by vikash

विचार – ३

May 11, 2022 in Other

(3)
दूसरों के घाव देखने वाले
कभी अपने घाव नहीं भर पाते।।1।।

वर्तमान हि सब – कुछ हैं
भूत वासना का घर
और भविष्य चिन्ता का जंगम हैं ।।2।।

जो आंतरिक दुश्मन से लड़ते हैं
उसके बाहरी दोस्त नहीं होते ।।3।।

समझदारी अनुभव से आती हैं
और अनुभव ज़िन्दग़ी सिखलाती हैं ।।4।।

भूत, वर्तमान के गाल पर एक शानदार तमाचा हैं
अत: भूत कि याद, भविष्य के लिए खतरा हैं ।।5।।

📜✍️ विकास कुमार

by vikash

विचार – ३

May 11, 2022 in Other

(3)
दूसरों के घाव देखने वाले
कभी अपने घाव नहीं भर पाते।।1।।

वर्तमान हि सब – कुछ हैं
भूत वासना का घर
और भविष्य चिन्ता का जंगम हैं ।।2।।

जो आंतरिक दुश्मन से लड़ते हैं
उसके बाहरी दोस्त नहीं होते ।।3।।

समझदारी अनुभव से आती हैं
और अनुभव ज़िन्दग़ी सिखलाती हैं ।।4।।

भूत, वर्तमान के गाल पर एक शानदार तमाचा हैं
अत: भूत कि याद, भविष्य के लिए खतरा हैं ।।5।।

📜✍️ विकास कुमार

by vikash

विचार – २

May 11, 2022 in Other

(2)
लिखने मात्र से कुछ न होगा
उसपे चलना तुम्हारी कवित्व को निखारेगा।।1।।

सारी कृतियां समय व प्रस्तिथि कि देन हैं
लोग अहम् – भाव के कारण अपना समझ बैठे हैं ।।2।।

एक से अनेक को संसार कहते हैं
और एक में लय होना प्रलय ।।3।।

अच्छाई की शुरुआत
बुराई का अंत हैं
ये इतना आसान नहीं
पर इतना कठिन भी नहीं हैं ।।4।।

तुम जैसे रहोगे
तुम्हें वैसे हि लोग मिलेंगे ।।5।।

📜✍️ विकास कुमार

by vikash

विचार

May 11, 2022 in Other

कीचड में ही कमल खिलता हैं,
लेकिन ऊपर नीचे नहीं ..1..

बिषयाशक्त पुरुष खुश रह नहीं सकता
और निराशक्त को दु:ख छू नहीं सकता ..2..

इंद्रियों का रुख , यदि सात्विक हैं।
तो पूरी कि पूरी जिंदगी सुधरेगी
नहीं तो कुछ भी नहीं ।।३।।

इंद्रियों का दुरुपयोग इंसान को हैवान बना डालता हैं।
अत: मनो-निग्रह बहुत – बहुत जरुरी हैं ।।4।।

खुद को जानने में
यदि पूरी कि पूरी ज़िंदगी भी लग रही हैं तो कम हैं।
क्यूँकि खुद के अलावा
यहाँ कुछ और जानने नहीं आये हो ।।5।।
📜✍️ विकास कुमार

by vikash

ब्रह्मचर्य

April 24, 2022 in हिन्दी-उर्दू कविता

सर्वदा होश की अवस्था हैं ब्रह्मचर्य
विषयों से अनासक्त का नाम हैं ब्रह्मचर्य
पूर्व संस्कार का पूर्ण रुपेण त्याग हैं ब्रह्मचर्य
ब्रह्मचर्य कुछ भी नहीं :_
निज मूल स्थिति का नाम हैं ब्रह्मचर्य ।।१।।
+++++++++++++++++++++++++++++
ज़िंदगी का आधार निजानुभुति हैं ब्रह्मचर्य
मन का एक्राग व्यस्तता हैं ब्रह्मचर्य
देह से अलगाव हैं ब्रह्मचर्य
आम धारणा से परे हैं ब्रह्मचर्य ।।२।।
+++++++++++++++++++++++
आत्मा कि उपज द्वन्दों में सम स्थिति हैं ब्रह्मचर्य
वर्तमान कि अवस्था भूत का त्याग हैं ब्रह्मचर्य
मरनासन्न व्यक्ति का आत्मबल हैं ब्रह्मचर्य
सृष्टि का आधार योगियों का प्राण हैं ब्रह्मचर्य ।।३।।
++++++++++++++++++++++++++++++
गृहस्थों का लाज,युवाओं का शान हैं ब्रह्मचर्य
कुल मिलाकर पतितों का कल्याण मार्ग है ब्रह्मचर्य
✍️विकास कुमार (बिहार)

by vikash

ब्रह्मचर्य

April 24, 2022 in हिन्दी-उर्दू कविता

सर्वदा होश की अवस्था हैं ब्रह्मचर्य
विषयों से अनासक्त का नाम हैं ब्रह्मचर्य
पूर्व संस्कार का पूर्ण रुपेण त्याग हैं ब्रह्मचर्य
ब्रह्मचर्य कुछ भी नहीं :_
निज मूल स्थिति का नाम हैं ब्रह्मचर्य ।।१।।
+++++++++++++++++++++++++++++
ज़िंदगी का आधार निजानुभुति हैं ब्रह्मचर्य
मन का एक्राग व्यस्तता हैं ब्रह्मचर्य
देह से अलगाव हैं ब्रह्मचर्य
आम धारणा से परे हैं ब्रह्मचर्य ।।२।।
+++++++++++++++++++++++
आत्मा कि उपज द्वन्दों में सम स्थिति हैं ब्रह्मचर्य
वर्तमान कि अवस्था भूत का त्याग हैं ब्रह्मचर्य
मरनासन्न व्यक्ति का आत्मबल हैं ब्रह्मचर्य
सृष्टि का आधार योगियों का प्राण हैं ब्रह्मचर्य ।।३।।
++++++++++++++++++++++++++++++
गृहस्थों का लाज,युवाओं का शान हैं ब्रह्मचर्य
कुल मिलाकर पतितों का कल्याण मार्ग है ब्रह्मचर्य
✍️विकास कुमार (बिहार)

by vikash

ऐसा हो होली का त्यौहार ।।

March 18, 2022 in Poetry on Picture Contest, हिन्दी-उर्दू कविता

वासना छोड़े घर
मिटे मन कि विकार
पूर्व-संस्कार न सताए
ऐसा हो होली का त्यौहार ।।1।।
जले अगर अग्नि में तो क्रोध व काम
पियो वैसी शराब
जिसकी नशा न उतरे जिंदगी भर
रंगों मन को बैरागी रंग में
वैराग्य की तिल्ली से जलाओ काम रूपी विकार.
_विकास कुमार

by vikash

दे ज्ञान हमें मा भारती

February 5, 2022 in Other

दे ज्ञान हमें मा भारती
भर दे झोली इतनी सी हैं आरजू .
काया का ना हमें ध्यान
इतना हो माँ हमपे मेहरबान .
पूर्व संस्कार सब मिटा दें मातेश्वरी
दे ज्ञान हमें माँ भारती ।।१।।
✍️ विकास कुमार

by vikash

गुजरते वक्त के साथ

January 30, 2022 in हिन्दी-उर्दू कविता

गुजरते वक्त के साथ
जिंदगी भी बीत जाएगी ।
अगर नहीं सुधारोगे खुद को
तो एक दिन मौत आ जाएगी ।।1।।
++++++++++++++++++++
मौत सत्य हैं
आएगी जरूर ।
पर गले वहीं लगाएगा
जो हैं खुद के समीप ।।2।।
++++++++++++++++++++
जिंदगी वहीं जिया हैं
जो मौत को हराया हैं ।
ज़िंदगी उसी का मीत हैं
जिसका अन्तस फकिर हैं ।।3।।
+++++++++++++++++++++
जिंदगी मौत के बीच एक लकीर हैं
मौत से किसकी यारी हैं
जिंदगी सबका दोस्त हैं
मौत किसका दुश्मन हैं ।।4।।
++++++++++++++++++++
✍️ विकास कुमार

