
Pragya
“हमारा संविधान और संविधान दिवस”
November 26, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
आज संविधान दिवस है
हमारा संविधान विश्व का सबसे बड़ा लिखित संविधान है…
२६ नवम्बर २०१५ से
डॉ० भीमराव अम्बेडकर के १२५वें जन्म दिवस से संविधान दिवस के रूप में मनाया जाता है…
अम्बेडर जी को संविधान निर्माता कहा जाता है…
संविधान की असली कॉपी
प्रेम बिहारी नारायण रायजादा ने अपने हाथ से लिखी…
कैलिग्राफी के जरिये इटैलिक
अक्षरों में लिखी…
जिसे आज भी भारतीय संसद में हीलियम भरे डिब्बों में सुरक्षित रखा गया है…
हमारे संविधान को हिंदी तथा इंग्लिश दोनों भाषाओं में लिखा गया है…
इसे लिखने में २ वर्ष, ११ माह, १८ दिन लगे थे..
शांतिनिकेतन के कलाकारों द्वारा इसके हर पन्ने सजे थे…
कई देशों के संविधानों से इसमें खूबियां अंगीकृत की गईं…
जो २६ नवंबर, १९४९ को लिखित रूप में पूरी की गईं…
हमारा संविधान महज वकीलों का दस्तावेज नहीं है,
बल्कि यह जनता का, जनता के लिए है…
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
“एक तरफा मोहब्बत”
November 26, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
तुम्हारे सुधर जाने की गुंजाइश ही नहीं थी
तो आखिर हम कोशिश कब तक करते !
रफ्ता-ऱफ्ता तुम पास आते गये
हम भला दूर कैसे रहते !
रोंका तुम्हें, समझाया तुम्हें
और भला हम क्या करते…
जब तुम्हें हमसे मोहब्बत ही नहीं थी
आखिर हम तुम्हें अपना कब तक समझते…
“अनाथ आश्रम”
November 26, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
अनाथ आश्रम
★★★★★★★
मेरे माँ-बाप कैसे होंगे
यही सवाल अक्सर मस्तिष्क में गूंजता रहता है
अक्सर मुझे वो काकी याद आ जाती हैं
जिन्होंने मेरी परवरिश बचपन में की थी
उस अनाथ आश्रम में बहुत
से बच्चे थे पर मुझसे कुछ
अलग ही लगाव था उनका
माँ नहीं थीं पर फिर भी माँ जैसा खयाल रखती थीं मेरा
उस अनाथ आश्रम में कभी
अनाथ जैसा महसूस नहीं होता था
सब थे अपने से और दर्द समझते थे
वो काकी आज बहुत याद आ रही हैं
जिनकी गोद में सिर रखकर सोती थी
आज मैं जो कुछ भी हूँ उनके प्यार की वजह से हूँ
आज उसी अनाथ आश्रम में कुछ सहयोग देने आई हूँ
सब मिले हैं पर वो काकी नहीं हैं…
“अतीत के फफोले”
November 26, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
अतीत के फफोले
***************
जीवन मेरा उलझा-उलझा
सुलझी लट बालों की
मैंने ना देखा सुंदर उपवन
ना देखी प्रेम की सरिता निर्मल
भूलवश मैं पड़ गई प्रेम के
मायाजाल में
सोंचा था मिलेगा सुख और
जीवन में खिलेेंगे सुंदर पुष्प
पर हार ही हार मिली
जो भी जीवन में आया उससे केवल पीर मिली
अतीत के फलोले आज फूटने लगे हैं
जब बिछड़े हुए लोग फिर से मिलने लगे हैं..
लावारिस बचपन
November 26, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
लावारिस बचपन
**************
सड़कों पर भटक-भटक कर है कैसे बचपन बीता,
और नहीं खाने को है एक
निवाला मिलता…
जाने कहाँ हैं मेरे माँ-बाप
नहीं मैं जानू,
मैं तो झुग्गी बस्ती को ही
अपना घर-बर मानू…
लालन-पालन मेरा अनाथ आश्रम में हुआ है,
यह लावारिस बचपन सड़कों के किनारे ही कटा है…
मैंने ना देखा सुनहरा बचपन
ना देखी शोख जवानी,
बस बचपन से करी मजूरी
और गलियों की धूल है छानी…
“देवोत्थान एकादशी”
November 25, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
आषाण की एकादशी को
सभी देव सो जाते हैं…
और कार्तिक की एकादशी को
सभी देव जग जाते हैं…
इसीलिए इस दिन को
देवोत्थान एकादशी कहते हैं…
आज के दिन विष्णु जी
चारमास के बाद नींद से जागते हैं…
और आज के दिन तुलसी माता
का विवाह भी होता है..
