by Pragya

मानवता को बचाओ..

October 9, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

जरा कम ही शोर मचाया करो
क्योंकि मैंने अक्सर शोर मचाने वालों को
भीड़ का हिस्सा बनते देखा है
जिनका स्वयं का कोई
अस्तित्व नहीं होता है
सिर्फ दूसरों का अनुसरण करते हैं
खुद की होती नहीं कोई पहचान
दूसरों की परछाई बनते हैं
है तेज तुममें तो शोर मत मचाओ
जाओ घर से बाहर
मरती मानवता को बचाओ
जाकर देखो जरा
दुनियाँ की परेशानियों को
अपनी परेशानी छोटी नजर आएगी
जब लगेगी भूँख तो सूखी रोटी भी
स्वादिष्ट बन जाएगी
जैसा बनाकर देती हूँ
चुपचाप खा लो वरना
जाओ किसी हलवाई से ब्याह रचा लो…..

by Pragya

रिश्ते

October 8, 2020 in शेर-ओ-शायरी

रिश्ता होने से रिश्ते नहीं बना करते
निभाने से बनते हैं
जो रिश्ते बनते हैं दिमाग से
वह केवल बाजार तक चलते हैं
जो निभाए जाते हैं दिल से
वो आखरी सांस तक चलते हैं

by Pragya

चाय-पानी !!

October 8, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

ना जाने कितनी परीक्षाओं से
गुजरना पडे़गा
आखिर और कितना
पिसना पडे़गा
नसीहत सब देते हैं पढ़ने की
अब नौकरी के लिए क्या
किताबें घोलकर पीना पडे़गा
अरमां हैं आसमान छूने के
पर हकीकत की जमीन पर
ही रहना पडे़गा
युवावस्था में क्या यूं ही
आत्मनिर्भर का पाठ पढ़ना पडे़गा
अगर पता होता कि
ऐसा कुशासन आएगा
युवा बैठकर यूँ ही गाल बजाएगा
जीवन भर पकौडे़
तलने पडे़ंगे
फसेगीं भर्तियां कोर्ट में
धरना देने पर पड़ेेगे कोड़े
ना पढ़ाई में पैसा बहाते
ना किताबों में आँखें गडा़ते
ना व्यर्थ करते अपनी जवानी
ढाबा खोलकर सबको कराते
चाय-पानी !!

by Pragya

वो एक कप कॉफी***

October 8, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

वो एक कप कॉफी का वादा
तुम्हें याद होगा
रोज़ मिला करते थे तुम मुझसे
उसी वादे की खातिर
कहना चाहते थे मगर
कह नहीं पाते थे
कि चलोगी मेरी बाइक
की बैक सीट पर बैठकर
एक कप कॉफी पीने ?
जो वादा किया था
तुमने एक रोज़
पर कहने वाली एक बात भी
ना कहते थे तुम और
ना जाने कितनी बातें कर जाते थे
वो एक कप कॉफी तुम्हारे साथ
पीने को बेताब मैं भी थी
पर तुम कभी कह ही नहीं पाए और
वो एक कप कॉफी का वादा
अधूरा रह गया !!
वो एक कप कॉफी अगर हम साथ पीते तो…

by Pragya

“वो जवानी के दिन”*****

October 8, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°
मेरे आने पर दिल में
गिटार बजा करती थी
चलती थी सड़कों पर
तो कतार लगती थी
अपने भी दिन हुआ करते थे साहब!
जब मैं जवान हुआ करती थी…

अब इन बूढी़ झुर्रियों ने
कान्ति खत्म कर दी
जो दीवाने थे उनकी
दीवानगी खत्म कर दी…

पर हुआ करते थे हमारे
वो जवानी के दिन
हँसने, खेलने, इतराने के दिन
आँखों में काजल लगाकर
मैं चला करती थी
वैलेंटाइन को
गुलाबों की झड़ी लगा करती थी….

