर की लहरों के थपेड़ों से…
स्वागत है कर जोड़कर २०२१,
खूँटी पर अब टाँग दी
वैमनस्यता भरी कमीज…
सागर की जलधार ने
मिटा दिया एक नाम,
२०२० ऐसे ही गया
आया नव स्वर्ण विहान…
हे नवल वर्ष ! तुम सबके
जीवन में सुख का संचार करो…
दीनों दुःखियों का त्रास हरो,
मानवता का कल्याण करो…
तुम आओ जीवन पथ पर और
प्रेरणा का नव उत्थान करो…
भूखे की रोजी-रोटी बन,
हर नस में रक्त संचार करो…
स्वप्नों के नूतन पुहुप खिलें,
बैरी भी हँसकर गले मिलें…
बोये जाएं सर्वत्र पुष्प,
नहीं हृदय में शूल मिले…
कुछ ऐसा हो यह नवल वर्ष,
सबके गृह में हो समृद्धि- हर्ष…
अधरों पर केवल मुस्कानें हों,
पलकों के तट पर ना नयन जलधारे हों…
हर मानव नीरोग मिले,
कोरोना ना अब कहीं दिखे…
तरुणाई मुसकाये और
अवनि भी स्वच्छन्द मिले…
जो घाव दिये विगत वर्ष ने
हे आगत ! तू उसका मरहम बन,
सागर में मिल जाए सर्वस्व व्यथा
पुष्पित हो विश्व का तन-मन…
“नववर्ष मंगलमय हो” आप सभी को प्रज्ञा की ओर से नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं…🙏🙏🙏
काव्यगत सौंदर्य एवं साहित्यिक योगदान:-
यह कविता मैंने सावन द्वारा आयोजित “फोटो प्रतियोगिता” पर लिखी है,
मैंने सावन के लगभग सभी मापदण्डों को ध्यान में रखकर लिखी है तथा हर बारीकी का ध्यान रखते हुए लिखी है…
मैंने फोटो में जो भी दिखाया गया है उसको ध्यान में रखते हुए समग्रता का भी समावेश किया है..
मैं कहाँ तक सफल हुई यह तो आप सब ही बताएगें परंतु यह कविता लिखने में मुझे बहुत मनन तथा अध्ययन करना पड़ा जिसके कारण कई दिन लग गये…
अलंकारों के साथ-साथ, रस, नवीनता तथा समाज में सकारात्मक प्रभाव डालने का भी प्रयास किया है…
आगे आप सभी की इच्छा चाहे तो कमेंट बाक्स में कुछ लिखकर मेरी मेहनत पर टिप्पणी करें अन्यथा आपकी इच्छा…
“नववर्ष हो इतना सबल”
January 1, 2021 in Poetry on Picture Contest
नववर्ष हो इतना सबल
ना पीर चारों ओर हो,
जिधर भी उठे नजर
सर्वत्र पुष्प ही पुष्प हो..
यह लेखनी अविराम हो,
हर पंक्ति में ऐसे भाव हों…
जाग जाए यह जमीं और
आसमां झुक जाए,
लेखनी हो तरुण-सी
ऐसा नववर्ष आए…
कोरोना की ना मार हो,
फूला-फला संसार हो…
दुर्गम हो, चाहे दुर्लभ हो,
हर पथ मानव को सलभ हो…
युवा हो कर्मठ और हाथ में
उनके पतवार हो,
ना डूबे कभी बहती रहे ऐसी
सुंदर नाव हो…
२०२० तो जलमग्न हो गया,
२०२१ सजकर आ गया…
सबके मनोरथ पूर्ण हो
सबका सुखी संसार हो…
अलविदा २०२०
January 1, 2021 in शेर-ओ-शायरी
अलविदा २०२०
तू बहुत याद आएगा…
तूने गुरू बनकर बहुत कुछ सिखाया
अफसोस है अब तू कभी लौटकर ना आएगा..
