पूस की रात

December 18, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

पूस की रात मे
दुनिया देख रही थी सपने
आलस फैला था चहु ओर
रात भी लगी थी ऊँघने.

मैंने छत्त से देखा
बतखों के झुण्ड को तलाब मे
तीर सी ठण्डी हवा चलने लगी थी
रात के आखरी पहर मे.

मछलिया खूब उछल रही थी
तेर रही थी इधर -उधर
सोचा हाथ लगाउ उनको
पर ना जाने छुप गई किधर.

तभी कुछ शोर सुनाई दिया आसमान मे
बागुले उड़ रहे थे एक पंक्ति मे
जैसे वो सब आजाद है
मेने भी खुद को आजाद महसूस किया उनकी
स्वछंद संगती मे.
….. राम नरेश…..

दुआ

November 16, 2019 in शेर-ओ-शायरी

आते नहीं मुझसे मिलने
तुम हमसे अक्सर ये गिला किया करते
छोड़ दिया है उन गलियों में जाना
जिनमें हम कभी मिला करते थे
चाह कर भी तेरे दर पे ना आ सके
तेरी सलामती की हमेशा दुआ करते थे
बदनाम ना हो जाओ तुम कहीं
मन ही मन डरा करते थे

खुदगर्ज

October 31, 2019 in मुक्तक

सोचो अगर हर जीव खुदगर्ज हो जाता
पल पल हर पल थम सा जाता
ना पेड़ देता फल कोई वह पेड़ पर ही सड़ जाता
वह जाओ ना देते तो पथिक रास्ता कैसे तय कर पाता
नदिया जो पानी ना देती हर जीव प्यासा मर जाता
वह समंदर में ना गिरती तो हर घर पानी में बह जाता
ना मां देती जन्म बच्चे को जीवन मरण चक्कर रुक जाता
जो हो जाती खुदगर्ज वह कोई घर नहीं बस पाता
हवा अगर थम जाती तो दम सभी का घुट जाता
वह ना हर जगह बहती तो जीवो का प्राण पखेरू उड़ जाता
दयावान होना जरूरी है दया ना होती तो सृष्टि का सर्जन ना हो पाता
खुदगर्ज जो हो जाता ब्रह्मांड खुद ही पैदा होकर खुद ही वह मर जाता

मोह

October 31, 2019 in मुक्तक

उड़ चलता है हर पक्षी घोंसला बनाने
होते ही उम्मीदों का सवेरा
श्याम को थक्कर ढूंढता फिरे
अपना ही रैन बसेरा
भटकती फिरे हर मधुमक्खी
फूल फूल पत्ता पत्ता
करके शहद इकट्ठा
हजारों फूलों को छानती
बार-बार पहुंचती देखने अपना छत्ता
इंसान भी मोह का पुलिंदा हैमो
परिवार की फिकर उसे सताती रहती है
मुंह के बस में हर प्राणी
सृष्टि सारी यही कहती है

भौर

October 31, 2019 in मुक्तक

बाला घट भरने चल पड़ी
भौर की लालिमा नभ मे बिखर पड़ी
पगो से रोंदते हुए ओंस की बूँद
बाला पनघट की ओर मुड़ चली.

रस्सी खींचती सुकोमल हाथों से
बिन कहे ही कहती बातें आँखों से
हार गया तुम्हारी मनमोहनी चालो से
सुंदरता का बखान कैसे करू मै तुछ बातों से.

घट सर पर रख मंद- मंद मुस्काए
नखरे करें और खूब इतराए
कमरिया तेरी लचकती जाये
अधजल गगरी छलकती जाये.

देखता उसे मै रह गया
गाँव की गलियों मे वो खो गई
कुछ डग भरे उसकी ओर
फिर ना जाने कहाँ घुन्ध मे वो ओझल हो गई.

ध्यान उसका आता बार बार
उस एहसास को कैसे भूलूँ
काश ! ये मनोरम दृश्य
मै हर रोज ही देखूँ.

अर्थ :-
मनोरम -प्यारा
अधजल -आधा भरा घड़ा
रोंदते -दबाते, कुचलते

मजदूरो के बच्चे

October 30, 2019 in मुक्तक

मेरे घर के सामने
मजदूरो का जमावड़ा लगा था
ईंटो का ढेर बड़ा था
शायद कोई बंगला बन रहा था.