कुछ सामने से देते थे लव लेटर
कुछ सहेलियों के हाथों
भिजवाया करते थे
उन आशिकों में मरती थी
मैं भी किसी पर जब
तुम्हारे बाबू जी बुलट पर
आया करते थे…

क्या बताएं तुम्हें टिंकू !
कभी हम भी जवान हुआ करते थे !!
हमारी मोहब्बत के किस्से
तमाम हुआ करते थे…..

by Pragya

“उम्र और जिंदगी”

October 7, 2020 in शेर-ओ-शायरी

उम्र और जिंदगी में फर्क:-
——————————
उम्र वो है दोस्तों जो बीते अपनों के बिना,
*******************************
जिंदगी वो है जो अपनों के साये में गुजरती है|

by Pragya

हम मुस्कुरा के चल दिए…

October 7, 2020 in शेर-ओ-शायरी

उन्हें हमारी मौजूदगी से
परहेज होने लगा
हमें यह जैसे ही समझ आया
हम मुस्कुरा के चल दिए….

by Pragya

कैसे हमदर्द हो…!

October 7, 2020 in शेर-ओ-शायरी

जाहिर ना होने देंगे हम अपने दर्द को,
तुम समझ ना सको तो कैसे हमदर्द हो !

by Pragya

मेरा आईना…!!

October 7, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

मैंने गुस्से से उसे देखा
उसने भी गुस्से से देखा
मैंने आँखें दिखाईं
वो भी आँखें दिखाने लगा
मैं तंग आकर हँसने लगी
तो वह भी खिलखिला उठा
मैं मुस्कुराई वह मुस्कुराया
मैं इतरायी वह शर्माया
मैं रो पड़ी जब कभी
वह भी फूट-फूटकर रोया
मेरी तरह वह भी
जाने कितनी रातें जगा
ना सोया
मेरे जीवन वो अभिन्न हिस्सा है
सब झूठे हैं एक वह ही
सच्चा है
मेरे सजने पर सबसे पहले
वही मुझे देखता है
मेरी सभी कमियों को
बिना हिचक बता देता है
मेरा दोस्त है मेरे जीवन का
हिस्सा है…
मेरा आईना…. !!

by Pragya

मुसीबत आई

October 7, 2020 in शेर-ओ-शायरी

जब मुसीबत आई तो मैंने ये नहीं सोंचा
कि ‘अब कौन काम आएगा’
बल्कि यह सोंचा कि देखती हूँ
अब कौन साथ छोंड़ जाएगा..

by Pragya

पुराने दिन फिर लौट आए

October 7, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

वो जब आया घर तो बिल्कुल
खामोश था
कुछ नहीं बोल रहा था
कोई आवाज नहीं
मैंने पैकिंग खोली
सेल डाले, चैनल सेट किया
आवाज बढ़ाई
रेडियो चलने लगा और
पहली बात जो सुनाई दी…
**************
“ये आकाशवाणी का लखनऊ केंद्र है
अब आप प्रादेशिक समाचार सुनेंगे”
लगा जैसे जीवन में
बहार आ गई
पुराने दिन फिर लौट आए…..

by Pragya

जानती हँ

October 7, 2020 in शेर-ओ-शायरी

मैं लड़ना जानती हूँ
मगर चुप रहती हूँ !
**************
क्योंकि अगर मैं जीत गई
तो जानती हूँ
सब कुछ हार जाऊंगी

by Pragya

चंद्रशेखर

October 7, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

भीम पार्टी आई देखो
भीम पार्टी आई
दलित को गोद में लेकर
खुद को नेता समझे भाई
वह कहती है
ब्राह्मण, ठाकुर और तलवार
इनको मारो जूते चार
और सभी प्यारे बंधु
दलित पर हो रहा है अत्याचार
यह कैसी सोंच है भाई ?
और कहाँ कि है नैतिकता
भारत लड़ लेता है
बाहरी दुश्मनों से पर
आस्तीन के सांपों के
आगे ना टिकता
गंदी राजनीति करके
चंद्रशेखर क्यों फूट डालते हो
हम हिन्दू भाईयों में
पहले से ही है संग्राम छिड़ा
पाकिस्तानियों और चीनियों में
एक कानून देश में लागू है
लोकतंत्र का देश है
सब रहते हैं स्वतंत्र यहाँ
यह हमारा प्यारा देश है…

by Pragya

जर्जर हैं दीवारें

October 6, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

हास्य कविता
——————–
गारंटी है जरा भी हँसी नहीं आयेगी !
******************
जर्जर हैं दीवारें इसकी
मत तुम जोर लगाओ
रहना है तो रहो नहीं तो
तुम यहाँ से जाओ
दूसरे भी हैं लगे लाइन में
मेरा दिल तो हाउसफुल है
जो देखे कहे यही
ये लड़की तो ब्यूटीफुल है
मैं उनमें से नहीं कि तेरे
बहाऊं आँसू
तेरी माँ को देख सामने
बोलूं पांय लागूं सासू
मैं हूँ आज की नारी
जीवन व्यस्त बड़ा मेरा है
मेरे आगे-पीछे तो
लड़कों का डेरा है
स्वीटहार्ट हूँ किसी मैं तो
किसी की जानेमन हूँ
सारी लड़कियां मांगे पानी
मैं ही नंबर वन हूँ..