by vikash

खेल तो सब खेल सकता है ।

May 31, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

खेल तो सब खेल सकता है ।
मगर ब्रह्मचारी कोई विरला ही हो सकता है ।।
ब्रह्मचारी का मतलब ये नहीं कि वो शादी ना करें ।
बल्कि ब्रह्मचारी का मतलब
ये हैःकि वो इन्द्रियों का सदा स्वामी बना रहें ।।1।।
—————————————————————–
जिनकी इन्द्रियाँ शान्त होती
उन्हें परम सुख का एहसास होता
ब्रह्मचारी कोई सामान्य व्यक्ति नहीं होता,
लाखों-करोड़ों में कोई एक होता ।।2।।
————————————————————–
वीर्य का सही दिशा निर्देशक करने वाला योगी कहलाता है ।
जो नर वीर्य को ऐसे-तैसे नाश करते वो भोगी कहलाता है ।।
एक को परम आनंद मिलता है, एक जीवन भर रोता रहता है ।
यही सच है, झूठ कौन कह सकता है खूद से ।।3।।
जय श्री सीताराम ।।

by vikash

साधक ब्रह्मचर्य का योगी कहलाता है ।

May 31, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

साधक ब्रह्मचर्य का योगी कहलाता है ।
वह एक-ना-एक दिन खूद को जान लेता है
हम कामी पुरूष सच में बहुत रोते है
आखिर हम भी अंत में ब्रह्मचर्य ही अपनाते है ।।1।।
————————————————————–
किसी को ब्रह्मचर्य की शिक्षा पहले मिली
किसी को मिली ही नही,
किसी को उम्र सिखाई
तो किसी को धर्म ने बताई ।।2।।
————————————————————
सच जगत का सार है
तो झूठ कब-तक फन उठायेगा
आखिर सच के प्रवाह से
एक दिन झूठ कूचला जायेगा ।।3।।
————————————————————————–
ब्रह्मचर्य ही जिन्दगी है
वीर्यनाश अकाश्मिक मृत्य है
अगर झूठी तुम्हें किसी की उक्ति लगती
तो तुम्हारी अनुभव ही तुम्हें सही राह देगी ।।4।।
विकास कुमार

by vikash

संकल्प हमारी पहचान है

May 8, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

संकल्प हमारी पहचान है
फिसलन विषयों में अब-तक राग है
उठना ही जिन्दगी है
गिरना शोभा तुम्हें देता नहीं है ।।
—————————————-
उठने में परम आनंद है
विषयानुराग मौत-ही मौत है
जिन्दगी द्वार खड़ी है,
दरबाजा खोल,
संकल्प तुम्हारी पहचान है ।।2।।
——————————————
गिरेगा कैसे?
जब हाथ पकड़े है राम तेरे
प्रण टूटेगा नहीं तेरा
जब खूद में तु व्यस्त है ।।3।।
————————————-
हाँ खूद से दूर जाना नहीं तुम
लाख सताये दुनिया तुम्हें
लेकिन खूद को भुलना मत तुम ।।
विकास कुमार

by vikash

हमें कहने का अधिकार नहीं

May 8, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

हमें कहने का अधिकार नहीं
कि हमने कुछ लिखा है .
————————–
क्योंकि जो आप है,
वहीं हम है .
जो हम है,
वहीं आप है.
———————-
जो सब है,
वो एक है
जो एक है,
वहीं सब है ।।
कवि विकास कुमार

by vikash

न हम है किसी के

May 8, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

न हम है किसी के
ना हमारा है कोई
हम एक है
हमारा वस्ता है खूद से ।।1।।
————————————-
चंचल मन पे बहकना
कामी का काम है
मन को जो साधता
वह खूद के समीप है ।।2।।
———————————–
हम एक है
सब एक है
ये द्वन्द तत् है
ये सब शक्ति का खेल है ।।3।।
विकास कुमार

by vikash

तेरा कोई भी नहीं है जहां में

May 8, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

तेरा कोई भी नहीं है जहां में
तु आया है अकेले
तु जायेगा अकेले
तेरा कोई भी नहीं है जहां में ।।1।।
—————————————–
ये रिश्ते, ये नाते, ये तेरे, ये मेरे
ये कैसा है नर, तेरे झमेले
इससे परे है तेरे नाते
तेरा कोई भी नहीं है जहां में ।।2।।
——————————————
तु है सदा से स्वतंत्र ही
तेरा रिश्ता है खूद से
तु किधर भागता है नर
तुझे जीना है खूद में
तेरा कोई भी नहीं है जहां में ।।3।।
———————————————
बहिर्मुख होके कब-तक जीयेगा
वासना की आग में कब-तक जलेगा
खाली दिमाग शैतान का होता
व्यस्तता में तेरा जीवन कब लगेगा
तेरा कोई भी नहीं है जहां में ।।4।।
विकास कुमार

by vikash

होगा वही, जो लिखा है उसने

May 8, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

होगा वही, जो लिखा है उसने
व्यर्थ में क्यूँ रोना?
जब चलना है अकेले ।।1।।
——————————–
ना तुम किसी के हो
ना तुम्हारा कोई है
सब माया का खेल है
हर इंसान खूद में अकेला है ।।2।।
—————————————-
तुम सदा खुश ही हो
दुख तुम्हें छू नहीं सकता
क्लेश तो मन की अस्थिरता है
आत्मा तो सदा से मुक्त ही है ।।3।।
——————————————-
हाँ सब कर्मों का फल है
आज का चोर, कल का साधु है
इंसान इतना नजदीक होके भी
खूद से इतना दूर है ।।4।।
———————————-
मर्म जानना प्रसन्नता का कारण है
शास्त्रों का सिर्फ रटना व्यर्थ है
जब-तक शास्त्रों की बातों पे अमल ना हो
तब-तक मानव-जीवन बेकार है ।।5।।
———————————————-
विकास कुमार

by vikash

आज-न कल सबको सच की डोर में बँधना है

April 2, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

जय श्री सीताराम
——————————
आज-न कल सबको सच की डोर में बँधना है
झूठ गिराता, सच उठाता
पूर्ववत् कर्म नर को बहकाता
पर दृढ़-संकल्प ही नर को बचाता
———————————————
आज-न कल सबको सच की डोर में बँधना है ।।1।।
————————————————————-
निरन्तर सत्-पथ पे जो चलता
उसके मस्तक पे ही तेज चमकता
झूठ की राह जिसने त्यागा
उसको ही सच मिला
———————————–
आज-न कल सबको सच की डोर में बँधना है ।।2।।
——————————————————
झूठ की मिश्री जिसको अच्छी लगती
उसको भी सच, सच दिखाती
क्या खेल झूठ ने खेला अजब
सच की डोर में सब बँधा
————————————
आज-न कल सबको सच की डोर में बँधना है ।।3।।
——————————————————
क्या संकल्प नर को निखारता
हाँ, पर संकल्प नर को सत्य भी बनाता
क्या लिखना आसान है,
हाँ, संकल्प करना भी आसान है,
पर जिसका संकल्प हो महान
——————————————
आज-न कल सबको सच की डोर में बँधना है ।।4।
जय श्री सीताराम