कोई मजदूर ईंटे ढो रहा था
कोई दीवार चिन रहा था
हर मजदूर काम मे लगा था
बच्चों की कोई परवाह नहीं कर रहा था.

हम अपने बच्चों को
धूल भी नहीं लगने देते है
और मजदूरो के बच्चे देखो
किस तरहा मिटटी मे लेटे है.

मिटटी उड़ा उड़ा कर
खेल रहे है मजदूरों के बच्चे
सब अपने कर्मो का खाते
ये कहते है हम वचन सच्चे

गाढ़ा पसीना बहाया
अपने परिवार के लिए कमाया
शाम को खरोंच भरे हाथों से
बच्चे को गोद मे उठाया.

म से मिटटी म से मजदूर
नाता मिटटी से गहरा है
कितना शोर मचा ले बेचारे
ना सुनेगा उनकी, समाज हमारा बहरा है.

पथिक

October 30, 2019 in मुक्तक

जीवन की राह को
नंगे पैर ही नापना पड़ता है
मिटटी की गर्मी को
छूकर ही भापना पड़ता है

चलते चलते कभी
रेत के टीले राह रोक लेते है
मै डर जाऊ मै घबराऊ
इसका ही तो मजा लोग लेते है

राह मे कांटे आए जब
रोता चलता रहा मै पथिक
पर जीना छोड़ दू
मन मे विचार ना आया तनिक.

सारा मनोबल टूट गया मेरा
जब राह मे एक बड़ा पत्थर आया
उससे भी मै बच गया
क्योंकि साथ था मेरे माँ-बाप का साया.

एक मोड़ पे मुझे कुछ लोग मिले
नेंन उनके ईर्ष्या और द्वेष से भरे
मैंने ध्यान ना दिया उनपर
पर चुगलियां करें बगैर उनको कैसे सरे.

मैंने सोच लिया है बस
मै चलता ही जाऊंगा
तभी तो जीवन की रहो का
पथिक मै कहलाऊंगा.

नशा

October 30, 2019 in मुक्तक

तू होनहार था
तू सबसे होशियार था
सबका तू गुरुर था
अपनी प्यारी सी जिंदगी मे
सपना तूने भी कोई
देखा तो जरूर था

झुक गया गमों के आगे
दुनिया नाचे पैसे के आगे
तब तो तू मजबूर था
क्यों खोया लत मे ऐसा
बहाया पानी की तरहा माँ-बाप का पैसा
गुनाह करना भी तुझे मंजूर था
तुझपे नशे का ऐसा भी क्या सरूर था

छूटते जा रहे अपने
तोड़े क्यों तूने अपनों के ही सपने
ये करना क्या जरूर था
तू इतना क्यों मजबूर था
भागता रहा बस नशे के पीछे
देखे ना माँ के आँसू बैठा रहा आंख मींचे
तू इतना क्यों मगरूर था
जाने कैसा चढ़ा तुझपे ये फितूर था.

फिर से हाथ थाम अपनों का
पुलिंदा बना नये घोंसलों का
छोड़ दे ये लत
दे खुदको भी कुछ फुर्सत
छोड़ उसको जो सर चढ़ा जनून था

फेंक शराब की बोतलों को
जिनका लगा घर पर हुजूम था
खुद की तू मदद कर
कोई ना करें चाहे तू खुद की तो कदर कर
बसा ले वो आशियाना फिर से
जिसमे तुझे सकून था
जी वही जिंदगी
जिसमे तू भी मासूम था.

आतिशबाजी

October 30, 2019 in मुक्तक

वो आतिशबाजी किस काम कि
जो कानो को बहरा कर दे
अगले ही दिन प्रदूषण से
वातावरण को धुए से भर दे.

मै तो चाहूँ ऐसी लड़ी जलाना
कि जिंदगी फुलझड़ी जैसी जगमग हो
चाहूँ ऐसा अनार जलाना
जिसमे खुशियों कि फुहार पग पग हो.

ऐसा फोड़ू मुस्कुराहटो का सुतली बम
जो लोगो का दिल उत्साह से भर दे
ऐसा जलाऊ उमंगो का रॉकिट
जो आसमान रंगबिरगी खुशियों से भर दे.