by Pragya

मेरा प्यारा टिंकू

October 6, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

मेरा कानपुर वाला दोस्त
आज बहुत याद आ रहा है
एक अर्से के बाद
दिल में उसका खयाल
आ रहा है
हनी सिंह के गाने
मेेरे कहने पर गुनगुनाता था
नाराज होती थी जो तो
प्यार से मनाता था
कभी उदास होती थी गर
तो चुटकुले सुनाकर
खुद ही हँसता जाता था
करता था प्यार मुझसे
पर छुपाता था
मेरे उनका फोन आने पर
जल-भुन जाता था
रोता था मेरे लिए पर
सामने हँसता था
मुझसे मिलने सीतापुर भी
आ जाता था
गली में खड़ा होकर देखता था मुझे
मुहल्ले वालों के निकलने पर
भाग जाता था
पता नहीं कहाँ है अब वो
सुना है इन्जीनियर बन गया है वो
मेरा प्यारा टिंकू
बहुत बड़ा हो गया है….

by Pragya

हाथरस की बेटी

October 6, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

कैसी है ये दरिन्दगी?
हाथरस की बेटी संग जो
होता है कुकर्म उसे
जनता से छुपाया जाता है..
मीडिया की आवाज को
आखिर क्यों दबाया जाता है…
पहुँचते हैं कुछ राजनीतिक दल
राजनीतिक रोटियाँ सेंकने
आखिर गैंग रेप को क्यों
मुद्दा बनाया जाता है..
कानून के रखवाले ही करते है
कानून का भक्षण
पीड़िता के शव को क्यों आखिर
आधी रात जलाया जाता है..
यह कहाँ का न्याय है
आखिर क्या घोटाला है ?
इतनी पुलिस थी क्यों तैनात वहाँ
दाल में लगता कुछ काला है..
यदि इतनी ही पुलिस सतर्क
होती तो क्यों हाथरस की
बेटी मरती
आखिर किन सबूतों को
चुपके-चुपके मिटाया जाता है…

by Pragya

यह दिशा नहीं राजनीति की

October 6, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

यह दिशा नहीं राजनीति की
पीड़ित परिवार के घर जाओ
यह दिशा नहीं राजनीति की
रेप जैसी घटना पर राजनीतिक
रोटियां सेकों
यह दिशा नहीं राजनीति की
घर में ही नजरबंद करो
यह दिशा नहीं राजनीति की
मीडिया को ना मिलने दो
यह दिशा नहीं राजनीति की
क्या छुपाना था जो रात को ही
जला दिया उस लड़की को
पर्दा डालने के लिए चंद
पुलिसवालों सस्पेंड किया
यह दिशा नहीं राजनीति की…

by Pragya

हम उस देश के वासी हैं

October 6, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

हम उस देश के वासी हैं जहाँ तिरंगा
लहराया जाता है
भारत माता की जय हो’
यह नारा खूब लगाया जाता है
पर अफसोस है इस बात का हमको
यह कैसी है राजनीति!
जब लुटे किसी की इज्जत तो
उसे राजनीति का मुद्दा बनाया जाता है
गलत हुआ उस लड़की संग
प्रज्ञा यह दिल से कहती है
पर दलित बोलकर उसे
क्यों जातिगत मुद्दा बनाया जाता है
क्या इज्जत लूटने से पहले
कोई पूंछता है तुम किस जाति की हो
पंडित हो तो छोंड़ दिया जाएगा
दलित को ही लूटा जाता है…

by Pragya

दीवानगी का आलम

October 6, 2020 in शेर-ओ-शायरी

दीवानगी का आलम कुछ यूं है
जिधर भी देखती हूँ मैं
लगता है बस तू है
कितनी भी कोशिश कर लूं
मैं तुझे भूल जाने की
पर मेरी तो हर साँस में
मौजूद तू है…

by Pragya

कॉलेज के दिन…!!