by vikash

चंद दिनों का मेहमान यहाँ सब

April 2, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

चंद दिनों का मेहमान यहाँ सब
फिर जाना है सबको उसके दर
आज किसी की बारी है,
कल और किसी को जाना है,
परसो अपनी बारी है ..
———————————–
चंद दिनों का मेहमान यहाँ सब ।।1।।
—————————————–
कोई मैली अपना चादर करता
कोई चादर को बचाये रखता
जो नर जैसा करम है करता
उसको वैसा फल यहाँ मिलता
—————————————-
चंद दिनों का मेहमान यहाँ सब ।।2।।
——————————————-
जब जाना है वहाँ खाली हाथ
तो क्यूँ भरता नर तु अपनी हाथ
चंद दिनों का मेहमान यहाँ सब
फिर जाना है सबको उसके दर ।।3।।
जय श्री सीताराम ।।

by vikash

सब खेले होली खुद के संग में,

April 2, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

जय श्री सीताराम
———————
दुनिया लूटी अपनी करतुत से
मैं लूटा अपनी विचार से
कोई लूटे तो लूटे, अपनी करतूत से
पर कोई ना लूटे, अपनी संस्कार से ।। (प्रवाह)
—————————————-
सब खेले होली खुद के संग में,
कोई हँसे ना अपनी हस्त की लकीर पे.
सब रंग रचते है दाता इस लोक में,
और सब रंगों में भिंगते हैं,
नर और मादा इस भुवन में ।।1।।
————————————–
ऐसी होली ना हो रब तेरे इस जग में,
कि कोई हँसे तो कोई रोये तेरे दर पे
सब मगन रहे खूद में,
और सब बात करे, एक-दूसरे से ।।2।।
———————————————–
मैं लौटा हूँ अगर रब तेरे दरबार से
पर कोई ना लौटे रब तेरे दर से
मुझे भी अपनी शरण में ले लो नाथ
नहीं तो किस-किस दर पे भटकेंगे हम रघुनाथ ।।3।।
——————-जय श्री सीताराम ।।

by vikash

जीना जरूरी है

April 2, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

जय श्री सीताराम
————————
जीना जरूरी है,
मरना कायरों का काम है .
प्रण का टूटना स्वाभाविक है,
फिर भी उठना वीरों का काम है .।।1।।
————————————————-
आलस मन और सुस्त तन उसका है,
जिसने खूद पे वार किया, संहार किया.
मगर समझा न खूद को,
उसका समस्त जीवन बेकार है ।।2।।
———————————————
ऐसे ही नहीं योगी,
धरा पे स्वछंद विचरते है.
जप-तप उनका भोजन है,
हरि-नाम उनका जीवन है ।।3।।
————————————-
लूटा दो जिन्दगी नर सत्-पथ पे,
कुमार्ग पे क्या रखा है ?
चहूँ और अँधियारा है,
प्रकाश तो केवल खूद में है ।।4।।
(प्रकाश तो स्वयं की वस्तु है ।।)
—————————————
हाँ प्रकाश तो केवल खूद में है,
प्रकाश ही संकल्प कराता है,
नर को संकल्प की डोर में बँधना है,
और मानव-जीवन सरल बनाना है ।।5।।
जय श्री सीताराम

by vikash

मेरे मालिक, मैं तेरा गुलाम हूँ ।।2।।

April 2, 2021 in गीत

दुख की बदली छाई है मेरे सर पे
सुख की चाह करता नहीं रब मैं तुम से
तु चाहे जैसे रख ले, अपनी शरण में
मैं वैसे रह लूँ, तेरी शरण में
——————————————–
मेरे मालिक, मैं तेरा गुलाम हूँ ।।1।।
—————————————————-
तेरी मर्जी के आगे संसारी का कुछ चलता नहीं
तेरे भक्त तेरी माया से विचलित कभी होता नहीं
तु सुख दे या दुख दे, स्वीकार है हमे
मेरे मालिक अपने चरणों का दास बना ले हमें
——————————————————–
मेरे मालिक, मैं तेरा गुलाम हूँ ।।2।।
————————————————
भक्त-मालिक के बीच, नाता हो ऐसा
जैसा परमारथ के कारण संत सहते हैं पीड़ा
सुख-दुख की परवाह ना हो मेरे मालिक
मैं तुझमें सदा बसा रहूँ,
यहीं विनती बारम्बार हैं मुझे तुझसे मेरे मालिक ।।3।।
———————————————————————-
मेरे मालिक, मैं तेरा गुलाम हूँ ।।2।।

जय श्री सीताराम

by vikash

बना दो बिगड़ी सबकी मेरे सरकार

April 1, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

बना दो बिगड़ी सबकी मेरे सरकार
सब सर नवाते हैं, तेरे दर पर मेरे राम
कोई तुझसे क्या माँगे,
तुम किसी को क्या देते हो राम
जो देते हो तुम
वो दुनिया नहीं देते है राम
———————————–
बना दो बिगड़ी सबकी मेरे सरकार
सब सर नवाते हैं, तेरे दर पर मेरे राम ।।1।।
—————————————————
खूद को भजे बेगैर कोई
खुश नहीं रह सकता .
तेरा नाम जिस मुख से ना निकले,
वो मुख हो नहीं सकता.
जपूँ मैं सदा तेरी नाम की माला
और ये दुनिया भी तेरे नाम की गुणगान करे,
हे शबरी के प्यारा
———————————————–
बना दो बिगड़ी सबकी मेरे सरकार
सब सर नवाते हैं, तेरे दर पर मेरे राम ।।2।।
—————————————————–
कोई दुनिया से लाख बार टूटे
कोई मन-माया से लाख बार जुड़े
पर तुझसे जो जुड़े हैं मेरे राम
वहीं तुझको पाते राम
———————————
बना दो बिगड़ी सबकी मेरे सरकार
सब सर नवाते हैं, तेरे दर पर मेरे राम ।।3।।
—————————————————
लोभी, कामी, दुराचारी सपन में भी चैन नहीं पाते
साधु, सन्त, सज्जन तुझमें सदा मगन रहते
जो तुझसे दूर रहते, वो खूद को नहीं पाते
जो खूद को पाते, वहीं तुझको भजते
————————————————-
बना दो बिगड़ी सबकी मेरे सरकार
सब सर नवाते हैं, तेरे दर पर मेरे राम ।। 4।।
श्री सीताराम

बना दो बिगड़ी सबकी मेरे सरकार
सब सर नवाते हैं, तेरे दर पर मेरे राम
कोई तुझसे क्या माँगे,
तुम किसी को क्या देते हो राम
जो देते हो तुम
वो दुनिया नहीं देते है राम
———————————–
बना दो बिगड़ी सबकी मेरे सरकार
सब सर नवाते हैं, तेरे दर पर मेरे राम ।।1।।
—————————————————
खूद को भजे बेगैर कोई
खुश नहीं रह सकता .
तेरा नाम जिस मुख से ना निकले,
वो मुख हो नहीं सकता.
जपूँ मैं सदा तेरी नाम की माला
और ये दुनिया भी तेरे नाम की गुणगान करे,
हे शबरी के प्यारा
———————————————–
बना दो बिगड़ी सबकी मेरे सरकार
सब सर नवाते हैं, तेरे दर पर मेरे राम ।।2।।
—————————————————–
कोई दुनिया से लाख बार टूटे
कोई मन-माया से लाख बार जुड़े
पर तुझसे जो जुड़े हैं मेरे राम
वहीं तुझको पाते राम
———————————
बना दो बिगड़ी सबकी मेरे सरकार
सब सर नवाते हैं, तेरे दर पर मेरे राम ।।3।।
—————————————————
लोभी, कामी, दुराचारी सपन में भी चैन नहीं पाते
साधु, सन्त, सज्जन तुझमें सदा मगन रहते
जो तुझसे दूर रहते, वो खूद को नहीं पाते
जो खूद को पाते, वहीं तुझको भजते
————————————————-
बना दो बिगड़ी सबकी मेरे सरकार
सब सर नवाते हैं, तेरे दर पर मेरे राम ।। 4।।
श्री सीताराम

by vikash

बदनामी का भय, न मान-हानि का डर .