इसीलिए आषाण से कार्तिक मास तक
कोई शुभ कार्य किया नहीं जाता है…
आज के दिन से हिन्दू धर्म में
विवाह होना प्रारम्भ हो जाता है…
देवोत्थान एकादशी की महिमा
बहुत निराली है..
गन्ने का मंडप बनाकर विष्णु जी
के पैर बनाकर की जाती है पूजा विधिवत्…
‘आओ देवा उंगली चटकाओ
नींद से जागो कृपा बरसाओ’
ऐसा बोला जाता है…
सिंघाड़ा, बेर, शकरकन्द चढ़ाकर
प्रभु को भोग लगाया जाता है…
“जय हो विष्णु जय हो तुलसी
जय हो सारे देवों की
आओ मेरे घर प्रभु पधारों
इच्छा पूर्ण करो हम भक्तों की”….
“देवोत्थान एकादशी की सभी को बधाई”
“तुलसी माँ विवाह”
November 25, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
आज है कार्तिक मास की एकादशी है
तुलसी माँ का विवाह है…
मेंहदी लगाकर मौली चढ़ाकर
गोटे वाली चूनर ओढ़ाकर
माता का किया श्रृंगार है
आओ भक्तों मंगल गाओ
तुलसी माँ का विवाह है…
पैरों में माँ के महावर लगाकर
फूल-फल और हलवा पूरी का
तुलसी माता को भोग लगाकर
खाओ यह मंगल प्रसाद है..
तुलसी माँ का विवाह है…
उस माँ का दर्द कौन जाने..!!
November 25, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
उस माँ का दर्द कौन जाने !
जो अपने फर्ज के लिए
अपने दुधमुहे बच्चे को
घर छोंड़कर जाती है..
वो पुलिसकर्मी है अपनी ड्यूटी
खूब निभाती है…
कभी छोंड़ती मायके में
कभी ससुराल में छोंड़कर जाती है..
दिल को पथ्थर बनाकर
ममता से मुंह मोड़ती है
देश के नागरिकों की रक्षा
के लिए
अपने बच्चे को दूसरे के
सहारे छोंड़ती है…
कैसे बीतते हैं उसके दिन और
कैसे रात कटती है…
उस माँ का दर्द कौन जाने
जो अपने बच्चे से दूर रहती है…
नहीं लगता दिल कहीं जब
अपने बच्चे की याद आती है…
वीडियो कालिंग से वह अपने बच्चे को देख पाती है…
हंसता-खेलता अपना बच्चा
देख
माँ के चेहरे पर मुस्कान आती है…
दिल दुःखता है दूरियों से
और आँख भर आती है…
कभी-कभी नन्हे से बच्चे को
माँ ड्यूटी पर ले जाती है..
बच्चे के प्रति लापरवाही भले कर भी दे माँ
पर देश के प्रति अपना फर्ज बखूबी निभाती है..
उस माँ का दर्द कौन जाने
जो बच्चे को छोंड़कर
रो-रोकर रात बिताती है…
विशेष:-
यह कविता सभी महिला पुलिसकर्मियों और कामकाजी महिलाओं को समर्पित है…
जो अपने फर्ज के लिए अपने बच्चे से दूर रहकर अपनी ड्यूटी करती हैं…
अच्छी किस्मत
November 23, 2020 in शेर-ओ-शायरी
अच्छी किस्मत वाले लोग
आसानी मिल जाते हैं पर
दिल के अच्छे लोग बड़ी
मुश्किल से रहते हैं…
स्वाद मोहब्बत का
November 23, 2020 in शेर-ओ-शायरी
वो हमें छोंड़कर गैरों के हो गये
चलो स्वाद ले लेने दो उन्हें भी
गैरों की मोहब्बत का,
जब वो हमारे नहीं हुए
तो किसी और के क्या होंगे ??
मानव मूल्यों का ह्रास
November 23, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
बेंचकर सोना-चाँदी
पीने चले अंग्रेजी देखो
मानव के पतन का ये
सुंदर दृश्य देखो
दिन भर करें मजूरी
रात में पीकर टुंन हैं देखो
हिन्दू हो या हो मुस्लिम
सब बैठे मयखाने में देखो
दारू के दो पैग लगाकर
पी लेते हैं जैसे अमृत देखो
कहाँ जा रही मानवता
मानव मूल्यों का होता ह्रास देखो…
‘बाबू जी की टूटी कुर्सी’
November 23, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
बाबू जी की टूटी कुर्सी
चरमर-चरमर करती है
जब बैठो उस कुर्सी पर
डाल की तरह लचकती है
बाबू जी उस कुर्सी पर
बैठ के पेपर पढ़ते हैं
और साथ में बाबू जी
चाय की मीठी चुस्की लेते हैं
सुबह सवेरे उठकर वो
रोज टहलने जाते हैं
लौट के आते जब बाबू जी
मल-मल खूब नहाते हैं
वह कुर्सी बाबू जी को
बेटे माफिक प्यारी है
टूट गई वह देखो फिर भी
बाबू जी को प्यारी है…
और मैं खामोंश थी…!!