October 6, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

तुम्हे याद हैं वो लम्हे
जब हम साथ पढ़ा करते थे
तुम्हारी कॉपी से देखकर
परीक्षा में लिखा करते थे
तुम मुझे कॉफी के लिए
रोज़ पूंछते थे और हम
मना कर दिया करते थे
आते थे कभी सज-धज कर
तुम हमारे सामने तो हम
तुम्हारा मजाक
उड़ा दिया करते थे
कभी लड़ते थे तुमसे
आँखें दिखाकर
तो कभी
परदे के पीछे छुप जाया करते थे
अब कहाँ रहे
वो कॉलेज के दिन
जब हम मुस्कुराया करते थे !!

by Pragya

दरख्तों से गिरते पत्ते

October 6, 2020 in शेर-ओ-शायरी

दरख्तों से गिरते पत्ते
उठा करके रोये
जब भी खुल गई आँखें
फिर हम ना सोये
जब भी आई मेरे सामने
तुम्हारी सहेली
लिपट करके उससे तेरी
यादों में रोये…

by Pragya

जनाजा़

October 6, 2020 in शेर-ओ-शायरी

शिद्दत से उठाओ तुम मेरा जनाजा

हम ना कहेंगे किसी से कि जिन्दा
अभी हैं हम…

by Pragya

आज भी जिन्दा हैं बापू जी

October 6, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

दुबले-पतले बापू जी
ऐनक पहने बापू जी
राष्ट्रपिता कहलाते सबकी
नोट पे रहते बापू जी
नमक आन्दोलन हो या फिर
असहयोग आन्दोलन हो
सबका नेतृत्व आगे बढ़कर
करते बापू जी
देश को किया आजाद और
लहराया जीत का परचम
हो कितनी भी कठिनाई पर
हर दम मुसकाते बापू जी
नहीं रहे इस दुनिया में
हम सबको छोड़ के चले गये
पर अपने कर्मों से देखो
हर भारतवासी के दिल में
आज भी जिन्दा हैं बापू जी….

by Pragya

तुम्हारा खत

October 6, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

बार-बार वही खत खोलकर
पढ़ती हूँ मैं
कि आखिर क्या लिखा
करते थे तुम हमारे लिये
उठाकर तुम्हारा खत
सीने से लगा लेती हूँ
जब भी कभी तुम्हारी याद आती है
यूँ महसूस कर लेती हूँ
जैसे तुम ही आ गये हो
बाँहों में….

by Pragya

तेरा गुरूर

October 6, 2020 in शेर-ओ-शायरी

इरादे हम जो कर लें गर
फलक से तोड़ लें
तारे!
तो तेरा गुरूर फिर बोल
कब तलक यूं
ठहरेगा…

by Pragya

बेआबरू हो बैठे हैं

October 6, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

देख प्रज्ञा!
तेरी मोहब्बत में
दीवाने हो बैठे हैं
वो हँस रहे हैं मुझ पर
जो लोग सामने बैठे हैं
तुमने जो शर्माकर फेर दीं
निगाहें मुझ पर
आबरू की आरजू में
बेआबरू हो बैठे हैं…

by Pragya

आरजू

October 5, 2020 in शेर-ओ-शायरी

आरजू बस तुम्हारी की मगर
अफसोस इतना है
सब कुछ हुआ हासिल
एक तुझे छोंड़कर..

by Pragya

सारा आलम भीगा-भीगा है

October 5, 2020 in शेर-ओ-शायरी

सारा आलम भीगा-भीगा है
तेरा आंचल क्यों फीका-फीका है
लगा ले मेरे प्यार का काजल
जो तेरी नजरों से भी तीखा-तीखा है…

by Pragya

रंगीन है तिरंगा

October 5, 2020 in शेर-ओ-शायरी

रंगीन है तिरंगा मेरे महबूब की तरह
बेरंग है ये दुनिया मेरे रकीब की तरह..

by Pragya

जख्म बाबस्ता है

October 5, 2020 in शेर-ओ-शायरी

जख्म बाबस्ता है तुम्ही से
और तू ही है इस दिल का मरहम
बस तुझे ही मागे ये दिल
तू ही है बस मेरा हमदम

by Pragya

हमदर्द बनाया हमने..