April 1, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

बदनामी का भय, न मान-हानि का डर .
वहीं है जग में सबसे ज्यादा प्रसन्न ।।1।।
——————————————————
मन-माया से उपर है ब्रह्म ।
नर ही नारायण है,
जब नर को ना हो मन-माया से डर ।।2।।
—————————————————
जब मन माया से मात खाती है ,
तब इंसां का ब्रह्मचर्य व्रत टूटता है ।।3।।
—————————————————-
असंभव पथों पे चलके, जिसने मंजिल पायी है
सच में वहीं कर्मयोगी कहलाया है ।।4।।
——————————————————
जिन्दगी में एक ऐसा मोड सबको आता है
जिस मोड़ पे चलके नर खूद को पाता है ।।5।।
श्री राम ।।

by vikash

किये पे रोना ही पड़ेगा

March 29, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

किये पे रोना ही पड़ेगा
मायूस मन नीचे गिरायेगा ही,
झूठ का साथ देना है आसान
पर मुश्किल घड़ी में सच ही आयेगा काम ।।1।।
———————————————————
क्यूँ करते हो गलत काम
जब सच ही आयेंगे काम
छोड़ो झूठ अब तो
सच अपनालो आज तो ।।2।।
————————————————————
जल गई होलिका झूठ की आग में,
निखर गया प्रहलाद सच के प्रभाव से,
हिरण्यकश्यप मर गया झूठी शान में,
जीतता आया है सच झूठों के चक्रव्यूह से ।।3।।
——————————————————————
कोई अब तो मत मनाओ ऐसी होली
कि तुम्हारे चुल्ही पे चढ़े निर्दोषों की बलि
झूठी की शान नही,
सच की जीत का त्योहार है यह होली ।।4।।
———————————————–
मनाओ होली खाकर मिष्ठान्न
और भूलो भूली-बिसरी बात
गले मिलकर करो एक-दूसरों से मीठी बात
मनाओ होली खाकरग मिष्ठान्न ।।5।।
जय श्री सीताराम

by vikash

ऐसी रंग में खोयेंगे

March 28, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

ऐसी रंग में खोयेंगे,
अबकी बार होली में ।
जहां-की-सारी – की – सारी कोशिशें
नाकाम होगी, हमें बेरंग करने में ।
जहां को ढ़ालेंगे,
हम अपनी रंगों में ।
वो लाख कोशिश करेंगे,
हम बेरंग करने की ।
फिर भी वह नाकाम रहेगी,
हमें असफल करने में ।।
ऐसी रंग में खोयेंगे,
अबकी बार होली में । ।
विकास कुमार
पिछले साल की रचना

by vikash

रंग नही हैं अब क्या जमाने में

March 27, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

रंग नही हैं अब क्या जमाने में
कि लोग बेरंग हो गये जहां में
———————————-
हाँ रंग ही नही, सब कुछ है जहां में
फिर क्यूँ लोग भटक रहे है, मन के अँधियारों में
————————————————-
अथाह रंग है नरों के जीवन में
फिर क्यूँ बेरंग रिश्ते है मानवों के विचारों में
———————————————————
रंग तो खेल ही लेंगे हम रंगों के मौषम में
लेकिन मैं हर पल खेलता रंग खूद के संग में
—————————————————
त्योहार है यह रंग का
या कहूँ मैं यह मौषम है बहार बसंत का
यह कुछ भी नहीं है,
यह त्योहार है भक्त प्रहलाद का ।।
——————————————
3:52 AM 3/25/2021
जय श्री सीताराम
खूद से बात करना, खूद से प्यार करना है ।।
— विकास कुमार

by vikash

करो परिश्रम कठिनाई से

March 24, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

तन है चोला मिट्टी का,
वस्त्र तेरे कोई शान नहीं ।
मिट्टी में मिट्टी मिल जायेंगे ,
वस्त्र तेरे उतार लिये जायेंगे ।
कर लो सदुपयोग नर तन का,
यहीं तो काम आवेंगे ।।
—————————————
जो नर मिट्टी को मिट्टी समझे,
कड़ी -धुप में अन्न उगाते (बीज बोते) ।
वहीं फसल काटते छाँव में ।।
_________________________
करो परिश्रम कठिनाइ से
जब तक पास तुम्हारे तन है ।।3।।
———————————————-

by vikash

सब पे कृपा करते हैं राम

March 23, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

जय श्री सीताराम
—————————
सब पे कृपा करते हैं राम
सबका जीवन सँवारते हैं राम
जिसका न कोई संगी न साथी
उसका सहायक है राम ।।1।।
———————————-
जगत का आधार हैं राम
सृष्टि के कण-कण में व्याप्त हैं राम
जिस मुख से राम निकले
वह मुख धन्य है राम ।।2।।
————————————-
अहं भाव ना हो किसी में राम
ऐसी कृपा करो तुम सब पे राम
सब तेरा नाम जप-जप के
सब तुझमें खो जाये राम ।।3।।
—————————————–
दास हूँ मैं तेरा प्रभु
पतितों में भी पतित हूँ मैं राम
शरण कब दोगे नाथ
अब दुःख हरलो राम ।।4।।
जय श्री सीताराम ।।

by vikash

मेरे राम इतना तु कर दे मुझ पे एहसान

March 23, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

मेरे राम इतना तु कर दे मुझ पे एहसान
कि तेरा नाम जपूँ मैं बार-बार ।।2।।
———————————————-
मेरे राम इतना तु कर दे मुझ पे एहसान
कि तेरा नाम जपूँ मैं बार-बार ।।1।।
————————————————
तेरे नाम बिन, मन हमें भरमाता
तू जिसे मिल जाये, उसे दुनिया से क्या लेना
राम तुम्हीं हो मेरे दाता,
मैं तेरे दर पे भिखारी बनके हूँ आया
दे दो चरण रज प्रभु जी,
बस यहीं कामना ये भिखारी करता ।।
——————————————–
मेरे राम इतना तु कर दे मुझ पे एहसान
कि तेरा नाम जपूँ मैं बार-बार ।।2।।
——————————————–
ये सारी सृष्टि तुझमें ही है समाई
ये जल,जीव, नभ तुझसे ही मुक्ति पाती
इस पापी, दुरात्मा को अंत समय तुझसे मिलने हो
मेरे राम मुझे तुझ से ही लगन हो ।।
—————————————————
मेरे राम इतना तु कर दे मुझ पे एहसान
कि तेरा नाम जपूँ मैं बार-बार ।।3।।
जय श्री सीताराम ।।

by vikash

जो सुख है ब्रह्मचर्य में,

March 23, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

जो सुख है ब्रह्मचर्य में,
वो सुख नहीं है,
दुनिया के झमेले में ।
———————————
रीढ़ की हड्डी टूट जाती,
बुढ़ापा आने से पहले .
कमर की पसलिया कहती
रे मूरख कामी लाठी पकड़ ले
नहीं तो गिर जायेगा खूद के गड्ढ़े में ।.
——————————————-
सज्जन, संत जीवन मुस्कुराकर जीता है
दुर्जन कामी दिनभर रोता रहता है ।।
जय श्री सीताराम ।।