दीपावली का अगला दिन

October 28, 2019 in मुक्तक

हम अपने घरों का का
कोना कोना चमकाते है
ताकि अच्छे से मना सके
दीपावली का दिन
और कितना कूड़ा फैला देते है
दीपावली के दिन ही दिन.

छिड़कते है गंगाजल
वातावरण स्वच्छ बनाने को
ताकि घर पवित्र रहे दीपावली के दिन
और इतने पटाखे फोड़ते है कि
धुआँ धुआँ कर देते है
दीपावली के अगले ही दिन.

काम से छुट्टी करके मनाते है
दीपावली का दिन
तीन गुना गाड़ियां भगाते है सड़को पर
दीपावली के अगले ही दिन.

देश का सबसे बड़ा त्यौहार है
दीपावली का दिन
देश का सबसे बड़ा प्रदुषण प्रेरक है
दीपावली का अगला ही दिन.

सर्दियाँ

October 28, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

याद करना कभी
तीस साल पहले क़ी सर्दियाँ
बिस्तर से ना निकलने की
कभी होती थी मार्जियाँ.

याद करना कभी
तीस साल पहले की सर्दियाँ
स्कूल से छुट्टी मरने के लिए
खूब लगाते थे अर्जियाँ.

याद करना कभी
तीस साल पहले की सर्दियाँ
रजाई मे ही पड़े रहते
और खूब खेलते थे पर्चियाँ.

याद करना कभी
तीस साल पहले की सर्दियाँ
वो सुहाना मौसम अब कहाँ
ना जाने अब कहाँ गई वो इतनी ठंडी सर्दियाँ.

औरत

October 28, 2019 in मुक्तक

औरत तेरी कहानी
जैसे बहता पानी
महानता तेरी जगमानी
वेग है तू जबरदस्त तूफानी.
पर्वतों मे तू नदी वेगवाहिनी
मैदानों मे तू स्थिर विरानी
खेतो मे तू अन्न गर्भ धारणी
महान होकर भी तू सदाचारणी.
धरातल मे तू पाताल वासनी
पालन करे तू पालनहारिणी
गृह उद्धारक तू ह्रदय वासनी
सृष्टि का आरम्भ तू और जग कल्याणी.

फिर आ जाओ मेरे पास

October 27, 2019 in शेर-ओ-शायरी

फिर से आ जाओ मेरे पास
मेरी हर धड़कन तेरी राह तकती है
सुन्न पड़ गया है दिमाग़
बस इसमें सोच तेरी ही बसती है
कानो मे जाने के बाद तेरे
हंसी तेरी ही गूंजती है.
आँख बंद करता हूँ जब भी
क्षतिज के छोर पर, मुझे तू ही दिखती है.

चुनाव प्रचार

October 27, 2019 in मुक्तक

गलियों मे चुनाव प्रचार के ढ़ोल आजकल बजते रहते है
वोट मुझे ही देना भाई, सभी यही कहते है
मीठा बोलने से उनके, भावनाओ मे हम नहीं बहते है
जब दाल ना गले उनकी, हमपर धर्म प्रहार वो करते है.

हिन्दू कहे, मै जीत गया तो मंदिर मै बनवाऊंगा
मुस्लिम कहे, मै जीत गया तो मस्जिद मै बनवाऊंगा
बेवकूफ़ अच्छे से बना सकता हूँ तुमको
जीतने के बाद ठेंगा तुम्हे दिखाऊंगा.

चाहे कोई भी जीते
जनता जरूर फंसती है
कभी बिजली की कटौती
कभी पानी की बूँद को भी तरसती है
धोखे के समंदर मे डबोते वो हमको
क्योंकि गहरे पानी मे जनता की कश्ती है.

छलांग

October 22, 2019 in शेर-ओ-शायरी

गिर गया तो क्या हुआ
पाना मुकाम अभी बाकी है
जान भर ली है पैरों मे मैंने
आसमां तक ऊँची छलांग अभी बाकी है.

राधा- कृष्ण

October 21, 2019 in Other

कृष्ण ने बहुत अटखेलियां की
गोपियों के संग नदियों -तालाबों में,
ना प्यार मिला ऐसा कहीं
जो देखा राधा की आँखों में.

वचन भरे जीवन मरण के
लेकर हाथों को हाथों में,
स्मृतियाँ वो ना कभी भूलेंगी
जो कट गई बातों बातों में.