November 22, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
आज बहुत उदास होकर
उसने मुझे पुकारा,
मैं पास गई और
उसे प्यार से सहलाया…
उसने मुझसे कहा
तुम मुझसे नाराज हो क्या ?
या जिन्दगी की उलझनों से हताश हो क्या ?
मैंने मुस्कुराते हुए
अपने आँसू छुपाकर कहा
नहीं तो पगले !
तुझसे नाराज नहीं खुद से खफा हूँ मैं
जिन्दगी से हताश नहीं
हैरान हूँ मैं…
बस कुछ दिनों से खुद से नहीं मिल पाई हूँ
इसीलिए तुझे अपने प्रेम से
सींच नहीं पाई हूँ…
मेरी गोद में सिर रखकर उसने कहा
तो फिर तुमने मुझे कई दिनों से सींचा क्यों नहीं!
सुबह उठकर सबसे पहले
मुझे देखा क्यों नहीं!
वो छज्जे पर गमले में बैठा
मेरा मनी प्लांट’
मुझसे से सवाल पर सवाल करता रहा और
मैं खामोश थी…
प्रेम का लबलब घड़ा…
November 22, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
रुक मुसाफिर ! रुक जरा !
मैं हूँ प्रेम का लबलब घड़ा.
कीर्ति तेरे परिश्रम की
कम नहीं फैली हुई है…
राह में तेरे मुसाफिर
देख ये प्रज्ञा’ खड़ी है
सुन जरा ओ पथिक प्यारे !
देख टूटा जाये ये लबलब घड़ा
भर ले अंजुल मेरे नीर से
वरना छलक जायेगा यह घड़ा…
सुन जरा ओ पथिक प्यारे !
पी ले तू मुझको जरा
प्यास तेरी मिटेगी और
दर्द कम होगा मेरा…
*शिल्पकार*
November 22, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
कवि नहीं शिल्पकार हूँ मैं !
एक ऐसा कवि,
जो कागज पर
अपनी भावनाओं भरी कलम से
शब्दरूपी
नक्काशी करता है..
जिसकी सुंदरता सिर्फ
नेत्रों से दिखाई ही नहीं पड़ती
बल्कि हृदय से महसूस भी होती है…
‘सुकून और बेचैनी’
November 21, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
थकान है मगर दिल को आराम है
आज मन भी बड़ा शान्त है
थोड़ी तसल्ली भी है
तुम्हारे साथ होने की
खुशी भी है
तुम्हारे कंधे पर सिर रखकर
आज घण्टों रोती रही मैं
सिर तो दुःख रहा है
मगर दिल हल्का भी है
तुमसे जी भर कर कह दी हमने
दिल की बातें
सुकून भी है और बेचैनी भी है..
अतीत की यादें..
November 20, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
रात को गले लगाने के बाद
अतीत की यादों में डूब जाने के बाद,
बस आँसुओं का सैलाब ही उमड़ता है
किसी से एक तरफा मोहब्बत हो जाने के बाद..
*आख़री खत*
November 20, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
वो मीठी बातें और मुलाकातें
करते थे हम रात भर जो प्यार भरी बातें
तुम जाने कितने तोहफे
मुझे दिया करते थे,
हर तोहफे में एक खत रखा करते थे..
उन खतों की बात निराली होती थी,
पढ़ती थी अकेले जब
हाथ में चाय की प्याली होती थी…
तुम्हारे खतों की भाषा
मेरी कविताओं से अच्छी होती थी,
तुम्हारे हर खत को मैं बार-बार
पढ़ती थी…
फिर तुम्हारी एक गलतफहमी ने
सब बर्बाद कर दिया,
बहुत दूर तक जाने वाला था जो रिश्ता
एक ही झटके में हमने तोड़ दिया…
जलाया जब आज मैने
वो तुम्हारा आख़री खत,
सारे जख्म हरे हो गये
जिन्हें भरने में लगा था काफी वक्त…
“हमरी अरज सुनि लीजै ओ छठी मैया”
November 20, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
अवधी देवीगीत:- ‘छठ पूजा स्पेशल’
*****************
ओ छठ मैया !
हमरी अरज सुनि लीजै…
सात बरस मोरे ब्याह को होवै
ललनवा तरसे मोर अंगनवा
ओ छठ मैया !
दईदेऊ हमकऊ ललनवा…
सास-ननद मोहे नाता मारैं
जिठनी मनहिं मुसकावैं
ओ छठ मैया !
हमरी अरज सुनि लीजै…
राह चलत सब निरवंशी कहैं मोहे
मोरी सूरतिया असगुनही मानैं
ओ छठ मैया !
हमरी अरज सुनि लीजै..