by vikash

जब तेरा सानिध्य मुझे मिल ही रहा है राम

March 23, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

जब तेरा सानिध्य मुझे मिल ही रहा है राम
तो क्यूँ जाये हम दुसरों के द्वार — 2
——————————————
जब तेरा सानिध्य मुझे मिल ही रहा है राम
तो क्यूँ जाये हम दुसरों के द्वार ।।1।।
—————————————————–
तेरे द्वार से आज तक,
कोई लौट के नहीं आया ।
जो जैसा तुझसे माँगा,
तुमने वैसा उसको दिया ।
तेरे नाम से पापियों के पाप धूलते
तेरे नाम से योगीजन तुमको है पाते ।।
——————————————–
जब तेरा सानिध्य मुझे मिल ही रहा है राम
तो क्यूँ जाये हम दुसरों के द्वार ।।2।।
———————————————–
सबके हृदय में तुम सूक्ष्म बनके रहते
जो तुमको भजते, वो तुमको है पाते
मेरी शब्दों त्रुटियाँ प्रभू व्याकरण
हम है भिखारी दाता राम,
तुमसे यही हम भीख माँगते ।।
————————————-
जब तेरा सानिध्य मुझे मिल ही रहा है राम
तो क्यूँ जाये हम दुसरों के द्वार ।।3।।
जय श्री सीताराम ।।

by vikash

किसका गुमान हैं तुम्हें

March 23, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

किसका गुमान हैं तुम्हें
क्या जायेंगे संग तेरे -2
——————————–
किसका गुमान हैं तुम्हें
क्या जायेंगे संग तेरे ।।1।।
———————————
जो कमाया है तु मर-मर के
वो चुकाना पड़ेगा, तुम्हें रो-रो के
एक-एक वक्त, एक-एक घड़ी का हिसाब तुम्हें देना पड़ेगा
तुम्हें अपनी जिन्दगी का कर्ज चुकाना पड़ेगा ।।
———————————————————
किसका गुमान हैं तुम्हें
क्या जायेंगे संग तेरे ।।2।।
—————————————-
दुखाया है यदि तुमने किसी का दिल
तो जाओ क्षमा मांग लो,
अभी बाकी है कुछ दिन
क्या जायेंगे संग तेरे
किसान गुमान है तुम्हें ।।3।।
जय श्री सीताराम ।।

by vikash

एक दीप जलाओ ऐसा

March 23, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

सौ दीप जला लो मंदिरों में
चाहे हजारे दीये जल तेरे आँगन में
जब तक मन की तम ना होंगे दूर
तब-तक है तेरे सारे दीये की रौनक सून ।।
———————————————-
एक दीप जलाओ ऐसा
जिससे विकार दूर हो तेरे मन का
———————————————
झूठी शरीर की रौनक ढ़ल जाती है शामों तक
पर सच्चे दिलों मे दीपक जलती है कल्पो तक
दीपक जलाओ लेकिन जलो नहीं ईर्ष्या द्वेषों से
होगा तेरा कल्याण सिर्फ राम नाम गुण गाने से
——————————————————
एक दीप जलाओ ऐसा
जिससे विकार दूर हो तेरे मन का ।।1।।
————————————————-
वासना तो हावी रहता
सदा नरों के मनो में
पर जो नर इन्द्रिय दमन करता
उसके अंदर ही दिव्य ज्योत जलता
————————————————
एक दीप जलाओ ऐसा
जिससे विकार दूर हो तेरे मन का ।।2।।
—————————————-
कामी नही, भोगी नही, लोभी नही,
तुम योगी बनो, तेजस्वी बनो
अपनी ज्वाला से तुम सारी दुनिया को चमकाओ
——————————————————-
एक दीप जलाओ ऐसा
जिससे विकार दूर हो तेरे मन का ।।3।।
—————————————–

by vikash

करो परिश्रम ——

March 19, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

करो परिश्रम कठिनाई से,
जब तक पास तुम्हारे तन है ।
लहरों से तुम हार मत मानो,
ये बात सीखो त
जब मँक्षियारा नाव चलाता,
विचलित नहीं होता वह विपरित धाराओं से ।
लाख सुनामी चक्रवात बबंडर से टकराकर
वह लक्षय को भेद जाता है ।
आखिर गगन की जयघोष की नारा से
उसकी आँखें नम जाता है ।।1।।
————————————————–
निरन्तर, कठिनाई, परिश्रम में ही
छिपा भविष्य तेरे बंदे है ।
परिश्रम, कठिनाई, निरन्तरता से
कभी मुँह मत मोड़ना बंदे ,
यहीं तो तेरे भाग्य-विधाता है ।
करे परिश्रम कठिनाई से जो नर
वही तो पाते अपना भविष्य-लक्ष्य है ।
कर्महीन, विषयरम, इन्द्रियसंर्लिप्त मनुष्य
ऐसे ही जग में जीवन गँवाते है ।
और अर्थ-अभाव दर-दर मारे फिरते है ।।2
——————————————————–
तन है चोला मिट्टी का,
वस्त्र तेरे कोई शान नहीं ।
मिट्टी में मिट्टी मिल जायेंगे ,
वस्त्र तेरे उतार लिये जायेंगे ।
कर लो सदुपयोग नर तन का,
यहीं तो काम आवेंगे ।।
—————————————
जो नर मिट्टी को मिट्टी समझे,
कड़ी -धुप में अन्न उगाते (बीज बोते) ।
वहीं फसल काटते छाँव में ।।
ऐसे ही नर कहलाते जगत में
दिव्यस्वरूप महान है ।
करो परिश्रम कठिनाइ से
जब तक पास तुम्हारे तन है ।।3।।
—————————————————
परिश्रम, कठिनाई, असफलता,
निरंतरता सफलता के हैं चार स्तम्भ ।
इन चारों स्तम्भों से गुजारना ही
सफलता के हैं प्रथम उद्देश्य है ।
निरन्तरता नर को गुणों को निखारता,
परिश्रम किसी कर्म के योग्य बनाता ।
असफलता सफलता की पहली सीढ़ी होती
व जीवन की कठिनाई हैं सफलता की गगनचुंबी ।
करो परिश्रम कठिनाई से
जब-तक पास तुम्हारे तन है ।।
लहरों से तुम हार मत मानो
ये बात सीखो तुम मँझियारा से ।।
कवि विकास कुमार
करो परिश्रम कठिनाई से,
जब तक पास तुम्हारे तन है ।
लहरों से तुम हार मत मानो,
ये बात सीखो त
जब मँक्षियारा नाव चलाता,
विचलित नहीं होता वह विपरित धाराओं से ।
लाख सुनामी चक्रवात बबंडर से टकराकर
वह लक्षय को भेद जाता है ।
आखिर गगन की जयघोष की नारा से
उसकी आँखें नम जाता है ।।1।।
————————————————–
निरन्तर, कठिनाई, परिश्रम में ही
छिपा भविष्य तेरे बंदे है ।
परिश्रम, कठिनाई, निरन्तरता से
कभी मुँह मत मोड़ना बंदे ,
यहीं तो तेरे भाग्य-विधाता है ।
करे परिश्रम कठिनाई से जो नर
वही तो पाते अपना भविष्य-लक्ष्य है ।
कर्महीन, विषयरम, इन्द्रियसंर्लिप्त मनुष्य
ऐसे ही जग में जीवन गँवाते है ।
और अर्थ-अभाव दर-दर मारे फिरते है ।।2
——————————————————–
तन है चोला मिट्टी का,
वस्त्र तेरे कोई शान नहीं ।
मिट्टी में मिट्टी मिल जायेंगे ,
वस्त्र तेरे उतार लिये जायेंगे ।
कर लो सदुपयोग नर तन का,
यहीं तो काम आवेंगे ।।
—————————————
जो नर मिट्टी को मिट्टी समझे,
कड़ी -धुप में अन्न उगाते (बीज बोते) ।
वहीं फसल काटते छाँव में ।।
ऐसे ही नर कहलाते जगत में
दिव्यस्वरूप महान है ।
करो परिश्रम कठिनाइ से
जब तक पास तुम्हारे तन है ।।3।।
—————————————————
परिश्रम, कठिनाई, असफलता,
निरंतरता सफलता के हैं चार स्तम्भ ।
इन चारों स्तम्भों से गुजारना ही
सफलता के हैं प्रथम उद्देश्य है ।
निरन्तरता नर को गुणों को निखारता,
परिश्रम किसी कर्म के योग्य बनाता ।
असफलता सफलता की पहली सीढ़ी होती
व जीवन की कठिनाई हैं सफलता की गगनचुंबी ।
करो परिश्रम कठिनाई से
जब-तक पास तुम्हारे तन है ।।
लहरों से तुम हार मत मानो
ये बात सीखो तुम मँझियारा से ।।4।।
कवि विकास कुमार