ऐसे मत नववर्ष मनाओ
December 31, 2020 in शेर-ओ-शायरी
ऐसे मत नववर्ष मनाओ
जीवों को ना मार के खाओ,
भूंख मिटाने के हैं और भी साधन
शाकाहार तुम बनाकर खाओ..
“बेजुबानों की कुर्बानी”
December 31, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
बेशक मनाओ
त्योहार तुम
दिल खोलकर करो
नववर्ष का स्वागत
पर शराब, बकरी, मुर्गों आदि
जीवों के जीवन का अन्त करके
किस प्रकार मना सकते हो तुम आन्नद !!
कल तुम तो देखोगे अपने जीवन का
नवल प्रभात पर
उन बेजुबान जानवरों का अन्त
तो तुमने अपने भोग-विलास में
कर दिया,
वह नववर्ष का सूर्य कहाँ देख पाएगे ??
तुम्हारे धूमधड़ाके के और दोस्त यारों की
पार्टी में जाने कितने
बेजुबान शहीद हो जाएगे
किसी का जीवन लेने का तुमको
किसने अधिकार दिया ??
तुम तो देखोगे नवल वर्ष पर
यह हक तुमने कितनों से छीन लिया !!!!
“अब होगा जीवन में उजास”
December 31, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
नववर्ष की पूर्व संध्या
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नववर्ष की पूर्व संध्या पर
मैं अर्पण करती हूँ
अश्रु के बीज
बोती हूँ लम्बी मुस्कानें
चुनती हूँ मैं
सफल नव जीवन पर ले
जाने वाली राह
अब नहीं करूंगी
हृदय को दुःखाने वाली क्रियाएं,
अब होगा जीवन में उजास…
एक वर्ष और बीत गया इस जीवन का !!!!!!
December 31, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
जाने क्यूं खुशियां
मना रहे हैं लोग !!!
मेरी जिंदगी का एक
और साल कम पड़ गया
एक और साल जुड़ गया
जीवन के अध्याय में,
इस खुदगर्ज दुनिया ने
इस वर्ष में अपने-अपने रंग दिखाये
बहुत ही दर्द दिये, आँसू दिये इस वर्ष ने
पर ना जाने क्यूं नववर्ष के
आने की खुशी से ज्यादा
इस वर्ष के जाने का मलाल
ज्यादा है
कुछ अधूरा-सा लग रहा है
गम बहुत जियादा है
एक और दंदा टूटा गया है आज
कंघी से
एक वर्ष और बीत गया
इस जीवन का…
नया साल आ गया
December 31, 2020 in मुक्तक
नया आ गया..
पुराना साल हजारों दर्द दे गया
कुछ सिखाया कुछ समझाया,
और आँखों में आँसू दे गया
नया साल आ गया…
हे ऊपरवाले ! तू अब तो जाग..
December 31, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
कूड़ाघर: रसोईंघर
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मैं अक्सर सोंचा करती थी
आजकल कोई गरीब नहीं…
सब अपने आप में सक्षम हैं
इस दुनिया में अब कोई
असहाय नहीं…
परंतु एक दृष्य देखकर भर आईं मेरी आँखें
मुझको विश्वास ही नहीं हुआ जो देखीं मेरी आँखें
एक बालक छोटे कद का था,
भूंखा था और प्यासा था
कूड़ेदान में बड़ी देर से
जाने क्या ढूंढ रहा था
मेरी उत्सुकता बढ़ी,
मैं वहीं रही कुछ देर खड़ी..
उसने एक पॉलीबैग उठाया
सड़ा हुआ-सा खाना खाया,
चेहरे पर उसके थी इतनी खुशी,
मानों गड़ा हुआ हो सोना पाया…
तब तक वहाँ पर एक आया कुत्ता,
जिसको देख के सहम गया वह बच्चा…
छीन लिया उसने वह खाना,
बिखर गया हर दाना-दाना…
वाह री किस्मत ! वाह रे भाग !