सेंदुरिया सूरज हम अर्घ देइति हन
तोरी किरिपा हमई मिलि जावै
ओ छठी मैया !
हमरी अरज सुनि लीजै…
वो जूठी कॉफी..!!
November 20, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
तुम मुझे प्यार नहीं करते हो
यही सोंचकर मैं बहुत उदास थी !
तुम आये जब घर तो कुछ
आस जगी..
मैंने जल्दबाजी में बनाई थी
अपने लिये जो एक कप कॉफी
थोड़ी पी ली थी,
तुम आये तो बड़े प्यार से तुम तक पहुंचा दी..
वो कॉफी मेरी जूठी थी
तुम्हारे पास रखी थी वो बड़ी देर से,
जब आकर कहा मैंने
खिड़की की ओट से
वो कॉफी मेरी जूठी है..
तुमने आश्चर्य से मेरी तरफ देखा !
मैं समझ गई कि तुम अब नहीं पियोगे पर
वो कॉफी जो बड़ी देर से तुम्हारे पास
रखी थी !
तुम्हारे होंठों से लगने की प्रतीक्षा कर रही थी,
वो कॉफी तुम गटागट पी गये…
मैं फिर संशय में पड़ गई
तुम प्यार करते हो या नहीं करते हो ?
वो जो कॉफी का कप’
तुम टेबिल पर छोंड़ गये थे,
शायद जान बूझकर उसमें
कुछ कॉफी छोंड़ गये थे..
मैंने उस कॉफी को उठाकर झट से पी लिया
यूं लगा जैसे अमृत का घूंट पी लिया…
*रात में सिर्फ मेरे साथ चाँद रहता है*
November 20, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
उलझनें रात को उबाती हैं दिन में नहीं
तन्हाई रात को तड़पाती है दिन में नहीं..
पीर महसूस करने का वक्त
दिन में नहीं मिल पाता है
इसीलिए कवितायें रात को
लिखती हूँ दिन में नहीं..
दिन में किसी ना किसी से जंग छिड़ी रहती है
और रात खामोंशी में आराम से कटती है…
दिन में लोगों का हुजूम उमड़ पड़ता है
रात में सिर्फ मेरे साथ चाँद रहता है…
रात में दिल की धड़कनें जोर से
धड़कती हैं,
जो मुझे कानों से सुनाई पड़ती हैं…
दिन में मेरी आवाज कौन सुनता है ?
दिन में तो खुद को भी बार-बार
ढूंढना पड़ता है..
रात में खामोंश-सी तन्हाई साथ रहती है
जो दिल के जज्बात लेखनी से बयां करती है..
ओ मेरे प्रियतम कान्हा !!
November 20, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
ओ मेरे प्रियतम कान्हा !!
मुझको तेरी बेरुखी से
डर लगता है,
तुम्हारी आँखों से
साफ पता चलता है…
तुम जिस तरह मायूस निगाहों से
मेरी तरफ देखते हो,
अपनी लाचारी साफ बयां करते हो…
क्यूं समझते हो तुम खुद को अकेला ?
मैं तो तुम्हारी ही हूँ
ये तुम क्यों नहीं समझते हो !
मत सोंचो दुनिया छोंड़कर जाने की,
अभिलाषा रखो मेरा साथ निभाने की…
हौसला रखो ये बुरा वक्त भी कट जाएगा,
तुमने जो देखा है सपना
वह भी साकार हो जाएगा…
हम तुम्हारे लिए कुछ भी कर सकते हैं,
पर हम तुम्हें छोंड़कर जी नहीं सकते हैं…
इरादा नहीं है मेरा
तुमसे ब्याह रचाने का,
सपना है तुम्हारे दिल में आशियां बनाने का…
तेरी रूह से प्यार करती हूँ
जिस्म पर अधिकार नहीं जताऊंगी,
तुम मेरे हो बस एक बार ये कह दो
मैं उसी में स्वर्ग पा जाऊंगी…
मीरा की तरह मैं तो तेरी भक्ति करती हूँ,
सुध-बुध बिसराकर तेरा नाम जपती हूँ….
रुक्मिणी बनने के ख्वाब मैं नहीं देखती !
मैं तो राधा की तरह तेरे प्रेम को तरसती हूँ…
मत छोंड़ जाना तुम मुझे
दुनियां में अकेला,
हो ज्यादा जरुरी जाना !
तो बता देना मुझे,
सबकुछ छोंड़कर, मैं तेरे साथ ही चलती हूँ…
**खुदखुशी**
November 20, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
चोरी से चुपके से
तुम सब कुछ देखा करते हो
मैं जानती हूँ तुम ऑनलाइन भी रहते हो
जाने क्या बैठ गया है तुम्हारे मन में !
