अकेला अकेला रहने लगा है
आत्मीयता कहीं
खो गई है,
वह शहर की गलियों में
रो रही है।
किसी को किसी से
मतलब नहीं है,
समन्वय की बातें
खो गई हैं।
सहभागिता के
भाव ही नहीं हैं,
एक दूसरे की
चाह नहीं है।
प्रेम की कहीं अब
बातें नहीं हैं,
दर्द बांटने की
रीतें नहीं हैं।
करीब के पड़ौसी
करीब में ही रहकर
एक- दूसरे को
जानते नहीं हैं।
मानव का सामाजिक पन
आजकल अब
एकाकीपन में
बदलने लगा है।
चारहदीवारी में
कर बन्द खुद को,
अकेला अकेला
रहने लगा है।
अत्यन्त उम्दा रचना
बहुत ही सुंदर
बेहतरीन भाव
सामाजिकता का महत्व और अकेलेपन के दुष्प्रभाव को बताती हुई कवि की बहुत सुन्दर रचना
बहुत ही सत्य और उम्दा अभिव्यक्ति