हे ऊपरवाले ! तू अब तो जाग…
“गरीब की पुकार”
December 31, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
गरीब की पुकार’ सुन लो,
लाख दुआएं मिलेगी
किसी मजबूर को सहारा दो
तुम्हारी शक्ति और बढ़ेगी…
घटेगा नहीं धन बल्कि और भी बढ़ेगा
किसी गरीब की झोली में
जो तुम्हारी एक चवन्नी भी गिरेगी…
मान लो और कभी करके देखो
बेबस मजबूर का सहारा कभी
बनकर तो देखों
आँखों से तुम्हारी पावस गिर पड़ेगी…
*बेटी का विश्वास*
December 31, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
बेटी और पिता सैर पर जा रहे थे
मधुर संगीत था कोई गीत
गा रहे थे..
होंठों पर दोनों के तसल्ली भरी मुस्कान थी,
बेटी अपने पापा की जान थी..
सैर करते समय एक रास्ते में पुल आया
पिता ने बेटी को प्यार से समझाया
मेरा हाथ पकड़ लो बेटी पुल है
और नीचे गहरी नदी,
बेटी ने कहा नहीं पापा
मैं आपका हाथ नहीं पकड़ूंगी,
आप ही मेरा हाथ पकड़ लो
पिता हँस पड़े और कहने लगे
उसमें क्या अन्तर है ?
चाहे मैं तुम्हारा हाथ पकड़ लूं
चाहें तुम मेरा पकड़ लो…
बेटी ने कहा अन्तर है पापा !
कोई बात हुई तो मैं आपका हाथ छोंड़ भी सकती हूँ,
पर आप चाहे कुछ भी हो जाए
मेरा हाथ नहीं छोंड़ोगे…
नेत्रदान:-जीवनज्योति
December 31, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
एक अंधी लड़की देख के
मन में वेदना का ज्वालामुखी फूटा
सोई थी चिर निद्रा में
करुणा से अवधान टूटा…
मन में आया मेर जो
वह सबको आज बताती हूँ
मेरे नेत्र हैं कितने सुंदर
यह सोंच के मैं मुसकाती हूँ…
इन नेत्रों का जीवन
मेरे जीवन से लम्बा होगा
मेरी सुंदर आँखों से कोई
सारी दुनिया को देखेगा…
मर कर भी मैं अपना नाम
अमर कर जाऊंगी
करना चाहती थी कुछ बड़ा,
अब नेत्रदान कर जाऊंगी
नेत्रदान करना,
अपने वंश की बनाये परंपरा
अपनी आँखें देकर
किसी के जीवन में दें प्रकाश फैला..
“रक्तदान है महादान”
December 31, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
रक्तदान है महादान
यह ‘प्रज्ञा शुक्ला’ कहती है,
रक्ताल्पता को अक्सर
जीवन में अपने सहती है…
रक्तदान करने से कोई
कमजोरी नहीं आती है,
इतनी दुआएं मिलती हैं कि
झोली भर जाती है…
किसी की बुझती जीवन ज्योति को
रक्त देकर दीप्तिमान करो
रक्तदान कर हे मानव !
मानवता पर एहसान करो…
जाने कितने हैं प्राणी जो
रक्ताल्पता से मर जाते हैं,
रक्त ना मिलने के कारण
कितने दीपक बुझ जाते हैं..
हो यदि सक्षम तो हे मानव !