October 5, 2020 in शेर-ओ-शायरी

तुमको हमदर्द बनाया हमने
कुछ इस तरह दिल को दर्द बनाया हमने
सालों रहे तेरी मोहब्बत में बिगड़े
संभल गये जब धोखा खाया हमने…

by Pragya

राष्ट्रपिता:-महात्मा गाँधी

October 5, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

दुबली-पतली कद काठी थी
धोती पहनकर चलते थे
आँखों में थे अनमोल सपने
ऐनक लगाकर चलते थे
राष्ट्रपिता थे प्यारे बापू
सबकी आँख के तारे थे
अंग्रेजों के छक्के छूटे
जब वह सत्याग्रह पर
जाते थे
पूरा देश था डटा हुआ
गाँधी जी के साथ खड़ा
हल्की-सी मुस्कान से वह
दुश्मन को मार गिराते थे
ना हथियार उठाते थे
अहिंसा के पुजारी थे
जब चलते थे वह
तन कर तो
दिल दुश्मन के हिल जाते थे..

by Pragya

लैला-मजनू

October 5, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

लैला मजनू ने सिखाया
मोहब्बत में फना होना
वरना हम तो तेरे साथ
जीने के ख्वाब देख रहे थे
जो ख्वाब कभी पूरे हो
नहीं सकते थे
हम तुझसे जुदा रह नहीं
सकते थे
मरने की फिजूल बातों
पर ना गौर कभी किया था
तेरे साथ ही रहने को
उतावले रहते थे
पर याद आई मुझको
मजनू-लैला की जिन्दगानी
जो जी रहे थे संग में
मरने की उन्होंने ठानी
एक-दूजे के लिए ही
जी रहे थे दोनों
जिस्म तो दो थे पर
जान एक ही थी
एक की थमी साँसे तो
दूजे की धड़कन
ऐसी मिसाल से थर्राया सारा
आलम !
अब हम भी ना जियेंगे जो तुम
ना रहोगे
सारे दुःख हम सहेगे
आँसू तुम पियोगे
ना हम ही रहेंगे ना तुम ही
रहोगे
दूरियां ना सहेंगे
जन्नत में पास तुम रहोगे…

by Pragya

हीर-रांझा

October 5, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

बंदिशें कितनी लगाई गईं
पहरे कितने दिये गए
फिर भी ना मिट सकी मोहब्बत
हीर-रांझा कितने ही चल बसे
प्रगाढ़ होती गई मोहब्बत
हद से बढ़ता गया जुनून
जितनी तकलीफें मिली
मजनुओं को सब सहते
चले गये
रात-दिन की यही हालत है
जो भी प्यार के पंछी हैं
जीते रहे मोहब्बत में
और मोहब्बत में ही मर गये…

by Pragya

खुले आसमान तले

October 5, 2020 in शेर-ओ-शायरी

खुले आसमान तले सुकून मिलता है
बंद कमरे में घुटन होती है
जब नींद के आगोश में
होता है जहान
प्रज्ञा किसी की यादों में
बहुत रोती है…

by Pragya

रातें सजाकर देख लो

October 5, 2020 in शेर-ओ-शायरी

हँसते-हँसते चले जाएगे
जहान से हम
बस एक बार तुम मुस्कुरा
के मुझे देख लो
आ ही जाओगे मेरी बातों में
अपनी रातें सजाकर देख लो….

by Pragya

रातें सजाकर देख लो

October 5, 2020 in शेर-ओ-शायरी

हँसते-हँसते चले जाएगे
जहान से हम
बस एक बार तुम मुस्कुरा
के मुझे देख लो
आ ही जाओगे मेरी बातों में
अपनी रातें सजाकर देख लो….

by Pragya

गुरू

October 5, 2020 in मुक्तक

सबसे खूबसूरत तोहफा है गुरू
रब से भी पाक होता है गुरू
ढूंढ लो चाहे सारी दुनिया में
ना है जहान में कोई तुम-सा गुरू

by Pragya

इबादत

October 5, 2020 in शेर-ओ-शायरी

मिन्नतें खूब कर लेंगे
इबादत खूब कर लेंगे
तू एक बार तो सही
तुझे बाँहों में भर लेंगे…

by Pragya

निर्भया कितनी दफा रोई…

October 5, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

निर्भया कितनी दफा रोई
दरिंदों की पनाहों में
सिसकता ही रहा यौवन
वासना की बाँहों में
तब तलक रूठेगा बचपन
पूँछती है यही नारी
मरेगी कब तलक बेटी
बचेगा कब तलक अत्याचारी
पुरुष की बन के कठपुतली
नाचती क्यों है हर औरत
उसी के आँचल में है जन्नत
और कदमों तले शोहरत
उसके आगे तो ईश्वर भी
सिर झुकाता है
नारी ही जने पुरुष को
वह ये क्यों भूल जाता है
तो आखिर क्यों उसी कोख को
कलंकित करता है कोई
यही सोंचकर प्रज्ञा’ हाय !
कितनी दफा रोई..

by Pragya

आसमान अधूरा है

October 5, 2020 in शेर-ओ-शायरी

आसमान अधूरा है सितारों के बिना
ये दिल अधूरा है तेरी दोस्ती के बिना

by Pragya

नारी हूँ मैं…!!