कोई किसी से कम नहीं हैं
क्योंकि सब एक हैं
करो परिश्रम कठिनाई से,
जब तक पास तुम्हारे तन है ।
लहरों से तुम हार मत मानो,
ये बात सीखो त
जब मँक्षियारा नाव चलाता,
विचलित नहीं होता वह विपरित धाराओं से ।
लाख सुनामी चक्रवात बबंडर से टकराकर
वह लक्षय को भेद जाता है ।
आखिर गगन की जयघोष की नारा से
उसकी आँखें नम जाता है ।।1।।
————————————————–
निरन्तर, कठिनाई, परिश्रम में ही
छिपा भविष्य तेरे बंदे है ।
परिश्रम, कठिनाई, निरन्तरता से
कभी मुँह मत मोड़ना बंदे ,
यहीं तो तेरे भाग्य-विधाता है ।
करे परिश्रम कठिनाई से जो नर
वही तो पाते अपना भविष्य-लक्ष्य है ।
कर्महीन, विषयरम, इन्द्रियसंर्लिप्त मनुष्य
ऐसे ही जग में जीवन गँवाते है ।
और अर्थ-अभाव दर-दर मारे फिरते है ।।2
——————————————————–
तन है चोला मिट्टी का,
वस्त्र तेरे कोई शान नहीं ।
मिट्टी में मिट्टी मिल जायेंगे ,
वस्त्र तेरे उतार लिये जायेंगे ।
कर लो सदुपयोग नर तन का,
यहीं तो काम आवेंगे ।।
—————————————
जो नर मिट्टी को मिट्टी समझे,
कड़ी -धुप में अन्न उगाते (बीज बोते) ।
वहीं फसल काटते छाँव में ।।
ऐसे ही नर कहलाते जगत में
दिव्यस्वरूप महान है ।
करो परिश्रम कठिनाइ से
जब तक पास तुम्हारे तन है ।।3।।
—————————————————
परिश्रम, कठिनाई, असफलता,
निरंतरता सफलता के हैं चार स्तम्भ ।
इन चारों स्तम्भों से गुजारना ही
सफलता के हैं प्रथम उद्देश्य है ।
निरन्तरता नर को गुणों को निखारता,
परिश्रम किसी कर्म के योग्य बनाता ।
असफलता सफलता की पहली सीढ़ी होती
व जीवन की कठिनाई हैं सफलता की गगनचुंबी ।
करो परिश्रम कठिनाई से
जब-तक पास तुम्हारे तन है ।।
लहरों से तुम हार मत मानो
ये बात सीखो तुम मँझियारा से ।।
कवि विकास कुमार
करो परिश्रम कठिनाई से,
जब तक पास तुम्हारे तन है ।
लहरों से तुम हार मत मानो,
ये बात सीखो त
जब मँक्षियारा नाव चलाता,
विचलित नहीं होता वह विपरित धाराओं से ।
लाख सुनामी चक्रवात बबंडर से टकराकर
वह लक्षय को भेद जाता है ।
आखिर गगन की जयघोष की नारा से
उसकी आँखें नम जाता है ।।1।।
————————————————–
निरन्तर, कठिनाई, परिश्रम में ही
छिपा भविष्य तेरे बंदे है ।
परिश्रम, कठिनाई, निरन्तरता से
कभी मुँह मत मोड़ना बंदे ,
यहीं तो तेरे भाग्य-विधाता है ।
करे परिश्रम कठिनाई से जो नर
वही तो पाते अपना भविष्य-लक्ष्य है ।
कर्महीन, विषयरम, इन्द्रियसंर्लिप्त मनुष्य
ऐसे ही जग में जीवन गँवाते है ।
और अर्थ-अभाव दर-दर मारे फिरते है ।।2
——————————————————–
तन है चोला मिट्टी का,
वस्त्र तेरे कोई शान नहीं ।
मिट्टी में मिट्टी मिल जायेंगे ,
वस्त्र तेरे उतार लिये जायेंगे ।
कर लो सदुपयोग नर तन का,
यहीं तो काम आवेंगे ।।
—————————————
जो नर मिट्टी को मिट्टी समझे,
कड़ी -धुप में अन्न उगाते (बीज बोते) ।
वहीं फसल काटते छाँव में ।।
ऐसे ही नर कहलाते जगत में
दिव्यस्वरूप महान है ।
करो परिश्रम कठिनाइ से
जब तक पास तुम्हारे तन है ।।3।।
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परिश्रम, कठिनाई, असफलता,
निरंतरता सफलता के हैं चार स्तम्भ ।
इन चारों स्तम्भों से गुजारना ही
सफलता के हैं प्रथम उद्देश्य है ।
निरन्तरता नर को गुणों को निखारता,
परिश्रम किसी कर्म के योग्य बनाता ।
असफलता सफलता की पहली सीढ़ी होती
व जीवन की कठिनाई हैं सफलता की गगनचुंबी ।
करो परिश्रम कठिनाई से
जब-तक पास तुम्हारे तन है ।।
लहरों से तुम हार मत मानो
ये बात सीखो तुम मँझियारा से ।।
कवि विकास कुमार

by vikash

ITNA ACHACHA YA BURA NAHI HOON

February 21, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

इतना अच्छा या बुरा नहीं हूँ,
जितना कि दुनिया कहती है ।
मैं कैसा हूँ, ये सिर्फ व सिर्फ मैं जानता हूँ ।।
———————————————–
मैं खूद के सवालों के कठघड़े में सदा खड़ा रहता हूँ
औरों की नजरों में, मैं क्या हूँ, ये औरों का सवाल है,
मेरा नहीं, मैं क्या हूँ, ये सिर्फ व सिर्फ मैं जानता हूँ ।।
————————————————————–
जय श्री सीताराम
कवि विकास कुमार

by vikash

PRAKRITI KI SHOBHA …

February 21, 2021 in गीत

प्रकृति की शोभा से बढ़के कोई शोभा न होता
रब तेरे जैसा यार जहां में कोई ना होता ।।
————————————————–
हरिश्चन्द्र की शोभा, तु सत्य बनके आया
राम बनके तुमने, सुग्रीव को उबारा
सुदामा की दीन-दशा देखके,
प्रभु तुमने अपना सर्वस्व मित्रता पे लूटाया
————————————————-
रब तेरे जैसा यार जहां में कोई ना होता ।।1।।
————————————————–
मित्रता की लाज तुझसे ही बची है जमीं पे
तुझे जो जिस रूप में भजे
उसे तु उसी रूप में मिले
मित्रता की लाज तुझसे ही बची है जमीं पे
————————————————
रब तेरे जैसा यार जहां में कोई ना होता ।।2।।
——————————————
तुम्हें कोई यार माने
तुम्हें कोई भाई माने
तुम्हें कोई साँई माने
पर तुम सबको सब-कुछ माने
—————————————
रब तेरे जैसा यार जहां में कोई ना होता ।।3।।
कवि विकास कुमार