नियमित रूप से रक्तदान करो
सब यज्ञों से बढ़कर है तुम ये महादान करो…
तुझे याद नहीं करूंगी
December 30, 2020 in शेर-ओ-शायरी
सोंचती हूँ नये साल में कुछ बड़ा करूंगी
————————————————
चल ठीक है, तुझे याद नहीं करूंगी…..❤❤
बड़ा हसीन रहा यह साल
December 30, 2020 in Other
सच कहूं तो बड़ा ही
हसीन था यह साल,
हर एक ने अपना
रंग दिखा दिया…🐊🐍
“उतरन”
December 30, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
“रिश्तों में वफादारी और विश्वास”
************************************
गमों की बरसात होती रही
अश्क रुखसार पर लुढ़कते रहे,
हमने सोंचा ये फिक्र है तुम्हारी
यही सोंचकर हम
हर सितम सहते रहे….
एक सिसकती हुई रात ने
समझा दिया हमको
जब तुम लिपटे हुए थे
गैरों की बांहों में
हमें वफादारी का पाठ पढ़ाने वाले
खुद बैठे थे किसी महबूब की.पनाहों में,
सब कुछ सह रहे थे हम,
पर ये कैसे सह लेते हम !
रोटियां टुकड़ों में मुनासिब थीं पर
पति का प्यार कैसे बांट लेते हम !
वो सिर्फ हमारे हैं यही सोंचकर
सह रहे थे सभी जुल्मोंसितम,
पर ‘प्यार की उतरन’ कैसे स्वीकार करते हम
वो गलियां छोंड़ आये हम….
वक्त ने समझा दिया
December 30, 2020 in शेर-ओ-शायरी
खामोंश रहना
जज्बात बयां करने से
अच्छा है
दिल की बातें दिल में छुपाना
अच्छा है
काश ! ये पहले ही समझ
जाते हम,
चलो वक्त ने समझा दिया
ये भी अच्छा है….
अच्छा नहीं लगता
December 30, 2020 in शेर-ओ-शायरी
तुम जब बात-बात पर
झगड़ा करते हो मुझसे
सच कहूं तो बुरा नहीं लगता,
पर जब तुम नाराज होकर
बात करना बंद कर देते हो
तो कुछ भी अच्छा नहीं लगता…
“सुशांत सिंह राजपूत”
December 30, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
छ: महीने बीत गये
अब तक कुछ ना पता चला
सुशांत सिंह राजपूत ने
आत्महत्या की या
उन्हें मार डाला गया..
कैसा शासन है ?
और कैसे यहाँ के लोग हैं
मंगल ग्रह पर तो पहुंच सकते हैं
परंतु अपराधी तक नहीं पहुंच सकते….!!
“अब और ना हों निर्भया काण्ड”
December 30, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
निडर होकर निकले हर लड़की
काश ! ऐसा भी दिन आए,
बेटों से डर ना लगे
हर बेटा पूजा जाए…
कर्म हों सबके अच्छे
संस्कार हों भरे,
शुद्ध हो आचरण बेटों का
ऐसा पाठ पढ़ाया जाए..
भारत की गलियां हों सुंदर
हर बेटी हो बेटों से अव्वल…
कुत्सित मन को तजकर सब
रहें शिक्षित और रहें सलामत
एक ऐसा कानून बने
बेटी पर जो कोई नजर गड़ाये,
दी जाए उसको फिर फाँसी
जो दामन में दाग लगाये…
बेटे हों संयमी, संस्कारी,
चरित्रवान हो हर घर की नारी..
प्रज्ञा’ की है बस एक ही आस,
अब और ना हों ‘निर्भया काण्ड’…..
ऐसे हैवानों को फाँसी होनी चाहिए
December 30, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
“बलात्कार है अक्षम्य अपराध”
++++++++++++++++++++
चीख-चीखकर
पुकारा उसने,
पर कोई सुनने ना आया…
तोड़ती रही वह दम अपना,
पर कोई लाज बचाने ना आया…
वैशी-दरिंदे झपट पड़े,
उनको जरा भी तरस ना आया…
क्या औरत का जिस्म ही है
उसका बैरी !
यह अब तक प्रज्ञा’ को समझ ना आया..