ना अब रही मिलन की बेला
ना सुगंध रही अर्पित फूलों में,
ना पूरे दोनों एक दूजे के बिन
ना राह मिलन की इन कर्कश शूलों मे.

सदा युगल रहे राधा कृष्ण
साथ ना छूटा सुख दुखो मे,
प्रेम कहानी अमर है उनकी
कही जाएगी युगो -युगो मे.

करवा चौथ

October 17, 2019 in मुक्तक

आज बहुत सुन्दर लग रही हो तुम
इस चाँद से चेहरे पर कुछ कहना चहुँ तो
पहले ही शर्मा कर हाथो से
चेहरे को ढक लेती हो तुम.

मुझे देखकर जो तेरे चेहरे की
लालिमा बढ़ती जाती है
देख- देख तुझे मेरे दिल की कलि
खिलती जाती है.

सबको रात का इंतजार है
देखने चमकते चाँद को दिल बेक़रार है
इतना सुन्दर श्रृंगार किया है
दिल तो लूटने को भी तैयार है.

आज सुनती सभी महिलाये
करवा चौथ की कहानी
सुनो प्रिया, श्रृंगार सहित श्रृंगार रहित
तुम ही सदा रहोगी मेरे दिल की रानी.

कर्मठ

October 16, 2019 in मुक्तक

आलसी लोग जो ना मेहनत करते
दिन के उजयारो मे
देखा रात को स्ट्रीट लाइट के निचे पड़ते
एक बच्ची को अंधरे गलयारो मे.

सर्द हवाओ में मैंने उसे देखा पढ़ते
कांप -कांप कर
जाने क्यों पढ़ती है वो
जागकर रात- रात भर.

इतनी ठण्ड थी की कोई अभागा रोए
तो आंसू भी जम जाए
इस हाल में पढ़ते देख उसे
किसी की सांसे भी थम जाए.

अगली सुबह मैंने उसे जब
उसे फूल बेचते देखा
सोचा मन मे
की ये कैसा है भाग्य का लेखा
एक दिन जरूर बदल देगी
वो अपने हाथो की रेखा.

हमेशा आलसी को फूलों के बिस्तर
और कर्मठ को ठोकरें ना मिलेंगी
एक दिन ऐसा आएगा
जब सारी खुशियाँ आधी -आधी बटेंगी.

बेहरुपीये

October 5, 2019 in शेर-ओ-शायरी

लोग बन कर फिरते है बेहरुपीये
ताकि तुमको छल सकें
कुछ रास्ते बिन काँटों के भी छोड़ दो
जिनपर अनजान राही चल सकें

प्यार का लम्हा

October 5, 2019 in शेर-ओ-शायरी

चाहा सिर्फ तुझको मैंने
साथ मेरे अब तेरी परछाई भी नहीं
जी लिया प्यार का हर लम्हा
चले जाने से तेरे अब कोई रुसवाई नहीं

वो जा चुकी है जिंदगी से
भूलूंगा ये सचाई नहीं
जाने के बाद तेरे
मै तुझे याद करू
इतनी तुझमे अच्छाई नहीं

दौर

October 5, 2019 in शेर-ओ-शायरी

दौर चल रहा है
धकेल कर जितने का
कुचलने वाली इस भीड़ मे शामिल मत होना
आगे बढ़ने के लिए
दौड़ जरूर लगाना
पर किसिकी होड़ मे शामिल मत होना
…… राम …….

बुलंद

October 5, 2019 in शेर-ओ-शायरी

ठोकर खाकर जमानो मे
बुलंद हुए आसमानों मे
जो फिरते आग लिए अपने सीनो मे
वो रोशनी ढूंढ़ते नहीं बुझे हुए चिरागो मे

गरीब कवि

October 3, 2019 in मुक्तक

भूखे पेट जीना सीखा मैंने
पेट भर खाने की जरुरत भी समझी नहीं |

नंगे पैर दौड़ पड़े सफर में
बस भागता रहा
ना देखा, पाँव में चप्पल है के नहीं |

बुझी मशालों को मैंने शब्दों से जाला डाला
इतनी भड़का दी आग के
सूरज के आगे,
इसकी चमक कभी धुंधली पड़ी नहीं |