पास होकर भी तुम मुझसे
कटते रहते हो
मैं जानती हूँ, समझती हूँ सबकुछ
सुंशात राजपूत’ की तरह
तुमने भी खुदखुशी करने की सोंची है
जरा ये भी तो सोंचो सुशांत की
कहानी कहाँ तक पहुंची है
क्या तुम मुझे भी रिया चक्रवर्ती, दिशा की तरह
बदनाम कर देना चाहते हो ?
बनी बनाई इज्जत को नीलाम
कर देना चाहते हो ?
तुम्हारे घरवाले बिठायेंगे मुझे थाने में
क्या तुम यह सह सकोगे सपनें में !
तुम्हारी खुदखुशी से किसी को
क्या मिल जाएगा ?
बल्कि मेरा दर्द और बढ़ जाएगा
हम तो किसी को मुह भी नहीं दिखा पाएगे
सबकुछ छोंड़कर तुम्हारे पास आ जाएगे..
*श्याम ! कभी गोपी बनके तो देखो*
November 20, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
अगर राधा ना होती तो
श्याम से प्रीत कौन करता ?
अगर मीरा ना होती तो
भक्ति के पद कौन गाता फिरता ?
यही तो है प्रेम में हमेंशा
नारियों ने अपने आपको
सराबोर कर दिया है,
केवल प्रेम किया और कुछ नहीं किया
ओ श्याम ! कभी गोपी बन के तो देखो
जैसा प्रेम राधा ने किया
वैसा प्रेम करके तो देखो
जैसे सुध-बुध खोकर गोपियों ने प्रतीक्षा की
वैसे ही सुध-बुध खोकर तो देखो
तब जानोगे तुम *प्रेम की पीर मोहन !
तुम चैन से वंशी बजाना छोंड़ दोगे..
*एहसास*
November 20, 2020 in शेर-ओ-शायरी
तू जब हुआ करता था
मेरे करीब तो
एक अलग एहसास हुआ करता था
आज जब दूर है मुझसे
तो कोई एहसास ही नहीं होता…!!
मैं वो चट्टान हूँ
November 20, 2020 in शेर-ओ-शायरी
कोशिश बहुत करता है वो
मुझे तोड़ने की,
मगर मैं वो चट्टान हूँ
जो पिघल तो सकती है मगर टूट नहीं सकती…
अस्तित्व पर सवाल…!!
November 19, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
अभी तक अस्तित्व पर
ना कोई सवाल उठा था
जो देखता था मुझको
बस वाह ! करता था
मेरी खुशियों की झोली
बहुत थी भारी
ख्वाबों में अपना उधार चलता था
किस्मत की लकीरें
मिट गईं अचानक
अस्तित्व पर कई सवाल भी उठे प्रज्ञा !
जितनी मुस्कुराहटें
पड़ी थीं पलंग पर
सारी बिखर गईं और मैं सिमट गई..
“माँ अपनी गोदी में सुला ले”
November 19, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
मैं नन्हीं-मुन्हीं बच्ची हूँ
अकल की थोड़ी कच्ची हूँ
मां अपनी गोदी में सुला ले
मैं तो तेरी बच्ची हूँ
थक जाती हूँ खेल-खेलकर
सब मुझको देखें हँस-हँसकर
सब कहते हैं मैं अच्छी हूँ
मैं तो तेरी बच्ची हूँ
**आचरण की सभ्यता**
November 19, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
तमाशा नहीं जिन्दगी
हकीकत है,
जी लो जी भर के
कल किसको फुर्सत है…
रोज़ लड़ते हो तुम
धन-दौलत के पीछे,
उतना ही कमाओ जितनी जरूरत है..
यह धन-दौलत सब यहीं धरा रह जायेगा,
जो कमाकर रखोगे वह
कोई और खायेगा..
जिस जमींन को खरीदकर
बनते हो तुम सेठ,
उस जमीन पर कल कोई और घर बनायेगा..
यहाँ जो कुछ भी है
सब नश्वर है,
ना किसी को मिल सका है कुछ
ना किसी का हो पाएगा…
जितना पोटली में है,
उतने में संतोष करो
जितना भाग्य में है उतना ही तो मिल पाएगा..
प्रेम से रहो और प्रेम ही करो,
अच्छा आचरण ही तो तुझे मोक्ष दिलाएगा…
सुन लो सभी आज कहती है प्रज्ञा !
यह संसार है यहाँ
जाने कब कौन आया है,
जाने कब कौन जाएगा !!
ये कैसे-कैसे ख्वाब आते हैं…!!!
November 19, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
रात को ये कैसे-कैसे
ख्वाब आते हैं !
तेरे खयाल
मेरी रूह को छू जाते हैं
बिस्तर ये जाने क्यूँ
काटने को दौड़ता है !
तेरी यादों से मेरा तन-मन पिघलता है
जागती हूँ रातभर और दिल मचलता है
लोग मुझे आजकल पागल बुलाते हैं
रात को ये कैसे-कैसे ख्वाब आते हैं !