क्यों नहीं मिलता नारी को
देवी का सम्मान,
दम तोड़ दिया जिसके कारण
वह तो हैं हैवान…
ऐसे हैवानों को फाँसी होनी चाहिए
यह नियम पूरे देश में
लागू होना चाहिए…
देश की हर बेटी सुरक्षित और
निडर होनी चाहिए,
नारी को सम्मानजनक
दर्जा मिलना चाहिए…
❤माँ का निश्छल प्रेम❤
December 30, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
❤माँ और पत्नी❤
*******************
माँ से जब मांगी एक रोटी,
माँ के चेहरे पर मुस्कान खिली…
पत्नी से मांगी जब रोटी तो
मन ही मन नाराज हुई….
माँ कहती ओ बेटा !
तू कितना ज्यादा सूख गया
पत्नी कहती- जिम जाओ जी !
आपका पेट है बाहर झांक रहा…
माँ को जब मालूम पड़े
कल बेटे की छुट्टी है,
बेटा मेरा आराम करेगा
रोज तो दौड़-भाग ही रहती है…
पत्नी पकनिक की प्लानिंग
पहले से ही बना लेती है,
पति करे यदि आनाकानी
तो झट से मुंह फुला लेती है….
पत्नी की अहमियत है जीवन में,
इससे मुझको इनकार नहीं…
पर माँ के निश्छल प्रेम की
बराबरी करने वाला,
इस दुनिया में कोई यार नहीं…
कोरे कागज के पंख
December 30, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
जा रहा है २०२०
कुछ खट्टी-मीठी
यादें छोंड़कर,
आ रहा है २०२१
कोरे कागज के पंख ओढ़कर….
उम्मीद है यह सवेरा
सबके जीवन में आएगा,
उम्मीद की रौशनी ले
हर मन में उत्साह जगाएगा..
ये क्या है ? क्यूं है !
December 30, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
जाने क्यूं तुमसे
प्यार-सा हुआ
जाने अनजाने
इकरार-सा हुआ,
तुम लाख बुरे सही
पर अपने से हो
लाख दूरियां हैं फिर भी
पास रहते हो..
ये क्या है ! क्यूं है !
नहीं जानती हूँ मैं,
पर जो भी है
तुम्हें अपना मानती हूँ मैं…
२०२१ हो ऐसा, बिल्कुल रामराज्य के जैसा
December 29, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
यह नववर्ष इतिहास बन जाए
भारत की सब गाथा गाएं
बूढ़ों में फिर आए जवानी
लोरी गायें दादी-नानी
भाई-बहन सब खुशी मनाए
हर घर में खुशहाली आए
कोरोना से जो क्षति हुई
उसकी अब भरपाई हो
ऑनलाइन अब बहुत हो गई
स्कूलों में पढ़ाई हो
ऐसा दिन ही ना आए
कोई नागरिक धरने पर बैठे
सबको सुसंगठित सरकार मिले
युवाओं को रोजगार मिले
२०२१ हो ऐसा
बिल्कुल रामराज्य के जैसा…
“कलम और स्याही”
December 29, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
ओ विरह की वेदना !
मुझको पकड़ा दो कलम
साथ में दे दो मुझे
रात की तन्हाइयां
और दो मुझको तुम
रंग-बिरंगी स्याहियां
अधखुली-सी इक कली
रात यों कहने लगी
“कलम और स्याही” ना हो तो
दर्द कैसे लिखोगी
मैं समझ ना कुछ सकी
सोंच में लिपटी रही
बोल फिर कुछ ना सकी
फिर मौन-सी सिसकी उड़ी….
अल्फाज ठिठुर गये
December 29, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
जाने कितने अल्फाज ठिठुर गये
जो लिखे थे मन के कागज पर मैंने
सिकुड़ गये कुछ
ठण्ड की कटीली रातों में तो
कुछ जम गये बर्फ के गोलों में
सुबह धूप निकलेगी तो
पिघलेंगे यही सोंचती रही मैं
पर ऐसा कुछ भी ना हुआ
वह अल्फाज जाने किन
समुंदरों में बह गये
शायद घने कोहरे की धुंध में
भटक गये
तब से लिए ‘कलम और स्याही’ घूमती हूँ
पर वह अल्फाज
खो गये तो खो गये !!