धरती से चाँद तक मैंने लिख डाला
ब्रम्हांड को भी छू लेता
पर छलांग लगाने के लिए
गरीब कवि के पास दो गज ज़मीन भी नहीं.
“”””””””….राम नरेश…. “”””””””

मेहनत

October 1, 2019 in Other

दुनिया राह में अडचन पैदा करेगी
धोखा देगी, फरेब करेगी
तेरे पास कब कामयाबी होगी?
इसका जवाब सिर्फ तेरी मेहनत देगी |

हौसले

October 1, 2019 in मुक्तक

हाथ की आड़ी टेड़ी लकीरें
क्या खाख बताएगी तकदीरे
उड़ जा होंसलों के आसमान में
क्या बिगड़ लेंगी जर्ज़र समाज की जंजीरे
🌋🗽♨️✈️🚀⏳️

गाँव की एक रात

September 30, 2019 in लघुकथा

काली आधी रात में,
दुनिया देख रही थी सपने |
आलस का आलम था चहु ओर
रात भी लग रही थी ऊंघने |

तब मैंने छत से देखा,
बतखो के झुण्ड को तलाब में |
ठंडी हवा भी चलने लगी,
रात के आखरी पहर मे |

मछलिया खूब उछाल रही थी,
फड़ फाड़ा रही थी इधर उधर |
सोचा हाथ लगाउ उनको,
पर ना जाने गई किधर |

तभी कुछ शोर सुनाई दिया आसमान में,
बागुले उड़ रहे थे एक पंक्ति में |
जैसे वो सब मस्त है आजादी में,
मैंने भी आजादी महसूस की उन सबकी संगति मे |

राम नाम का तीर

September 30, 2019 in Other

स्वार्थी कुटिल लोगो पर
ध्यान ना दो,
जैसे बहता नदिया का नीर |
विपरीत परिस्थिति में भी अडिग रहो,
ना होना कभी अधीर |

जो दुखी करें सबको
ओर बने बड़ा ही वीर
ऐसे दुष्टो के सीने मे
राम नाम का तीर
घाव करे गंभीर

,🌺🌻🌷🌹,,,,,,,,,,,, जय श्री राम,,,,,,,,,,,,,,,,, 🌼🌹🥀🌺

राम नाम

September 30, 2019 in Other

जब डगमगा जाये तेरा हौसला,
अपने दिल को पत्थर समझ लेना |
राम नाम लिखकर उसपर,
दरिया में फेंक देना |
जो होगा देखा जायेगा,
राम नाम पे भरोसा कर लेना |
कहना “हे राम ”
तुझ पर सब छोड़ दिया,
मेरे बिगड़े काम सभी बना देना |

मेरे राम

September 30, 2019 in Other

मेरे राम मेरे प्रभू,
आज्ञा हो तो मै कुछ कहूँ,
कहने को तो कई बाते है मन मे,
मन विचलित है,
कोतुहल मचा है जीवन मे |
पीड़ा बहुत है,
कई बीमारी है इस तन मे,
पीड़ा तो तुम्हे भी हुई होगी,
जब कष्ट झेलते भटके वन मे |
बस इतना कहना चाहता तुमसे,
माँ मिली है मुझे कर्म से,
माँ के कष्ट मुझे दे देना,
जब भी वो कराहे दर्द मे |

राम

September 30, 2019 in Other

राम नाम लेकर
मन को सकून बड़ा मिलता है
मन प्रफुल्लित होता है मेरा
ह्रदय कमल खिलता है
याद आते हो तुम्ही राम
जब जीवन डगमग हिलता है

वेदना

September 30, 2019 in गीत

जीवन मेरा बहुत कठिन है,
पर ना चाहूं मुड़कर देखना |
रख ली है कुछ पुरानी यादे समेटकर,
ना चाहूँ उनको फेंकना |
झूठा मुखौटा लगाकर,
क्यों चाहते हो, जज्बातों से यूँ खेलना |
दिल दुख रहा, मन तड़प रहा,
किससे कहूं मै मन की वेदना |
तनो के तीर मारकर,
छोड़ दो मेरे दिल को यूँ भेदना |

संघर्ष

September 30, 2019 in Other

बिना संघर्ष के,
व्यक्ति मृत के समान है
मेहनत करके जीने वाला
संघर्षकर्ता ही महान है |🚩🌍🗽