by vikash

MERA KUCH BHI NAHI HAIN

February 21, 2021 in गीत

मेरा कुछ भी नहीं है, मुझमें राम
सब-कुछ तेरा ही तेरा है राम
बस देना साथ हमें सदा राम
हम हैं तुम्हारे, तुम हो हमारे राम ।।1।।
———————————————
एक तेरा ही रूप फैला है कण-कण में राम
एक तुम्हीं हो सृष्टि में सबकुछ राम
व्याख्या की नहीं जा सकती तेरी महिमा की राम
एक तुम्हीं हो सबकुछ राम ।।2।।
——————————————————
वेदव्यास गीता हो तुम राम
तुलसी की रामायण घर-घर में गायी जाती है राम
संत कबीर की वाणी हो तुम राम
मीरा की गिरिधर, गणिका का उद्धारक हो राम ।।3।।
————————————————————-
क्या-क्या हो तुम राम
क्या ना हो तुम राम
किसमें सामर्थ्य है, तुझपे लेख लिखे राम
तुम्हीं लिखे, तुम्हीं सुने हैं राम ।।3।।
जय श्री सीताराम ।।

by vikash

हे भक्त-वत्सल हे रघुनंदन

February 4, 2021 in गीत

संगीत सहित

हे भक्त-वत्सल हे रघुनंदन
काटो भव-बंधन मेरे
हे भक्त-वत्सल हे रघुनंदन
काटो भव-बंधन मेरे
राम तुम्हीं हो भव-भय हरन वाले — 2 बार गायें
काटो भव-बंधन मेरे
————————————
हे भक्त-वत्सल हे रघुनंदन
काटो भव-बंधन मेरे ।।1।।
————————————–
गणिका उद्धारक तुम्हीं हो प्रभु जी
अजामिल को भव-पार प्रभु तुमने ही लगाई
मेरा भी प्रभु जी शरनागत कर लो स्वीकार -2 बार गायें ।।
हम भी है प्रभु जी तेरे चरणों के दास
——————————-
हे भक्त-वत्सल हे रघुनंदन
काटो भव-बंधन मेरे ।।2।।
————————————–
पतितों की जीवन-नईया प्रभु राम तुम ही संभाले
इसीलिए सारी दुनिया तुम्हें पतितपावन बुलाते
मेरी भी नईया पार लगो दो रघुनाथ
सारी सृष्टि आपसे यही गुहार लगाये-2 बार गायें
काटो भव-बंधन मेरे
राम तुम्हीं हो भव- भय हरने वाले
काटो भव-बंधन मेरे ।।
————————————-
हे भक्त-वत्सल हे रघुनंदन
काटो भव-बंधन मेरे ।।3।।
कवि विकास कुमार

by vikash

मेरी भक्ति-भजन को यदि तुम पढ़ोगे

February 4, 2021 in गीत

मेरी भक्ति-भजन को यदि तुम पढ़ोगे
तब जाके कहीं तुम मुझे समझोगे
मेरी भक्ति-भजन को यदि तुम पढ़ोगे
तब जाके कहीं तुम मुझे समझोगे
——————————————–
मेरी भक्ति-भजन को यदि तुम पढ़ोगे
तब जाके कहीं तुम मुझे समझोगे ।।1।।
—————————————————-
किसी को समझना अगर इतना आसान होता
तो लोग कबीर, तुलसी को पढ़के राम का भक्त होता
——————————————————————-
मेरी भक्ति भजन को यदि तुम पढ़ोगे
तब जाके कहीं तुम मुझे समझोगे ।।2।।
——————————————————–
ब्रह्मचर्य की महिमा को सिर्फ आत्मा ही बताती
जो लोग ब्रह्मचर्य पालने करते
उसे हर घड़ी ब्रह्म ही ब्रह्म दिखते
ब्रह्मचर्य की महिमा को सिर्फ आत्मा ही बताती
—————————————————–
मेरी भक्ति भजन को यदि तुम पढ़ोगे
तब जाके कहीं तुम मुझे समझोगे ।।3।।
कवि विकास कुमार

by vikash

प्रभु राम देना साथ हमारा

February 4, 2021 in गीत

प्रभु राम देना साथ हमारा
हम किस मुख कहे कि, हम हैं दास तुम्हारा
प्रभु राम देना साथ हमारा
हम किस मुख कहे कि, हम हैं दास तुम्हारा
———————————————–
प्रभु राम देना साथ हमारा
हम किस मुख कहे कि, हम है दास तुम्हारा ।।1।।
————————————————————
जब- तक हम पतितों पर प्रभु जी
आपकी पावन दृष्टि ना पड़ेगी
तब-तक हम पतितों की जीवन नईया
प्रभु बीच मँझधार में ही फंसेगी
———————————————
प्रभु राम देना साथ हमारा
हम किस मुख कहे कि, हम हैं दास तुम्हारा ।।2।।
——————————————————–
तारनहार दुनिया कहती है तुमको
पतितपावन नाम है प्रभु तुम्हरो
दास विकास की भी जीवन नईया प्रभु राम कर दो
———————————————————
प्रभु राम देना साथ हमारा
हम किस मुख कहे कि, हम हैं दास तुम्हार ।।3।।
कवि विकास कुमार

by vikash

जिस भजन को सुनके तेरी नैनों से बहते हैं नीर

February 4, 2021 in गीत

जिस भजन को सुनके तेरी नैनों से बहते हैं नीर
वह भजन हैं तेरे लिए अमृत तुल(तुल्य) (2 बार गाये)
————————————————————————–
जिस भजन को सुनके तेरी नैनों से बहते हैं नीर
वह भजन हैं तेरे लिए अमृत तुल(तुल्य) ।।1।।
——————————————————–
हर बात के पीछे एक बात छिपी होती
अगर कर्मफल में आसक्ति छिपी हो तो शांति नहीं मिलती
मन तो पंछी आकाश में उड़ना चाहती,
लेकिन आत्मा ही परमात्मा को ही खोजती
——————————————————–
जिस भजन को सुनके तेरी नैनों से बहते हैं नीर
वह भजन हैं तेरे लिए अमृत तुल (तुल्य) ।।2।।
——————————————————-
ये प्रकृति जीवों को मार-मारके खाया करती है,
रहम तो जीवों पे सिर्फ परमात्मा ही करता है ।
ये दुनिया एक-ना-एक दिन सबको मारन चाहती है ।
लेकिन ब्रह्म अपने जीवों को बचाता है
—————————————————-
जिसे भजन को सुनके तेरी नैनों से बहते हैं नीर
वह भजन हैं तेरे लिए अमृत तुल(तुल्य) ।।3।।
कवि विकास कुमार

by vikash

जिसके हृदय में पूर्ण राम बसते हैं

February 4, 2021 in गीत

संगीत सहित

जिसके हृदय में पूर्ण राम बसते हैं
उनकी काया विकृतियों से दूर है
जिसके हृदय में पूर्ण राम बसते हैं
उनकी काया विकृतियों से दूर है
—————————————
जिसके हृदय में पूर्ण राम बसते हैं
उनकी काया विकृतियों से दूर है ।।1।।
——————————————
माया उनके चरणों की दास है
जो राम जी को भजते हैं
इन्द्रियाँ उनकी शांत है,
जो ब्रह्मचर्य को भोगते हैं
—————————————–
जिसके हृदय में पूर्ण राम बसते है
उनकी काया विकृतियों से दूर है ।।2।।
————————————-
सबसे हृदय में राम का एक सूक्ष्म रूप है,
लेकिन पूर्ण राम सिर्फ राम दुलारे को ही मिलते हैं,
ब्रह्मचर्य के पालन से प्रभु राम खुश होते है ,
और अपने भक्तों को प्रभु राम दर्शन देते है
—————————————-
जिसके हृदय में पूर्ण राम बसते हैं
उनकी काया विकृतियों से दूर है ।।3।।
कवि विकास कुमार