“पिता है जीवन का आधार”
December 29, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
पिता है जीवन का आधार
पिता से है यह जीवन संसार
पिता है मेरे मन का कोना
पिता प्रेम ना मुझको खोना
पिता मुझको खूब पढ़ाया
बेटो से ज्यादा सम्मान दिलाया
मेरी आँख में जब भी आँसू आते
पापा धरती जोर हिलाते
जो भी कहती मुझे दिलाते
उंगली पकड़ संसार घुमाते
पापा को करती मैं माँ से ज्यादा प्यार
उन्होंने किया है मेरा हर सपना साकार
नया साल मंगलमय हो
December 28, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
बीता गया २०२०
आया है सजकर २०२१
मिट्टी डालो बीती बातों पर
मुस्कान रखो बस अधरों पर
कोशिश करो जीवन में इतनी
कोई बात ना करो जो हो दिल दुःखनी
दोस्तों से हँसकर गले मिलो
सबको हार्दिक नववर्ष कहो…
Happy
New
Year
2021💜💜
घर की लक्ष्मी बेटियां
December 28, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
बेटी होना एक अभिषाप !
मानता है यह आज भी समाज
बेटी तो कुल की लक्ष्मी है
पूजी जाती हर घर में है
बेटी से घर में हो उजियारा
किलकारी से खिलता
आंगन सारा
बेटी करती है सबका सम्मान
परिवार में बसते उसके प्राण
जब जाती है वह ससुराल को अपनी
दुनिया बसाती वहाँ पे अपनी
बेटी तो है दो कुल का सम्मान
बेटी है घर, परिवार का मान…
सोंधी-सोंधी गाँव की यादें….
December 28, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
सोंधी-सोंधी गाँव की यादें
चौपाटी पर परधानी की बातें
पके-पके से स्वर्णिम धान
गाँव के बूढ़े, बाल, किसान
सब आते हैं मुझको याद
गोरी के गोरे-गोरे गाल
जिन पर हँसकर झूले लट
ना भूला मैं वह पनघट
जहाँ भरा करती थी पानी
जोरू, बहना और बूढ़ी नानी
माँ की वह चूल्हे की रोटी
सरसों का साग और गुण मीठी-मीठी
माँ पोंछ के आँचल से तब देती
लगी राख जो रोटी में होती
घी की मोटी परत लगाती
दूध में रोटी मसल खिलाती
बाबा की पगडण्डी और
नहरों की वो तैराकी
आज बड़ा ही याद आये
गाँव के छूट गये जो साथी….!!
“लंगड़ाया शासन”
December 27, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
बस जुमला है !!
++++++++++++++++
अब तो है
लंगड़ाया शासन
पहले होता था देशों का
अब है हृदयों का विभाजन
मजदूरों की रोटी रूठी
खबरें चलती झूठी-मूठी
हलधर बैठा धरने पर
गरीब की फटती जाए लंगोटी
सिलेण्डर है पर LPG
नहीं है
गेहूं तो है पर दाल नहीं है
कालोनी हैं कागज पर
पेंशन भी है कागज पर
दीया’ तो है पर तेल नहीं है
हमारे शासन में कोई झोल नहीं है
अब सरकार है चलती
मीडिया के बल पर
बंदर लटक रहे
केबल (TV) पर
जो दिखता वो ही बिकता है
ये शासन अब इसी पर चलता है
चुनावी वादे बस जुमला हैं
युवाओं को नौकरी बस जुमला हैं
किसान हो या आम इंसान
सब हैं कितना परेशान
सांत्वना रोकर जो नेता देते हैं
प्रज्ञा’ कहती वह सब भी बस जुमला है….