“रात-दिन रतजगे किये हैं हमने इश्क में”
November 19, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
रात-दिन रतजगे
किये हैं हमने इश्क में
हम तो अपने यार की
धूनी रमते हैं इश्क में….
लौटकर वो आएगा
ये सोंचकर अभी खड़े
जहाँ वो छोंड़कर गया
वहाँ रुके हैं इश्क में….
कभी गिरे तो कभी संभल गये
आईं कितनी भी रुकावटें
मगर नहीं रुके हैं इश्क में….
हीर हो या रांझा हो
मीरा हो या राधा हो
ना जाने कितने मजनू
मर मिटे हैं इश्क में…
अच्छा लगता है….
November 18, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
गलतफहमियों में जीना
अच्छा लगता है…..
मुझको तेरा हर एक बहाना
अच्छा लगता है…..
कभी तू रोये कभी
तेरी बातें मुझे रुलायें
मुझको तेरा इठलाना
अच्छा लगता है…..
कभी नजर उठाकर
तू बोले मुझसे तौबा !
मुझको तेरा नजर झुकाना
अच्छा लगता है…..
लड़ती है तू पर
प्यार भी मुझको करती है
मुझको देखकर तेरा छुप जाना
अच्छा लगता है…..
आप तो रूठ गये…
November 18, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
जरा-सा मजाक हमने
क्या कर दिया
आप तो रूठ गये..
जरा-सी तवज्जो
हमने क्या दी
आप तो रूठ गये..
कितना हुनर बख्शा है आपको
ऊपर वाले ने
हमने शरारत जो की
आप तो रूठ गये..
और है ही कौन मेरा..??
November 18, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
तुम अपने हो तभी
शिकायत कर देती हूँ
जो मन में आता है कह देती हूँ
तुम्हें हरगिज बुरा लगता है
यह भी जानती हूँ पर
तुम्हें अपना मानती हूँ
तभी सब कुछ कह देती हूँ
और है ही कौन मेरा ?
जो मुझे सुने, समझे !
मैं तो तुम्हीं को अपनी दुनियां मानती हूँ..
ओ सजीली रंगीली निशा !
November 18, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
तुम कितनी भोली हो बाला
तेरा कितना रूप निराला
मीठी-मीठी बातों से
तुम मुझको रोज रिझाती हो
सुबह होते ही तुम जाने कहाँ
गुम हो जाती हो !
सांझ होते ही मैं
तुम्हारी प्रतीक्षा करने लगता हूँ
क्योंकि तुम अपने साथ
यादों का सैलाब ले आती हो
ओ सजीली, रंगीली निशा !
तुम मुझको बहुत ही भाती हो…
**बैंगनी चूड़ियां**
November 18, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
बैंगनी चूड़ियां
**************
तुमने पहली मुलाकात में
जो भेंट की थी बैंगनी चूड़ियां
उनकी खनक आज भी
कानों में गूंजती है
जब टूटा था हमारा
प्यार भरा रिश्ता
एक गलतफहमी से
तो चूंड़ियों का टूटा हुआ टुकड़ा
उठाकर मैं बहुत रोई थी
वो बैंगनी चूड़ियां मेरे हाथों की
शोभा बढ़ाती थीं
जब खनकती थीं तो
तेरी याद दिलाती थी
आज कितने अर्से के बाद
वो बैंगनी चूड़ियां मैंने अपनी
कलाई पर सजाई हैं
उनकी खनक से आज मेरी आँख भर आई है..
“आधुनिक परिवेश और नारी”
November 18, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
आधुनिक नारी ने
तोड़ दी हैं गुमनामी की जंजीरें
बढ़ाई है अपनी ताकत
अपनी मेहनत से पाया है
बुलंदियों का आसमां
कभी खैरात में नहीं मांगी
उसने खुशियां
नारी ने तो हमेशा से त्याग, तपस्या
और बलिदान करके
कमाया अपने हिस्से का हक
आधुनिक नारी आज हर क्षेत्र में
बढ़ा रही है अपना कदम और
लहरा रही है जीत का परचम
उसकी पहल से आज
बदली हैं फिजायें
हवा ने अपना रुख मोड़ा है
आधुनिक परिवेश के साथ ही
नारी ने धूल खाते रिवाजों को तोड़ा है..
“तिरस्कृत महिला”
November 18, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
तिरस्कृत महिला
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तिरस्कार मनुष्य को
जीवित ही मार देता है
ये वह जहर है जो
धीरे- धीरे असर करता है
शेक्सपियर भी कह गये हैं मित्रों !