खुद्दार

September 30, 2019 in मुक्तक

लोगो की नफरतो के आगे,
खुद्दार कभी झुकता नहीं|
अडचन चाहे कितनी भी आये,
चलते चलते वो रुकता नहीं|
महफिलों की रौनको से,
फर्क उसे पड़ता नहीं|
संघर्ष की मशाल लिए वो,
भागता हुआ थकता नहीं|
दिखावे के सुन्दर तालाब मे,
कमल कभी खिलता नहीं|
कीचड मे सना कमल का जीवन,
स्वच्छ जल की चाह रखता नहीं|
खुदार बनो,
जीवन को कर्म की तरफ मोड़ दो
मेहनत कर के कमा लो,
भीख, भिखारी के लिए छोड़ दो |

महात्मा गाँधी

September 27, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

गुलामी की धांस में अत्याचारों की बांस में
देश था बिलकुल सड़ गया |
तब उठ खड़ा हुआ एक अहिंसक योद्धा,
जो लाठी लिए फिरंगी से लड़ गया |
कुचलता हुआ अंग्रेजी सरकार के इरादे,
जनक्रांति लिए वो आगे बढ़ गया |
अंग्रेज देना चाहते थे धोखा,
पर वो पूर्ण स्वराज पर अड़ गया |

बर्तानिया सरकार के खिलाफ,
शोले भड़क रहे थे हर मन में |
जलाकर विदेशी वस्तुएँ ,
आजादी की आग लगा दी हर जन में |
भारत छोड़ो आंदोलन का तूफान ऐसा चलाया,
और जोश भर दिया हर देशवासी के तन में |
बापू तुमने आजादी दिलाई,
याद रहेगा हमें पुरे जीवन में |

आजादी का सूरज उगा,
पर ग्रहण लगा बंटवारे का |
रोए बापू रोए भारत,
दुःख था छूटते अँगनारे का |
नये भारत के स्वर्णिम भविष्य के,
आँखों में तुम्हारे कई सपने थे |
पर घात लगाए क्रूर दुष्टाचारी,
नाथू राम जैसे दुश्मन अपने ही थे |

आजाद आसमान हमें दिया,
और गुलामी की जंजीरो को तोड़ चले |
खुद मरकर जीवनदान हमें दिया,
और हर मोती को एक मला में जोड़ चले |
लपेट तिरंगा झंडा शान से,
अपना विजय रथ अंतिम यात्रा की ओर मोड़ चले |
कभी ना ख़त्म होने वाले आँसू,
अब हमारी आँखों में छोड़ चले |

मर्ज़ी

September 26, 2019 in शेर-ओ-शायरी

प्रेयसी — तुम्हे मै प्यार करू या ना करू,
ये है मेरी मर्ज़ी |
तुम्हे मुझसे प्यार है तो,
सिर्फ लगा सकते हो अर्जी |
प्रेमी — सच्चा प्यार करता हूँ तुमसे,
नहीं आशिक हूँ मै फ़र्जी |
अब मिलने तुमसे तब ही आऊंगा,
जब हो तुम्हारी मर्ज़ी |

सजा

September 26, 2019 in शेर-ओ-शायरी

तुम्हे हमसे प्यार नहीं,
झूठ बोलकर ये दग़ा ना दो |
गलतियां सबसे होती है,
अलग होने की ये सज़ा ना दो |

अक्स

September 26, 2019 in शेर-ओ-शायरी

दूर कर दोगे हमको खुद से,
हमसे दूर खुद हो जाओगे |
खुद का चेहरा देखोगे आईने मे,
तो हमारा ही अक्स पाओगे |

पहचान

September 26, 2019 in शेर-ओ-शायरी

खुद की सुनेगा तो पहचान मिलेगी असली
दुसरो की सुनेगा तो इंसान बनेगा तू नकली

हाल- ए -दिल

September 25, 2019 in शेर-ओ-शायरी

कवि तो होते है बदनाम
आश्कि की रहो मे भटकते फिरते है|
दोष लगता है उनपर कलम से छेड छाड़ का
वो तो बस अपना हाल -ए -दिल बयां करते है |

ईश्वरमय

September 25, 2019 in शेर-ओ-शायरी

धन का सागर मैंने पाया
तब मै अंधकार मे खो गया |
जब खुद को खो दिया
तब मै ईश्वरमय हो गया |