by vikash

राम, राम, राम तु रटते जा

February 4, 2021 in गीत

राम, राम, राम तु रटते जा
मन से मन की विकार तु हटाये जा
राम से ही जन्मों का पाप धुलता
राम से ही राम मिलता
राम, राम, राम तु रटते जा
मन से मन की विकार तु हटाये जा ।।1।।
————————————————
राम ही लगाते हैं, सभी का बेड़ा पार
तेरा भी साथ देंगे रघुनाथ
राम, राम तु नित-दिन सुमिरता जा
कौशल्यानंदन का नाम तु हृदय से गाते जा
राम, राम, राम तु रटते जा
मन से मन की विकार तु हटाये जा ।।2।।
—————————————————–
भला-बुरा का फर्क जानना हैं बड़ा कठिन
ये दुनिया क्या है?, राम ही जाने सब-कुछ
तु राम, राम, राम जानके सब-कुछ राम को अर्पण करता जा
एक दिन राम तुम्हें देंगे दरश,
ये बात मन ही मन में तु याद करता जा
राम, राम, राम तु रटते जा
मन से मन की विकार तु हटाये जा ।।3।।
——————————————————————
कवि विकास कुमार

by vikash

माता तुम्हीं हो जग के

February 4, 2021 in गीत

जय श्री राम
———————-
माता तुम्हीं हो जग के
पिता है सबके राम
दया करो मा जानकी
हम हैं तेरी संतान
——————————
माता तुम्हीं हो जग के
पिता है सबके राम ।।1।।
——————————-
जन्म तुम्हीं देती सभी को
सभी को पालती तुम
संहारिणी बनके, संहार करती
राम रूप में सबका बेड़ा लगाती
————————————
माता तुम्हीं हो जग के
पिता है सबके राम
—————————।।2।।

कौन हैं जहां में जो तुझे ना भजे
तुझ से ही सृष्टि चलती माता
राम तुम्हीं हो, तुम्हीं हो ये जग सारा
तेरी कृपा से ही सबका भव पार लगती माता
तुम्हीं हो मोक्षदात्री, तुम्हीं हो ये जग सारा
—————————————————–
माता तुम्हीं हो जग के
पिता है सबके राम
दया करो मा जानकी
हम हैं तेरी तेरी संतान ।। 3।।
कवि विकास कुमार

by vikash

राम की सृष्टि, राम की माया

February 4, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

जय श्री राम
————————
राम की सृष्टि, राम की माया
राम का है ये जग सारा
जिसने जाना मेरा यहाँ कुछ नहीं
वहीं है प्रभु राम का प्यारा ।।1।।
————————————————
राम का प्यारा बन
दुनिया की जरूरत क्या
जब दुनिया लाठी बरसाती
तब राम ही राम को बचाता है ।।2।।
————————————–
विश्वास का नाम है राम
राम ही राम हैं हम
जब हम राम, तुम राम
सिर्फ अंतर क्या है हम तुम में ।।3।।
—————————————–
अंदर कुछ नहीं हम तुम में
सारी दुनिया राममय है
राम ही सीता है
सीता ही राम है ।।4।।
——————————
कवि विकास कुमार

by vikash

जब सब नर में तुम्हीं बसे हो राम

February 4, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

jay shri ram
जब सब नर में तुम्हीं बसे हो राम
तब क्यूँ किसी को रावण बनाते हो राम
और क्यूँ किसी का बेड़ा पार लगाते हो राम
—————————————————-
जब सब नर में तुम्हीं बसे हो राम
तब क्यूँ किसी को रावण बनाते हो राम ।।1।।
—————————————————-
ये खेल है कैसा तेरा राम
कब-तक खेलोगे खूद के साथ राम
तुम्हीं हारते, तुम्हीं जीतते हो राम
———————————————
जब सब नर में तुम्हीं बसे हो राम
तब क्यूँ किसी को रावण बनाते हो राम ।।2।।
——————————————-
माया तुम हो, मायापति भी तुम हो
सृष्टि तुम हो, ब्रह्माण्ड भी तुम हो
कुछ भी तुम्ह हो, कुछ भी तुम्ह जो ना हो
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जब सब नर में तुम्हीं बसे हो राम
तब क्यूँ किसी को रावण बनाते हो राम ।।3।।
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कवि विकास कुमार

by vikash

अपनी किरदार निभाने ही पड़ेंगे

February 4, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

जय श्री राम
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अपनी किरदार निभाने ही पड़ेंगे
जो लिखा है, वो होना ही है
सब मौन ना हो सकते जहां में
कुछ कोलाहल भी जरूरी है ।।1।।
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सब मौन अगर हो जाये जगत में
तो ईश्वर की माया किसे नचायेगी
मन किसको मोहरा बनायेगी
ईश्वर कैसे खेल देखेंगे जगत के ।।2।।
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दुनिया को समझना ही दुनिया है
कोई झूठ-सच का खेल नहीं
सब खेल ईश्वर के अधीन है
सब राम ही राम है ।।3।।
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मैं क्या कह सकता हूँ
मैं भी राम हूँ, तुम भी राम हो
सारी सृष्टि ही राम है
कोई नाहीं है जगत में
सब राम ही राम है ।।4।।
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कवि विकास कुमार

by vikash

इतना भी कोई गिरा न होता

February 4, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

जय श्री राम
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इतना भी कोई गिरा न होता
मन पाप करता, मन डरता
इसका मतलब ये नहीं कि
नर नारायण ना होता ।।1।।
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माया तो मायापति की अर्ध्दांगनी है
मन भी ईश्वर का स्वरूप है
मन को मन ही साधता है
तब जाके कोई भवसागर पार होता है ।।2।।
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कोई गिरा-उठा है या कोई उठा-गिरा है
ये सब मायापति की महिमा है
वोही सब खेल रचते है
वोही जीतते हारत है ।।3।।
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दुनिया की रंगमंच में सब पाठ अदा करते है
ईश्वर भी कभी-कभी, हर युगों में
धर्म-संस्थापना के लिए नर रूप में आते हैं
इतना भी कोई गिरा न होता ।।4।।
कवि विकास कुमार

by vikash

क्यूँ मांगे हम हाथ तुम्हारा

January 29, 2021 in गीत

क्यूँ मांगे हम हाथ तुम्हारा
जब हमें तुम्हारी जरूरत नहीं,
हम तुम्हारे काबिल नहीं,
तुम हमारे मुनासिब नहीं ।।
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क्यूँ मांगे हम हाथ तुम्हारा
जब हमें तुम्हारी जरूरत नहीं ।।1।।
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सुना है रिश्ता बराबरी में होता
लेकिन मेरा दिल अब किसी पे ना मरता
तु जो चाहे कर ले सितम
मैं सब-कुछ सह लूँगा सनम ।।
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क्यूँ मांगे हम हाथ तुम्हारा
जब हमें तुम्हारी जरूरत नहीं ।।2।।
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ये रिश्ता है,
जुटेगा उसी से
जो लिखा है उसने
फिर क्यूँ हम किसी से गिला करे ।।
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क्यूँ मांगे हम हाथ तुम्हारा
जब हमें तुम्हारी जरूरत नहीं ।।3।।
कवि विकास कुमार

by vikash

चरित्र बदलो चित्र बदल जायेगा

January 29, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

चरित्र बदलो चित्र बदल जायेगा
ब्रह्मचर्य का पालन करो
सारी सांसारिक दुःख मिट जायेगा
याद उसे करो जो देता है साथ सभी का ।।1।।
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सभी में उसी का स्वरूप है
कोई दैत्य तो कोई साधु शरीर है
ये दुनिया क्या है,, विधाता ही जाने
हम सब उनके ही स्वरूप है ।।2।।
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न बदलेगा जमीं-आसमां
बदलता सिर्फ समय का चक्र है
कोई राजा तो कोई रंक है
यहीं सृष्टि का नियम है ।।3।।
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चरित्र का निर्माण करो
जो सही कहें परमात्मा
वहीं काम करो ।।4।।
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चरित्र बदलो चित्र बदल जायेगा
ब्रह्मचर्य का पालन करो
सारी सांसारिक दुःख मिट जायेगा ।। ।।5।।
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राम भक्त विकास कुमार

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