“बदला लेने और प्रेम करने में नारी
पुरुष से ज्यादा निर्दयी है”
इसीलिए तो जब
एक महिला तिरस्कृत होती है
तो वह जहरीले नाग से भी
खूंखार होती है
ना देखती है वह फिर रिश्तों का मोह
घायल नारी, द्रौपदी सम होती है
सीता हो या द्रौपदी
इतिहास गवाह है
जब-जब पुरुष ने नारी का तिरस्कार किया है
उसका अस्तित्व मिटा है
तो सम्मान दो और
सम्मानित होने का गौरव पाओ
नारी को तुच्छ नहीं
अपने जीवन का भाग बनाओ…
रातें गुजार देता हूँ…
November 18, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
कल रात चाँद ने कहा मुझसे
कुछ तो परेशानी है तुम्हें
जो रोज़ चले जाते हो तुम
समुंदर किनारे…
जब रात को सब सो जाते हैं चादर तान के
तो तुम मुझे देखते रहते हो !
सुबह होती है तो फिर काम पर चले जाते हो
आखिर तुम कब सोते हो ?
मैं बोला नींद तो आती नहीं
जब से वो आई जिंदगी में
किसी तरह काट लेता हूँ जिंदगी
तेरे जैसा ही है मेरा दिलबर
इसीलिए तुझे देखकर
रातें गुजार देता हूँ अपनी…
“तुम्हारी मौजूदगी और मेरी तड़प”
November 17, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
तुम्हारी मौजूदगी और मेरी तड़प
थक गई हूँ अब मैं
एक जगह रुककर,
तुम जब आते हो
दिल का दर्द क्यों बढ़ जाता है?
रूबरू होने का कहाँ
हमको वक्त मिल पाता है
आते हो जब तुम
धड़कन हमारी
वक्त से भी तेज भागती है और
साँसें थम-सी जाती हैं
बजने लगती है
दिल में गिटार और
होंठों पर बजने लगती है सरगम
जब जाते हो दूर तो
चैन साथ ले जाते हो
मेरे पास अपना दिल छोंड़ जाते हो
लौटकर कब आओगे
यह पूंछ नहीं पाती हूँ
पास आती हूँ जब तेरे
तो कुछ दूर रूक जाती हूँ…
घास पर बैठकर स्वर्ग पाते थे….
November 17, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
हम समझते थे
इस चमन को अपना सदा
और करते थे प्रीत
इसकी धूल से
गुजारते थे शाम
इसकी गोद में
घास पर बैठकर स्वर्ग पाते थे
मगर हम परदेशी हैं
यह चमन अपना नहीं
हम यहाँ मेहमान थे
ये जहान अपना नहीं
यह जताकर आपने
कर दिया हमको पराया
हम रहे जिस चमन में
उसने नहीं अपना बनाया
जा रहे हम छोंड़कर
यह जहान और यह चमन
जायेगे जहाँ हम
बनायेंगे नया आशियां….
आखिर क्या समझूं ???
November 17, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
तुम्हारी बेरुखी को
प्यार समझूं या खता समझूं
तू ही बता ना
आखिर क्या समझूं ?
सामने आकर भी मुह फेर लेते हो
बेबसी समझूं या बेवफाई समझूं
तू ही बता ना
आखिर क्या समझूं ?
रुला देते हो तुम मुझे बार-बार
किस्मत समझूं या पनौती समझूं
तू ही बता ना
आखिर क्या समझूं ?
अन्तर्मुखी हूँ मैं..!!
November 17, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
बन पाता है जो मुझसे
उतना योगदान मैं देती हूँ
जितनी मेरी क्षमता है
उतनी ही सेवा करती हूँ|
थक जाती हूँ जब मैं ज्यादा
बिस्तर पर पड़ जाती हूँ
फिर तो अपने आप भी मैं
कहाँ अपनी सेवा कर पाती हूँ|
दूसरों को हँसना सिखलाती
खुद चोरी-चोरी आँसू बहाती
तन्हा ही खुश रहती हूँ मैं
भीड़ में साँस कहाँ ले पाती हूँ |
हाँ, सब कहते हैं यही मुझसे
अन्तर्मुखी है तू प्रज्ञा !
बहिर्मुखी व्यक्तित्व के जैसे
प्रपंच कहाँ कर पाती हूँ |
**खाने को कुछ निवाले दे दो**
November 17, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
द्वार पर खड़ी हूँ
भीख दे दो
सीख नहीं कुछ अन्न-जल दे दो
तेरे बाल- बच्चे सलामत रहें,
घर-द्वार फूले-फले,
बड़ी भूंख लगी है
कुछ खाने को दे दो
सीख नहीं कुछ अन्न-जल दे दो…
कई दरवाजे होकर आई हूँ
तेरे द्वार पर कुछ आस लेकर आई हूँ
ताजा ना हो तो बासी ही दे दो
ओ बेटी ! तुझे अच्छा घर-बार मिलेगा
खाने को कुछ निवाले दे दो
यह सुनकर मैं निकली
उस बूढ़ी दादी को देखकर
मेरी आत्मा पिघली
एक नहीं चार ले लो,
बासी नहीं ताजा ले लो
ओ दादी! जरा पहले हाथ धो लो
फिर पेट भर कर जितना मन हो खा लो….