October 4, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

पापा की प्यारी हूँ मैं
फूलों की क्यारी हूँ मैं
पर सबसे पहले नारी हूँ मैं…

अहिल्या हूँ मैं सीता हूँ मैं
पवित्र पावन गीता हूँ मैं
कभी शेरनी तो कभी चीता हूँ मैं
पर सबसे पहले नारी हूँ मैं…

उम्मीदों का सावन हूँ मैं
नव सुतों का जीवन हूँ मैं
मनमोहिनी और मनभावन हूँ मैं
पर सबसे पहले नारी हूँ मैं…

सृष्टि की वाहक हूँ मैं
कुटुंब की संचालक हूँ मैं
दैवीय आहट हूँ मैं
पर सबसे पहले नारी हूँ मैं…

भावों की अनुपम माला हूँ मैं
कभी चंडी हूँ कभी ज्वाला हूँ मैं
प्रकृति की सुकोमल बाला हूँ मैं
पर सबसे पहले नारी हूँ मैं…

by Pragya

रात-दिन

October 4, 2020 in शेर-ओ-शायरी

उसे रूठने में एक पल भी नहीं लगा
मनाने में उसे कुर्बान
रात-दिन कर दिये हमने..

by Pragya

वो मोती

October 4, 2020 in शेर-ओ-शायरी

छलक कर आँख से आँसू
पन्नों पर बिखर गया
हर तरफ ढूंढता है दिल
वो मोती किधर गया….

by Pragya

वो मोती

October 4, 2020 in शेर-ओ-शायरी

अचरज भरा आकाश है
कहीं धूप है कहीं छांव है
आसमान की चादर में
सितारों के बूटे हैं
बादलों के घोड़े हैं
जो दौड़ते हैं इधर-उधर
जुगनू भी अपनी प्रेयसी को
ढूंढते हैं रात भर
चाँदनी है छितरी हुई
सबकी छतों पर इस तरह
रजत पिघलाकर किसी ने
फैला दिया हो जैसे हर जगह…

by Pragya

अचरज भरा आकाश

October 4, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

अचरज भरा आकाश है
कहीं धूप है कहीं छांव है
आसमान की चादर में
सितारों के बूटे हैं
बादलों के घोड़े हैं
जो दौड़ते हैं इधर-उधर
जुगनू भी अपनी प्रेयसी को
ढूंढते हैं रात भर
चाँदनी है छितरी हुई
सबकी छतों पर इस तरह
रजत पिघलाकर किसी ने
फैला दिया हो जैसे हर जगह…

by Pragya

‘मधुमास का आगमन’

October 4, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

नीले आसमान पर
सूरज की उपस्थिति
सौंदर्य की पराकाष्ठा
किरणों की लालिमा से
चमक रहा है पृथ्वी का
हर कण हर क्षण….

पत्तियों की सरसराहट से
मधुमास का सुंदर आगमन
चमन की सुगंध से
महक रहा है सारा मन-गगन…

स्थिति हृदय की आज है
मनचली तितलियों की तरह
उड़ रहें हैं पक्षी गगन में
मेरे अरमानों की तरह…!!

by Pragya

कदम

October 3, 2020 in शेर-ओ-शायरी

डगमगा जाते हैं कदम आजकल
एक जरा से झोंके से मगर,
एक वक्त था जब हमारे इरादे
बुलंद हुआ करते थे..

by Pragya

पारखी नजर

October 3, 2020 in शेर-ओ-शायरी

हुनर सब में है बस तराशने की जरूरत है
हीरा बन सकता है हर पत्थर बस
पारखी नजर की जरूरत है…

by Pragya

और कुछ अधूरे ख्वाब…!!

October 3, 2020 in शेर-ओ-शायरी

जिंदगी की आरजू में दफ्न हो गये
सुकून के कुछ पल थे और कुछ अधूरे ख्वाब !!

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