विधवा स्त्री: “रूठ गई जबसे है चूड़ी
December 27, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
कैसा जीवन
हाय ! तुम्हारा
ना चूड़ी ना
गजरा डाला
पैरों की पायल भी रूठी
घुंघरू टूटा,
चूड़ी टूटी
जो देखे वो
कहे अभागन
जब चले गये हैं साजन !
तुझ पर कितने
अत्याचार हुए
कटु वचनों के बाणों के
बौछार हुए
जीवित ही तुझको
सबने मार दिया
तेरे पति के मरने पर
तुझको ही दोष दिया
जो स्त्रियां बैठ बतियाती थीं
संग हँसती थीं,
मुसकाती थीं
अब माने तुझको अपशकुनी
रूठ गई जबसे है चूड़ी…!!
ठान लो तो क्या मुश्किल है
December 27, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
ये लम्बी दूरियों का फासला
तय कर पाना मुश्किल है
थोड़ा तुम चलो
थोड़ा हम चलें
फिर मंजिल पाना कहाँ
नामुमकिन है
प्यार ही तो है मंजिल हमारी
तुम्हारे सजदे में
ये मेरा दिल है
सफर यूं तो आसान नहीं अपना
पर ठान लो तो क्या मुश्किल है !!
हे अटल! अटल रहो
December 26, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
अटल बिहारी वाजपेयी जी की जयंती पर विशेष प्रस्तुति:-
*********************************************
हे अटल ! अटल रहो
यूँ ही हृदय में बसे रहो
दिव्य ज्योति बनकर सदा
साहित्य में जले रहो
प्रकाश दो सूर्य को तुम
मेरा हौसला बने रहो
हे अटल ! अटल रहो
यूँ ही हृदय में बसे रहो
कह गये तुम सौ दफा-
“हार नहीं मानूंगा
रार नहीं ठानूंगा
काल के कपाल पर
लिखता मिटाता हूं
गीत नया गाता हूं”
मेरी कलम की धार तुम
हमेशा ही बने रहो
जब बोलते थे तुम अटल
तो खुल जाते थे मस्तक पटल
तालियों की गड़गड़ाहट से गूंजता था आसमां
लेखनी तुम्हारी और स्वस्थ्य राजनीति का
लोहा हिन्दुस्तान ही नहीं
मानता था सारा जहान
दल हो या विपक्षी हों
प्रेम तुमसे करते थे
ये हिन्दुस्तान ही कुछ और था
जब तुम प्रधानमंत्री थे
हे भारत रत्न ! तुम सदा
यादों में सजे रहो
हे अटल ! अटल रहो
यूँ ही हृदय में बसे रहो।।
काव्यगत सौन्दर्य व विशेषताएं:-
अटल जयंती पर मेरी कलम से अटल जी को श्रद्धांञ्जलि..
अटल जी अपनी चिरपरिचित मुस्कान से जाने जाते थे वह एक ऐसे नेता थे जो भाजपा व विपक्षी सभी को समान रूप से प्रिय थे
उसका कारण यह था कि वह अपने राजनीतिक फायदे के लिए कभी शब्दों व मर्यादा की सीमा नहीं लांघते थे जब उन्हें कुछ गलत होता दिखाई पड़ता था तो वह व्यंगात्मक रूप से तंज कसते थे
वह भारत को एक कुशल देश वा सबकी अगुवाई करने वाला देश बनाने की कोशिश में थे
उन्होने प्रधानमंत्री का पद हँसते-हँसते छोंड़ दिया था…
वह कहते थे राजनीति मुझे लिखने का मौका नहीं देती फिर भी वह जब भी लिखते थे तो कमाल का लिखा करते थे…
“अपने सुंदर व्यवहार के कारण वह सदा हमारे हृदय में जीवित रहेंगे”