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“सत्य घटना पर आधारित एवं मन में उपजे भाव”
आप भी किसी जरूरतमंद की सहायता कीजिये…
*करके देखिये अच्छा लगता है*
गुलाबी सर्दियां
November 17, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
गुलाबी सर्द रातों में
तुम्हारी याद आती है
तैरते हैं जब सितारे
आसमान की गोद में,
बिछा लेता है चाँद
जब हिमालय पे बिस्तर
और बरस पड़ती हैं
ओस की बूंदें,
तो मन मचलकर करता है तुम्हें याद
हवा में बहता हुआ संदेश
जब तुम्हारे पास पहुंचता है
तो तुम उनींदी आँखों से
वो संदेश पढ़ते हो पर
कोई जवाब नहीं देते!
तो यही गुलाबी सर्दियां
काटने को दौड़ती हैं और
मुझे विरहाग्नि में जलाकर मार देती हैं…
जिन्दगी की शाम
November 16, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
हर सुबह होती है
मुस्कुराते हुए
रात होते-होते
आँख भर आती है
जिन्दगी की उलझनों में
उलझती हूँ ऐसे कि
जिन्दगी की शाम हो जाती है
बेबसी, आँसू, रुसवाई के सिवा
कुछ नहीं है मेरे पास
हँसने की कीमत भी
अदा करनी पड़ती है
रूठकर लिखा होगा शायद
उसने मुकद्दर
तभी तो जीतकर भी
हर बाजी पलट जाती है
याद आती है वो बचपन की आजादी
अब तो खुली फिजाओं में भी
सांस रुक जाती है…
भाई दूज स्पेशल – “जिंदगी से रोज़ हार जाती हूँ मैं”
November 16, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
भाई दूज स्पेशल:-💟💟
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जब मैं छोटी थी
तो तू ही था
जो उंगली पकड़ता था मेरी
गिरती थी तो
तू संभाल लेता था
हाँ, आज थोड़ी लम्बाई बढ़ गई है
पर बुद्धी आज भी
बच्चों जैसी है
और भाई मैं चाहें जितनी
बड़ी हो जाऊं
तुझसे तो उतनी ही छोटी रहूंगी
जब मैं गलती करूं तो
डाट लेना पर नाराज मत होना
भाई तुझे छोंड़कर कहीं
नहीं जाऊंगी
मेरी शादी कभी मत करना
मैं तेरे साथ ही रहूंगी
तू बड़ा है पर फिर भी
रोज लड़ूगी
एक तू ही तो है जिससे लड़कर
जीत जाती हूँ मैं
बाकी तो जिंदगी से रोज ही
लड़कर हार जाती हूँ मैं…
ओ भाई मेरे !
November 16, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
भाई दूज का दिन है
बहनों प्यार लुटाओ
प्यारे-प्यारे भाई को
अपने हाथों से मिष्ठान खिलाओ…
भाई-बहन के प्रेम का
परिचय देता है यह त्योहार
भाई से जो कुछ मांगे बहन
तो भाई जाये सबकुछ हार….
बहन खिलाती भुरकी-चूरा
और खिलाए मिठाई
भाई मन ही मन यह सोंचे
आज जेब पर बन आई….
देकर भाई प्यार का तोहफा
प्यार जताये अपना
बहन कहे ओ भाई! मेरे
सदा साथ ही रहना…
जिंदगी बेवक्त मशरूफ रहती है
November 16, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
आजकल फुर्सत
नहीं होती है
जिंदगी बेवक्त मशरूफ रहती है…
त्योहार का मौसम है
मगर जाने क्यूं !
होंठों पर खामोशी पसरी रहती है…..
है चारों ओर रिश्तों का
ताना-बाना
पर दिल में मायूसी
फैली रहती है….
रात होती है जब
तो चाँद गगन में आता है
सबकी छतों पर रजत
पिघली रहती है…
घर के बाहर मौत खड़ी…!!
November 15, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
बचकर चलो रे राही!
घर के बाहर मौत खड़ी
संभल चलाओ गाड़ी
घर के बाहर मौत खड़ी….
हेलमेट लगाकर
बाहर निकलो
सीटबेल्ट भी बांध के निकलो
चौपहिया या हो दो पहिया
आँखें चौकन्नी करके निकलो
जरा भी सावधानी हटी तो
समझो साहब! दुर्घटना आन पड़ी
घर के बाहर मौत खड़ी…
मास्क लगाओ भाई अब तो
ट्रैफिक नियम बताओ सबको
पालन करो और करवाओ
वरना दुर्घटना आन पड़ी
घर के बाहर मौत खड़ी….