ईश्वरमय

September 25, 2019 in शेर-ओ-शायरी

धन का सागर मैंने पाया
तब मै अंधकार मे खो गया |
जब खुद को खो दिया
तब मै ईश्वरमय हो गया |

समय

September 25, 2019 in शेर-ओ-शायरी

खोया समय
फिर कब आता है |
अन्याय पर ज्ञानी का मौन
विनाश लाता है |

बात

September 25, 2019 in शेर-ओ-शायरी

भले की बात जरूर कहो
चाहे खोटी हो या खरी
सही समय पर सही बात कहो
पल पल चलती जाये घड़ी

पानी

September 25, 2019 in मुक्तक

सुनो आज तुम्हे सुनाऊ
पानी की कहानी
कीमती है पानी
कहती थी मेरी नानी |

कभी अमृत जैसा मीठा था
मेरे गांव का ये पानी
अब विषैला होता जा रहा
हर घट- घट का पानी |

बचपन मे पानी पिया
अब विष पीते पीते आ गई जवानी
बुढ़ापा शायद ना आये
जहरीला हो रहा अब देश का भी पानी |

गली गली मे बर्बाद हो रहा
नालियों मे बह गया स्वच्छ पानी
आज बचाओ मेरे भाई
कभी अंतिम समय ना गंगाजल मिले और ना मिले ये
~~~~~~पानी ~~~~~~~~~~~~
– – – – – – – – – – – – – – – – – राम नरेश ——

कामयाबी

September 25, 2019 in Other

जो लोग मेहनत करते है
किस्मत उनके आगे आगे चलती है
आग जिसमे लगन की जलती है
कामयाबी उसी को मिलती है

काश !देश का शासन कलम चलती

September 24, 2019 in मुक्तक

काश !
देश का शासन कलम चलती,
निर्दोष को न्याय दिलाती,
और दोषी पर कहर बरसाती,
काश !देश का शासन कलम चलाती |

अन्याय का नाम ना होता,
भ्रष्टाचार का काम ना होता,
दुष्ट नेताओं को होती शब्दों की फांसी,
न्याय का फंदा ऐसा कस्ता,
ना जान जाये और ना गले से उठ पाए खांसी,
काश ! देश का शासन कलम चलती |

वो राजकवि ऐसा होता,
मुजरिमों पर भावनाओ के जाल फेंकता,
तिल-तिल कर जीते अपराधी,
आंसू आँख से रुक ना पता,
फिर तो गरीब जनता रहती राजी,
कहती, वाह ! क्या चाल चली कविराज जी,
काश ! देश का शासन कलम चलती |

देश फिर से अहिंसावादी होता,
“अहिंसा परमो धर्म ” कवि का नारा होता,
देश फिर से सोने की चिड़िया कहलाता,
सब को मिलती असली आजादी,
बिना लड़े ही न्याय दिलाती,
काश !
देश का शासन कलम चलती |
………राम नरेश……..

त्यौहार

September 23, 2019 in Other

ये मौसम ऐसा आया है
जिसकी हवाओं मे त्योहारों की खुशबू आती है |
नई ख़ुशी और नई उमंगो का
एहसास दिल मे जगती है |
दीये की जलती जोत
निश्चय दृढ़ बनती है |
गलियों मे बजता शादियों का ढ़ोल और शेहनाइया
फिर से शादी का उत्साह जगती है |
पूरे भारत मे खुशियों का माहौल है
ये भावना गर्व मेरा बढ़ती है |

दिलजला

September 21, 2019 in शेर-ओ-शायरी

अंजनी रहो पर चलते चलते
मै खुशियों से कब मिला हूँ
दुसरो की खुशियों को देख
जलने वाला मै सबसे बड़ा दिलजला हूँ

मन

September 21, 2019 in शेर-ओ-शायरी

मन का मैल धोने के लिए
पूरी गंगा नाहा लिए
तन का मैल तो धो लिया
मन का मैल साथ लिए चले आ गये

आवाज़

September 21, 2019 in शेर-ओ-शायरी

आवाज़ ऐसी ना हो
जो कुत्ते बिल्लियों के शोर मे दब जाये
आवाज़ ऐसी हो जो भीड मे भी बार बार सुनाई दे

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